जम्मूू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन के टूटने का राज्य पर क्या असर पड़ेगा?
यह अच्छा हुआ वरना पूरा जम्मू कश्मीर हमारे हाथ से चला जाता। अब देश का दो-चार हजार करोड़ रुपया बच जाएगा। पीडीपी खुद को कश्मीर की तो भाजपा खुद को जम्मू की नुमाइंदा बताती थी। दोनों लूट में व्यस्त थे। ये लुटेरों की सरकार थी।

गठबंधन की तीन साल की सरकार के दौरान हालात बिगड़े या सुधरे?
बिगड़े हैं। ठीक कहां हुए हैं? कश्मीर में हर जगह पाकिस्तान जिंदाबाद हो रहा है, पाकिस्तानी झंडे दिख रहे हैं। इन तीन सालों में यह हुआ कि कश्मीरी मुसलमान, जिनकी बड़ी संख्या सेक्युलर और राष्ट्रभक्त है, उन्हें ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे वे सब धोखेबाज हैं, पाकिस्तान के साथ हैं। देशभर में उनको गिरफ्तार किया जा रहा है। सरकार बनने का पीडीपी और भाजपा को भले फायदा हुआ लेकिन राष्ट्र को और जम्मू कश्मीर को बहुत नुकसान हुआ।
जम्मू कश्मीर में दोनों दलों ने जब सरकार बनाई तो महबूबा के वालिद मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री थे। वो लोकसभा के सदस्य और देश के गृहमंत्री भी रहे। उनके निधन के बाद महबूबा मुख्यमंत्री बनीं। बाप की सोच अलग थी, बेटी की सोच बिल्कुल अलग है। दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। भाजपा के हिंदुत्व के प्रचार से लोगों को लग रहा था कि जम्मू कश्मीर में भाजपा सरकार आने से कश्मीर जन्नत बनेगा, हिंदुस्तान बनेगा, यहां हिंदुस्तान के झंडे लगेंगे। हिंदुस्तान में या जम्मू कश्मीर के में बहुसंख्यक समुदाय में भाजपा को लेकर जो सोच थी, वह खत्म हो गई। यह सबसे बड़ा नुकसान भाजपा को हुआ है। अब कम से कम जम्मू कश्मीर में अगले पचास साल तक भाजपा के लिए कोई उम्मीद नहीं है… कहीं एकाध सीट जीत जाए तो जीत जाए।

इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ी नाकामी क्या रही?
उपलब्धि यह रही कि मुसलमान का हिंदू पर और हिंदू का मुसलमान पर विश्वास टूट गया। कश्मीर में घर घर में पाकिस्तान के झंडे लहराने लगे। चोरी डाके फ्री हो गए हैं- जम्मू में भाजपा को पैसा दे दो, कश्मीर में पीडीपी को पैसा दे दो और लूटते जाओ… बस यही चल रहा है।

आगे क्या हो? सुरक्षाबलों को खुली छूट दी जाए या बातचीत का माहौल तैयार किया जाए?
सुरक्षाबलों या फौज की भूमिका सीमा पर है और वहां उनकी बहुत अच्छी परफार्मेंस रही है। आप सुरक्षाबलों को हमारे किचन में नहीं डाल सकते हैं। आप उन्हें हमारे घरों की रक्षा करने के लिए लाएंगे। फिर आपका प्रशासन कहां है। सेना को अपना काम करने दीजिए। उसके जिम्मे देश की रक्षा का काम है।
आगे का रास्ता बहुत साफ है। पहले यह फैसला कीजिए कि हिंदुस्तान का जम्मू कश्मीर से रिश्ता क्या है। सत्तर साल हो गए हैं जब जम्मू कश्मीर के महाराजा ने हिंदुस्तान के साथ नाता जोड़ा। विलय पत्र पर दस्तखत किए। इसी तरह के विलय पत्र पर पांच सौ पचहत्तर राजाओं ने दस्तखत किए थे। उन्हें जोड़कर आपने भारतीय संघ (यूनियन आॅफ इंडिया) बना लिया और हमको (जम्मू कश्मीर) अलग रखा। हमको आज तक अलग क्यों रखा है। भारत का संविधान क्यों नहीं लागू किया। आपके यहां भारतीय संविधान के भाग-तीन में मूल अधिकारों की बात है… हमें क्यों वे हासिल नहीं हैं। जम्मू कश्मीर की हाईकोर्ट बनी थी। वह भारतीय संविधान की देन नहीं है। वह हमारे यहां के कानून के मुताबिक थी। हमारा झंडा भी अलग, कानून भी अलग, हमारी सीमाएं भी अलग हैं… और इसलिए मैं कहता हूं कि जम्मू कश्मीर के तमाम सवालों का जवाब केवल देश की संसद ही दे सकती है… और कसूरवार भी देश की संसद ही है कि क्यों नहीं उसने जम्मू कश्मीर के लोगों को भारत का संविधान दिया।
जम्मू कश्मीर के महाराजा ने 17 अक्टूबर 1947 में विलय किया। बड़ौदा के महाराजा ने हिंदुस्तान से 1948 में विलय किया था। उनको भारत ने अपने साथ जोड़ दिया। जूनागढ़ ने भारत के साथ विलय किया ही नहीं, उनको भी भारत ने जोड़ लिया।

इस घटना का पाकिस्तान और घाटी में आतंकवादियों और उनके रहनुमाओं पर क्या असर होगा?
थोड़ा बहुत असर तो पड़ेगा, लेकिन कोई ज्यादा असर नहीं पड़ेगा।

क्या लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में कोई बुनियादी बदलाव ला पाएगी?
जब तक जम्मू कश्मीर को भारत का झंडा नहीं मिलेगा, जब तक भारत का संविधान लोगों तक नहीं पहुंचेगा, संविधान ने जो मानवाधिकार पूरे भारतवासियों को दिए हैं वे जम्मू कश्मीर के लोगों को नहीं मिले हैं… जब तक हमारी हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट और भारत के संविधान के नियंत्रण में नहीं होगी… तब तक कोई बुनियादी बदलाव यहां नहीं आएगा। कितनी फौजें लाइए, कितने प्रतिनिधिमंडल लाइए… सत्तर साल तो हो गए हैं। कुछ करना है तो संविधान में 370 और 35ए को संशोधित कीजिए। बस आप इतना कर दीजिए और फिर देखिए पूरे जम्मू कश्मीर में हर घर में दीवाली मनेगी।
—अजय विद्युत