उमेश सिंह

कांडला बंदरगाह से तकरीबन बीस किलोमीटर पहले गांधी धाम स्टेशन की ओर जाने वाली सड़क के पास फ्लाईओवर के नीचे चाय की दुकान पर युवा व बुजुर्ग चाय की चुस्की ले रहे थे। गांधी धाम विधानसभा क्षेत्र में माहेश्वरी समाज इस बार अपना वोट कहां देने को सोच रहा है, इसी पर आपस में सब चर्चा कर रहे थे। चर्चा के केंद्र में न तो नोटबंदी थी और न ही जीएसटी लेकिन गांधी धाम व्यापारिक केंद्र होने के कारण दो एक लोग इस पर भी अपनी राय दे रहे थे। जीएसटी से होने वाली दिक्कतों का शीघ्र समाधान नहीं होने से वे अपनी-अपनी परेशानियों को गिना रहे थे। यहां पर माहेश्वरी समाज के वोटर निर्णायक स्थिति में माने जाते हैं। चाय की दुकान चलाने वाले महेश ने बताया कि यहां के विधायक भाजपा के रमेश हैं। माहेश्वरी समाज हमेशा से भाजपा को वोट देता रहा है लेकिन इस बार उसमें हल्की सी हिचक है। वहीं दूसरी ओर गांधी धाम के ही सेक्टर सात में एक नुक्कड़ पर चाय की दुकान पर कांग्रेस और भाजपा पर चर्चा चल रही थी। बाईस वर्ष से सत्ता का वनवास झेल रही कांग्रेस की चुनावी रणनीति पर कुछ लोग सवाल खडेÞ कर रहे थे। गोविंद ने कहा, ‘हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर का एक साथ होना मुश्किल है। यदि पटेलों को आरक्षण दिए जाने का वायदा कांग्रेस ने किया तो उसे ओबीसी कैटेगरी के ठाकोर क्षत्रिय कैसे बर्दाश्त करेंगे। आखिर नुकसान तो उन्हीं का होगा।’ गोविंद का कहना था, ‘अभी तो बहुत स्पष्ट नहीं है लेकिन भाजपा के पक्ष में माहौल दिखाई पड़ रहा है।’ लेकिन गोविंद के इस वाक्य में आत्मविश्वास की वह झलक नहीं दिखाई पड़ रही है। कुछ-कुछ हिचकिचाहट भरा यह वाक्य संकेत कर रहा था कि मोदी नहीं तो फिर कौन- जैसी स्थिति नहीं है। उस कौन के उत्तर में कांग्रेस तो है लेकिन वह चुनाव जीतने के लिए जिस रणनीति पर चल रही है, उसके प्रति लोगों में उतना भरोसा नहीं जम पा रहा है। दरअसल सियासत की जो अंतर्धारा है, उसमें विकास का बहाव है, डेवलपमेंट का जोर है। यही कारण रहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी जातियों के गठजोड़ का अतीत, सियासी तिलिस्म विकास के आगे टूट गया। फिर भी कांग्रेस उसी लीक पर चलना चाह रही है जिस पर चलकर अतीत में माधव सिंह सोलंकी ने ऐतिहासिक जनादेश हासिल किया था। यह बात दीगर है कि उस दौर में उन्होंने क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम को एक साथ साधा था जबकि राहुल गांधी की कांग्रेस जातियों से जुड़े तीन नेताओं- जिग्नेश मेवाणी, अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल के जरिए दलित, ओबीसी क्षत्रिय और पटेल को अपने पक्ष में करने की फिराक में है। इन जातीय नेताओं के प्रति उनके स्वजातियों का आकर्षण भी दिख रहा है। इनकी सभाओं में खिंची आ रही भीड़ ने भगवाइयों को परेशान कर दिया है। लेकिन इस जातीय गठजोड़ में भी अंतर्विरोध साफ दिखाई पड़ रहा है। पाटीदार, ओबीसी क्षत्रिय और दलित नेताओं की तिकड़ी ने शायद युवाओं के मन को स्पर्श किया है, उन्हें प्रभावित किया है, इसीलिए इनकी सभाओं में अच्छी खासी भीड़ दिखाई पड़ती है। गुजरात में कई बार से लगातर चुनाव हारते जाना कांग्रेस की पहचान बन चुकी है। वह अपनी इस छाया से निकलने को बेताब है। उसकी इसी बेताबी का परिणाम है कि अल्पेश ठाकोर और हार्दिक पटेल दोनों को एक साथ साधने की कोशिश कर रही है। जबकि यह उसके लिए आग से खेलने जैसा हो सकता है। पाटीदार अमानत आंदोलन समिति के हार्दिक पटेल आरक्षण की मांग कर रहे हैं। सवाल यह है कि हार्दिक को मनाने की दशा में कहीं अल्पेश ठाकोर न बिदक जाएं। कांग्रेस के लिए यह बड़ी मुश्किल है कि दोनों को एक साथ कैसे रखे क्योकि दोनों के हित एक दूसरे से टकरा रहे हैं। गांवों में अल्पेश का ओबीसी क्षत्रिय वर्ग पटेलों के खिलाफ माना जाता है।

अंजार तालुका के समाज सेवी महेंद्र कोटक ने बड़ी साफगोई से कहा, ‘भाजपा भले चारों ओर से घिर रही हो लेकिन वह इतनी मजबूत है कि विरोधियों के हमलों से निपट लेगी। कौन जीतेगा और कौन हारेगा, यह तो समय बताएगा लेकिन यहां के लोग वर्ष 2001 में आए भूकंप, उसकी त्रासदी और फिर सरकार की संवेदनशीलता को भूले नहीं हैं। कच्छ एकाएक ढह गया लेकिन वह फिर खड़ा हो गया। कच्छ तो सूखा था। वहां तक नर्मदा का पानी कौन लाया। बंजर जमीन हरियाली से लहलहाने लगी। इसको आखिर लोग कैसे भूल जाएंगे?’ महेंद्र कोटक को इस बात का मलाल है कि अभी भी भूकंप पीड़ित कई परिवार टिन की चादर के नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं तथा भूकंप की त्रासदी का स्मारक नहीं बन पाया। अंजार के निवासी कौशिक काटेचर ने कहा, ‘जीएसटी के कारण थोड़ी बहुत समस्या तो पैदा हुई है। इन समस्याओं के समाधान की कोशिशें भी हो रही हैं।’ अंजार बांधनी कपड़ों के लिए चर्चित है, व्यापार पहले के सापेक्ष थोड़ा प्रभावित हुआ है लेकिन भूकंप के जख्म ने अंजार को जो दर्द दिए थे, उसे दूर करने की सरकार ने फौरी तौर पर जो कोशिशें की थीं, इसे भुला पाना मुश्किल है। केंद्र के वित्तीय शुचिता के लिए उठाए गए नोटबंदी और जीएसटी पर दबी जुबान में बेचैनी साफ दिख रही है लेकिन यह बेचैनी किस हद तक जा सकती है, यह कहना अभी मुश्किल है। नौ और चौदह दिसंबर को दो चरणों में चुनाव के बाद ही मतदाताओं की तासीर का सही अंदाजा लगेगा। बचाऊ से लोधेश्वर महादेव होते हुए चौबारी के रास्ते पर नर्मदा नहर का पानी अपनी रौ में दिखा। किसानों की आंखें पानी को देखकर चमक रही थीं। नहर में पाइप लगाकर जेनरेटर के माध्यम से किसान अपने-अपने खेतों को सींच रहे थे। बचाऊ तालुका के लोधेश्वर महादेव में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो माह पहले नहर का उद्घाटन किया था। शुरुआती दौर में तो इसमें पानी नहीं आया लेकिन एक माह पहले कच्छ की जीवन रेखा बनने वाली इस नहर में पानी आ गया। खारोई गांव के अंबालाल, रोशन बेन, बाली बेन, गीता और मनीषा अपने-अपने खेत को सीच रही थीं। अंबालाल ने कहा, ‘इन बूढ़ी आंखों का सपना अब जाकर साकार हुआ। खेतों में हरियाली देख रहा हूं तो अच्छा लगा रहा है।’ रोशन बेन और बाली बेन ने कहा, ‘बाजरा और अरंडी की खेती में अब पानी की कमी नहीं रहेगी।’ गीता और मनीषा की उम्र तो कम थी, लेकिन खेतों में पानी को दौड़ते देख दोनों चहक रही थीं। खारोई तिराहे से चौबारी गांव की ओर बाएं मुड़ते ही बुर्जुग करीम मिल गए। करीम ने कहा, ‘पानी के रूप में खेतों में सोना बह रहा है। पानी रहेगा तभी तो खेती-किसानी होगी, जिसके लिए हम लोग तरस रहे थे।’ करीम की आंखों में नर्मदा कैनाल से जुड़ी एक घटना तैर गई। कहा कि ‘दिल्ली से केजरीवाल आए थे कैनाल में भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए, इसी तिराहे पर आक्रोशित लोगों ने उनका विरोध किया और वे दबे पांव दिल्ली लौट गए।’

भाजपा पिछले बाईस वर्ष से लगातार सत्ता में है। जातीय गठजोड़ के सहारे कांग्रेस चुनावी वैतरणी पार करना चाह रही है। दोनों दलों ने अपनी-अपनी ताकत झोंक दी है। भाजपा ने पांच हजार किमी. लंबी गौरव यात्रा निकाल मतदाताओं को रिझाने की कोशिश की। गुजरात गौरव यात्राओं की अगुवाई भाजपा अध्यक्ष जीतम वाघानी और डिप्टी सीएम नितिन पटेल ने की। गौरव यात्रा का स्लोगन- ‘मैं विकास हूं, मैं गुजरात हूं’। जबकि कांग्रेस का स्लोगन- ‘कांग्रेस आ रही है, नई व्यवस्था ला रही है’ तथा ‘खुश रहे गुजरात’। दोनों पार्टियों के चुनावी स्लोगन भाषाई चमत्कार और शब्दों के करिश्मा जैसे हैं। खुश रहे गुजरात यानी यहां पर विकास नहीं हुआ जिसके कारण लोग दुखी हैं। हां यह जरूर हो सकता है कि विकास सर्वस्पर्शी न हुआ हो और जो इस बाईस साल के विकास के छुअन से बाहर हो, उनके लिए कांग्रेस खुशी लाने का वायदा कर रही है। अहमदाबाद में टैक्सी ड्राइवर वासनिया महादेव निवासी हितेंद्र एम प्रियदर्शी ने कहा, ‘पहली बार मुकाबला तो रोचक लग रहा है लेकिन चुनाव तक आते-आते अभी जैसी तस्वीर दिख रही है, उसमें बदलाव आएगा।’ लगातार सत्ता से बाहर रहने के कारण कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा ढीला-ढाला हो गया है जबकि भगवाइयों का बूथ प्रबंधन ढांचा उनकी सबसे बड़ी शक्ति है। इस मामले में कांग्रेस कमजोर नजर आ रही है। गुजरात की चुनावी आबोहवा में नरेंद्र मोदी की गैर मौजूदगी से पैदा हुई रिक्तता से इनकार नहीं किया जा सकता है। उत्तर गुजरात का साबरकांठा, बनासकाठा, पाटन, मेहसाणा, सुरेंद्र नगर, आनंद और खेड़ा आदि स्थान कभी कांग्रेस का गढ़ हुआ करते थे। सहकारी दुग्ध समितियों पर कांग्रेस का ही प्रभाव रहा करता था। कांग्रेस के इसी प्रभाव वाले क्षेत्र पर भाजपा ने कब्जा किया था। गौरतलब है कि इसी क्षेत्र में हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर का भी प्रभाव देखा जा रहा है। हार्दिक पटेल का घर मेहसाणा में है तो अल्पेश ठाकोर का बनासकाठा में। पाटीदार अमानत आंदोलन की शुरुआत ही मेहसाणा से हुई। गौरतलब है कि नार्थ गुजरात ने सूबे की राजनीति को हमेशा नई दिशा दी है, प्रभावी भूमिका अदा की है। महात्मा गांधी के नमक यात्रा का पड़ाव और सरदार बल्लभ भाई पटेल के किसान आंदोलन का प्रथम प्रयोग यह क्षेत्र रहा है। यह क्षेत्र इतना उर्वर है कि इसी मेहसाणा के वडनगर निकलकर नरेंद्र मोदी ने दिल्ली तक का शानदार सफर तय किया। लेकिन यह वही मेहसाणा है जिसने हार्दिक पटेल जैसे पटेल नेता को खड़ा कर दिया जिसकी उम्र अभी तक चुनाव लड़ने लायक भी नहीं हो पाई है। यह तो वक्त ही बताएगा कि गुजरात नरेंद्र मोदी की अनुपस्थित पर भी उनके नाम, विश्वास पर भरोसा करता है या फिर तीन जातियों के गठजोड़ का सहारा लेकर सत्ता का स्वप्न देख रही कांग्रेस को स्वीकार करता है।