अरुण पांडेय

दोस्ती में दिल से दिल का मिलना जरूरी है लेकिन गहरी और लंबी चलने वाली दोस्ती में दिमाग का मिलना उससे ज्यादा जरूरी है। भारत और इजराइल के रिश्तों में मजबूती की वजह यही है कि दोनों के दिल से ज्यादा दिमाग मिले हुए हैं। दो देशों के बीच रिश्तों में चतुराई का ज्यादा इस्तेमाल भी जरूरी है। भारत और इजराइल के बीच रिश्तों को डिकोड करने बैठेंगे तो पाएंगे कि भारत की विदेश नीति और कूटनीति ने इस मोर्चे पर वो कमाल किया है जो अब तक असंभव माना जाता रहा।
कुछ महीने पहले येरुशलम को इजराइल की राजधानी के तौर पर मान्यता देने के अमेरिकी ऐलान को वापस लेने के प्रस्ताव पर संयुक्तराष्ट्र में वोटिंग के दौरान सबकी नजर भारत पर थी क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इससे कुछ महीने पहले ही इजराइल होकर आए थे और अमेरिका व भारत के बीच दोस्ती बढ़ती नजर आ रही थी। लेकिन भारत ने इजराइल के खिलाफ और फिलीस्तीन के समर्थन में वोट करके सबको चौंका दिया। इजराइल ने भारत के इस कदम पर कोई नाराजगी नहीं दिखाई बल्कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तो ये तक कह दिया कि हमारे संबंध इतने कच्चे नहीं कि एक वोट से कमजोर पड़ जाएं। मतलब साफ है कि सच्चा दोस्त वही है जो दूसरे दोस्त की मजबूरियां और रणनीति समझे। भारत और इजराइल अब वैसे ही दोस्त बन गए हैं यानी हर वक्त के साथी। इस मामले में ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कूटनीतिक सफलता कही जाएगी कि उन्होंने इजराइल को भी खुश कर दिया और परंपरागत साथी फिलीस्तीन को भी। यानी अनहोनी लगने वाली बात को कर दिखाना।
भारत-ईरान और इजराइल त्रिकोण
सामान्य तौर पर ये बात मुश्किल लगती है कि ईरान और इजराइल दोनों से एक साथ भारत कैसे मजबूत रिश्ते रख सकता है जबकि ईरान और इजराइल का छत्तीस का आंकड़ा है। नेतन्याहू का कहना है कि भारत और इजराइल के रिश्ते स्वर्ग में हुई शादी की तरह हैं। इसमें कोई शक नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति को इसलिए सफल माना जा रहा है कि ईरान और फिलीस्तीन के साथ सभी खाड़ी देश भारत से मजबूत रिश्ते रखने के लिए जोर लगाए हुए हैं। भारत ने यरुशलम को राजधानी बनाने का अमेरिका का प्रस्ताव वापस लेने के पक्ष में संयुक्तराष्ट्र में वोट किया लेकिन इजराइली प्रधानमंत्री इसे छोटी बात मानते हैं। नेतन्याहू भारत आए और अब प्रधानमंत्री मोदी फिलीस्तीन जाएंगे। भारत ईरान में पोर्ट बना रहा है और सऊदी अरब के साथ संबंध मजबूत कर रहा है। फिर भी न इजराइल को भारत से शिकायत है और न खाड़ी देशों को इजराइल से संबंध मजबूत करने पर भारत से नाराजगी है। भारत के लिए ग्लोबल लीडर बनने की यह एकदम आदर्श स्थिति है। पहले ऐसी प्रतिष्ठा सिर्फ अमेरिका और चीन को हासिल थी लेकिन अब भारत भी इसमें शामिल हो गया है।
भारत-इजराइल के बीच उड़ान सऊदी अरब होकर?
अगर सऊदी अरब एयर इंडिया को अपनी वायु सीमा से इजराइल जाने का रास्ता दे देता है तो इसे भारत की बहुत बड़ी सफलता माना जाएगा। अभी सऊदी अरब, ईरान, इराक समेत तमाम खाड़ी देश इजराइल जाने वाली उड़ानों को अपनी वायु सीमा से जाने की इजाजत नहीं देते। इससे सभी विमानों को चीन से होकर जाना होता है जिससे दो घंटे का ज्यादा वक्त लगता है। लेकिन अगर सऊदी अरब ने इसे मंजूर कर लिया तो ये भारत की बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। इसके साथ ही इजराइल जाने की उड़ान का किराया भी सस्ता हो जाएगा। सबसे खास बात ये होगी कि सऊदी अरब अगर इसकी मंजूरी देता है तो यह भारत की जीत मानी जाएगी। साथ ही सऊदी अरब भी यही बताएगा कि भारत के कहने पर उसने ये किया है न कि इजराइल के कहने पर क्योंकि सऊदी और इजराइल के बीच कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं।
कूटनीतिक भाषा में कहें तो इजराइल और मुस्लिम देशों के बीच भारत मजबूत और भरोसेमंद पुल बनने की स्थिति में आ गया है क्योंकि दोनों पक्षों को भारत पर यकीन होता जा रहा है। अभी इजराइल की अलएआई एयरलाइन तेल अवीव और मुंबई के बीच उड़ान भरती है लेकिन लंबा रास्ता होने की वजह से इसमें आठ घंटे लगते हैं।

रिश्ते बनते बनते बने हैं
पहले मोदी का इजराइल दौरा और फिर वहां के प्रधानमंत्री का भारत दौरा। ये दुनिया के सबसे जटिल रिश्तों की कहानी कहता है जिसमें संवेदना भी है और जमाने के डर की वजह से बरसों का बिछड़ापन भी। लेकिन अब भारत इतना साहसी हो गया है कि उसे इजराइल से खुल्लम खुल्ला गहरे रिश्तों का इकरार करने में कोई संकोच नहीं है। मोदी और नेतन्याहू की व्यक्तिगत दोस्ती ने दोनों देशों के बीच संबंधों को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है लेकिन ये रिश्ते रातों रात नहीं बने हैं। नेतन्याहू ने सरकारी औपचारिक समारोह के अलावा अहमदाबाद और मुंबई में सांस्कृतिक संबंध बनाने में भी पूरा वक्त दिया। दो देशों के बीच रिश्ते सिर्फ भावनाओं पर नहीं बनते, इजराइल और भारत दोनों ये जानते हैं। इसलिए इजराइल ने केंद्र सरकार के साथ राज्यों में भी अपनी टेक्नोलॉजी की छाप छोड़ी है। पिछले 25 सालों में कई राज्यों के मुख्यमंत्री जिनमें मोदी भी शामिल रहे हैं, कई बार इजराइल गए और अपने राज्य में वहां की एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया। महाराष्ट्र और गुजरात में पानी के प्रबंधन और एग्रीकल्चर पर इजराइल बीस सालों से ध्यान दे रहा है।
आम भारतीय और इजराइली के बीच एक कॉमन फैक्टर है कि दोनों देश आतंकवाद से जूझ रहे हैं लेकिन भारत और इजराइल के बीच मजबूत हो रहे रिश्ते की वजह खेती और पानी को लेकर इजराइल का जुनून है। दोनों देशों के बीच ये सबसे अहम चीज है। कृषि अभी भी भारत का परिवारिक पेशा है लेकिन पानी के सही इस्तेमाल की टेक्नोलॉजी और खेती के किफायती तरीके इजराइल मुहैया करा रहा है। नेतन्याहू ने सुरक्षा पर एक कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत और इजराइल दो लोकतंत्र हैं लेकिन उदार समाज हैं इसलिए दोनों एक ही तरह के जोखिम का मुकाबला कर रहे हैं।
नेतन्याहू भी भारत से मित्रता के लिहाज से अपने आप को ढाल रहे हैं। तभी तो वे ताजमहल भी देखने गए और अहमदाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रोड शो किया और उसके बाद मुंबई में बॉलीवुड दिग्गजों से भी मिले। यानी वे पूरा होमवर्क करके आए थे। वे जानते हैं कि ताजमहल हिंदुस्तान की शान है और बॉलीवुड यहां के लोगों के दिलों में बसता है। इजराइली प्रधानमंत्री चाहते हैं कि बॉलीवुड स्टार इजराइल में भी शूटिंग करें ताकि भारतीय लोग इस छोटे लेकिन खूबसूरत देश से फिल्मों के जरिये जुड़ सकें।
नेतन्याहू की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच नौ समझौते हुए हैं। इनमें साइबर सुरक्षा, तेल और गैस, विमान ट्रांसपोर्ट, फिल्म, आयुष, अंतरिक्ष, सोलर ऊर्जा शामिल हैं। इजराइली हथियारों और सैनिक साजो सामान के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है। इजराइल के कुल हथियार निर्यात का आधा निर्यात भारत को होता है। इस वक्त भारत के लिए अमेरिका, रूस और फ्रांस के बाद इजराइल चौथा बड़ा हथियार सप्लायर है। रिश्ते ऐसे ही रहे तो इजराइल पहले या दूसरे नंबर का सप्लायर बन सकता है। हैरॉन ड्रोन, बराक 8 एयर डिफेंस सिस्टम, राडार, सब कुछ भारत की शॉपिंग लिस्ट में है। एक अनुमान के मुताबिक 2022 तक भारत रक्षा सौदों पर करीब 620 अरब डॉलर खर्च करेगा। अगर ये सही हुआ तो इसके बड़े हिस्से पर इजराइल की नजर है।
हर देश के साथ रिश्ते हमेशा लेन-देन पर आधारित होते हैं लेकिन शायद ये पहला मौका है जब भारत की विदेश नीति रक्षात्मक या बने बनाए ढर्रे की न होकर डायनामिक है। भारत ड्राइविंग सीट पर है जहां उसे इजराइल के साथ रिश्तों का खुलकर इजहार करने में कोई संकोच नहीं है लेकिन साथ ही फिलीस्तीन और सऊदी अरब के साथ भी संबंध मजबूत करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही है। कूटनीतिक लोग जानते हैं कि परस्पर दो विरोधी ग्रुपों के बीच पुल बनना नामुमकिन को मुमकिन बनाने जैसा है। 