ना थकते हैं और न ठहरते हैं अमित शाह…

भारतीय जनता पार्टी का चुनाव जीतने का यह क्रम जारी रहा तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह चुनाव जिताने की सबसे कारगर मशीन बन जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, संवाद और शासन कौशल, अमित शाह की सांगठनिक दक्षता और चुनावी रणनीति की महारत ने भाजपा को बहुराज्यीय पार्टी से राष्ट्रीय पार्टी बना दिया है। जैसे हर नियम का अपवाद होता है वैसे ही दिल्ली और बिहार इस नियम के अपवाद रहे हैं। आम आदमी पार्टी की भारी चुनावी सफलता के दो साल बीतते बीतते दिल्ली के मतदाता ने एक बार फिर मोदी शाह की जोड़ी को कंधे पर उठा लिया है। बिहार से चल रही हवा भी संकेत दे रही है कि लोग बदलाव के अवसर का इंतजार कर रहे हैं। अमित शाह बोलते कम हैं और काम ज्यादा करते हैं। उन्हें पता है कि चुनाव को कब और कैसे उठाना है। वे किसी भी राज्य में चुनाव से काफी समय पहले चुनाव की तैयारी शुरू कर देते हैं। फिर थोड़ी ढील दे देते हैं, विपक्ष को चुनाव मैदान में आने के लिए, उसके बाद संगठन की पूरी ताकत लगा देते हैं। यह उनकी रणनीति का हिस्सा है। इससे होता यह है कि जब विरोधी थकने लगते हैं, उस समय उनकी पूरी ऊर्जा चुनाव में लगती है। हाल में सम्पन्न पांच राज्यों के चुनाव में उन्होंने यही किया।

उत्तर प्रदेश जैसे अहम और सबसे बड़े प्रदेश में उनके संगठन कौशल का दूसरी बार जलवा दिखा। वे इंतजार करते रहे कि अखिलेश यादव के परिवार में जो ड्रामा चल रहा है वह अपना चक्र पूरा कर ले। उत्तर प्रदेश को जानने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र भी उनकी इस रणनीति को भांप नहीं पाए। जनवरी के महीने में लगने लगा था कि भाजपा चुनाव से जैसे बाहर हो गई है। लेकिन जब चुनाव प्रचार शुरू हुआ तो कुछ ही दिन में हवा बन गई कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस भाजपा से ही लड़ रही हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की धुरी बन गई। अमित शाह की चुनावी रणनीति की शैली में एक बार मैदान में उतरने के बाद ढील नहीं दी जाती। वे इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाते कि पार्टी अपने विरोधियों से आगे निकल गई है। इसी का नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को अकेले 314 और गठबंधन के साथियों के साथ 325 सीटें मिलीं। इतनी सीटें कभी नेहरू, इंदिरा और राजीव को भी नहीं मिलीं।
पांच राज्यों में से चार में आज भाजपा की सरकार है। पंजाब की हार दरअसल शिरोमणि अकाली दल की हार है। दिल्ली में नगर निगम के चुनाव में भाजपा की जीत ने साबित कर दिया है कि अपवाद बार बार नहीं होते। दिल्ली नगर निगम में भाजपा की दस साल की ऐंटी इंकम्बेन्सी के बावजूद इतनी सीटें मिलीं जितनी पहले कभी नहीं मिली थीं। दिल्ली में भाजपा की जीत से कांग्रेस उठ नहीं पाई और आम आदमी पार्टी बैठ गई।

भाजपा के विरोधी खेमे की पार्टियां पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने के बाद से सन्निपात की स्थिति में हैं या भविष्य की लड़ाई के लिए नये साथी तलाश रही हैं। दूसरी ओर अमित शाह और भाजपा आने वाले विधानसभा चुनाव ही नहीं 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में भी जुट गए हैं। अब भाजपा अध्यक्ष का लक्ष्य ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा का संगठन बहुत मजबूत नहीं है। पार्टी की नजर इस समय बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, केरल और तेलंगाना जैसे राज्यों पर है। पच्चीस मई से बंगाल के नक्सलबाड़ी इलाके से उन्होंने अपना अभियान शुरू भी कर दिया है। इस अभियान के पहले दौर में वह पंद्रह दिन तक बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं से मिलेंगे। इन राज्यों सहित देश में उनका कार्यक्रम अगले पैंसठ दिन तक चलना है। उनके काम करने की गति का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रतिदिन करीब पांच सौ किलोमीटर की यात्रा की। थकना और रुकना अमित शाह के शब्दकोष में नहीं है। दिल्ली के ग्यारह अकबर रोड स्थित उनके आवास पर जब साक्षात्कार के लिए पहुंचे तो गुजरात की बैठक हो चुकी थी और हिमाचल के नेताओं के साथ उनकी बैठक चल रही थी।

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