संध्या द्विवेदी ।

सिमी गरेवाल को दिए अपने एक बेहद चर्चित साक्षात्कार में जयललिता ने कहा था- ‘मैं अपनी भावनाएं अपने लिए रखती हूं। ये सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने के लिए नहीं होतीं’ (आई कीप माई इमोशन टू माइसेल्फ, दे आर नॉट फॉर पब्लिक डिस्प्ले)। यह सच है कि जयललिता को कभी सार्वजनिक तौर पर भावनाओं के स्तर पर कमजोर होते नहीं देखा गया। वह एक टफ लीडर थीं। एक बेहद शर्मीली बच्ची- अम्मू। उन्होंने इस इंटरव्यू में मां से दूर होने की अपनी व्यथा भी कही। उन्होंने एक वाकये का जिक्र किया- ‘मैं तब पांच साल की थी। पिता दो साल की उम्र में ही गुजर चुके थे। मां संध्या अपने काम के सिलसिले में दिन का ज्यादातर हिस्सा घर से बाहर ही गुजारती थीं। ऐसे में मां ने मुझे मौसी के साथ बंग्लौर में रख दिया। यही कोई पांच साल की रही होऊंगी। मां जब मिलने आती थीं, तो मैं मां का पल्लू पकड़कर सो जाया करती थी। डर होता था कि मां चली जाएंगी। मां को न जाने देने की जिद का असर यह होता कि मैं उनका पल्लू अपनी मुट्ठी में भींचकर सो जाती। पर मां भी क्या करें? वह पल्लू छुड़ाने की जगह साड़ी ही खोलकर अपनी बहन से लपेट देतीं। मैं रातभर यह सोचकर सुकून से सोती कि मां हैं। मगर मां तो चली जातीं थीं, हां अपना पल्लू जरूर वह छोड़ जातीं थीं। उठने के बाद मैं खूब रोती, और फिर चुप हो जाती।’ यह थी अम्मू। ‘निबंध प्रतियोगिता में मिले पुरस्कार को हाथ में पकड़कर देर रात तक इंतजार करते करते कब आंख लग गई पता ही नहीं चला। लिविंग रूम में सोफे पर अपनी बेटी को सोता देख मां ने जगाकर पूछा तो बोली- मां यह पुरस्कार आपको दिखाना था।’ स्वाभाव से कोमल अम्मू जब अम्मा बनीं तो उन्होंने कठोर से कठोर राजनीतिक फैसले लिए। अपने सबसे बड़े राजनीतिक शत्रु को आधी रात के वक्त उनके घर से उठवाकर लॉकअप में डलवा देने का फैसला हो चाहे एमजीआर की मौत के बाद खुद को उनका उत्तारधिकारी घोषित करने का फैसला। जयललिता बिल्कुल सख्त नजर आर्इं।

शुरुआती जिंदगी, फिल्में और राजनीतिक सफर
जयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को मैसूर के मांडया जिले के पांडवपुरा तालुके के मेलुरकोट गांव में रहने वाले तमिल अयंगार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। मैसूर अब कर्नाटक का हिस्सा है। वह महज दो साल की थीं जब उनके पिता का देहांत हो गया। उनकी मां ने फिल्मी करियर अपनाया। पढ़ाई में वह हमेशा अव्वल थीं। वकील बनने का सपना उन्होंने स्कूल में ही देखना शुरू कर दिया था। पिता की मौत के बाद मां संध्या उन्हें लेकर बंग्लुरु चली आर्इं जहां वह अपनी मौसी के साथ रहीं। कोमलावाली और जयललिता उनके दो नाम थे। अयंगार ब्राह्मणों में दो नाम रखने की परंपरा है। पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहने वाली जयललिता ने हाईस्कूल बंगलुरु से किया। उन्होंने आगे की पढ़ाई चेन्नई के प्रजेंटेशन चर्च पार्क कॉन्वेंट से की। 1964 में मैट्रिक की पढ़ाई के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी वजीफा हासिल किया। मगर मां ने उन पर कॉलेज की जगह फिल्मों में कदम रखने के लिए दबाव बनाया। पहले तो वह राजी नहीं हुर्इं लेकिन बाद में जब मां ने घर के हालात बताए तो उन्हें राजी होना पड़ा। इसी कॉलेज ने उन्हें 19 दिसंबर 1991 में डिग्री आॅफ डॉक्टर आॅफ लिट्रेचर की उपाधि से सम्मानित किया।

ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए आदर्श हैं अम्मा
‘मेरी नजर में जयललिता भारतीय राजनीति में आईकॉन थीं। उनकी अपनी तरह की राजनीति या यों कहें कि उनकी पॉलिटिकल स्टाइल की सारी आलोचना एक तरफ है। लेकिन भारत जैसे देश में जहां पितृसत्ता की जड़ें अभी भी मजबूत हैं, पितृसत्ता सर्वोपरि सत्ता मानी जाती है, ऐसे देश में जयललिता ने पहले फिल्मी दुनिया की ऊंचाई छुई। फिर राजनीति जैसे पुरुष वर्चस्व वाले क्षेत्र में अपनी खास जगह बनाई। पहले एक मजबूत विपक्ष के रूप में उभरीं फिर मुख्यमंत्री बनीं। मेरी समझ में यह किसी सिंगल और ऐसी महिला के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है जिसके पास कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि न हो। औरतों के लिए तो वह आईकॉन हैं ही, साथ ही ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए भी आदर्श हैं। खासतौर पर ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की औरतों के लिए। ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की ज्यादातर औरतों को बिना जीवनसाथी अकेले ही जिंदगी काटनी पड़ती है। वे सारी चुनौतियां जो अपना वजूद पाने के लिए किसी औरत के सामने आती हैं, उनसे जूझना पड़ता है। जयललिता हमारे लिए शक्ति का स्रोत थीं, प्रेरणा थीं। या यों कहें कि वह भले ही आज इस दुनिया में नहीं हैं। मगर हमारे दिलों में वह हमेशा जिंदा रहेंगी। अम्मा की ताकत और मजबूत इच्छा शक्ति के लिए सारी ट्रांसजेंडर वुमेन उन्हें बहुत प्यार करती हैं।
—कल्कि सुब्रमण्यम (ट्रांसजेंडर कार्यकर्ता, लेखिका और आर्टिस्ट)

जयललिता द्रौपदी तो दुर्योधन करुणानिधि-

– 1989 में करुणानिधि के बारे में सियासी टिप्पणी करने पर जयललिता के साथ करुणानिधि की पार्टी के विधायकों ने दुर्व्यवहार किया। चेन्नई की भरी विधानसभा में डीएमके के एक विधायक ने जयललिता की साड़ी खींचने की कोशिश की। जयललिता ने इस घटना के बाद करुणानिधि को दुर्योधन कहा। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इसी घटना ने जयललिता के राजनीतिक सफर की पटकथा लिखी। उन्होंने उसी दिन घोषणा की कि अब वे मुख्यमंत्री बनकर ही सदन में आएंगी। 1991 में वे मुख्यमंत्री बन भी गर्इं।
– शशिकला उनके सबसे करीब रहीं। जब शशिकला और जयललिता की मुलाकात हुई तब शशिकला वीडियो कैसेट की दुकान चलाती थीं और जयललिता उनकी दुकान की नियमित ग्राहक थीं।
– पार्टी के भीतर इनकी छवि नेता से कहीं आगे देवी जैसी थी। पार्टी के कई नेता उम्र और अनुभव को दरकिनार कर जया के पैरों पर पड़ते देखे जाते रहे। उन्हें देवी मानने वालों की संख्या पार्टी में बहुत थी। एक वाकया ऐसा हुआ था, जिसमें मद्रास के पार्टी सचिव ने खुद को मृत घोषित कर अपना अंतिम संस्कार करवाया था। दरअसल इस व्यक्ति का कहना था कि ऐसा करने से जयललिता की समृद्धि बढ़ेगी। यह एक धर्मआधारित परंपरा के तहत किया गया था। ऐसा ही कुछ एक महिला पार्टी वर्कर ने भी किया था। केवल नीम की पत्ती शरीर में पहनकर चेन्नई के मंदिर में भगवान की अराधना की थी, ताकि उनकी नेता जयललिता हर संकट से बची रहें। ऐसे और भी किस्से चर्चा में जब तब सामने आते रहे।
– 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद जयललिता की पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और जीता। 24 जून 1991 में वह पहली सबसे कम उम्र वाली महिला मुख्यमंत्री बनीं।
– 2001 में वह फिर मुख्यमंत्री बनीं। हालांकि इसी साल उन पर और उनकी पार्टी पर कई गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे। आरोपों के चलते उन्हें पद से हटना पड़ा। उन्होंने ओ पन्नीरसेल्वम को अपनी जगह मुख्यमंत्री नियुक्त किया।
– 2003 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया। मध्यावधि चुनाव हुए और जयललिता फिर मुख्यमंत्री बनीं।
– 2006 में चुनाव हारीं। डीएमके सत्ता में आई। इनके घोर राजनीतिक शत्रु करुणानिधि मुख्यमंत्री बने।
– 2011 में वह फिर चुनाव लड़ीं और तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं।
– 2014 में आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में चार साल की सजा हुई। सजा की वजह से उन्हें अपने पद से हटना पड़ा और ओ पन्नीरसेल्वम फिर मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए।
– 23 मई 2015 को उनके खिलाफ चल रहा केस खारिज हो गया। जयललिता पांचवीं बार फिर मुख्यमंत्री बनीं।
– 2016 में फिर चुनाव लड़ीं और जीतीं। छठी बार मुख्यमंत्री बनीं।

‘अम्मा : जयललिताज् जर्नी फ्रॉम मूवी स्टार टू पॉलिटिकल क्वीन’ की लेखिका वासंथी कहती हैं, ‘अगर एक लाइन में मैं कहूं तो वह बेहद बहादुर महिला थीं।’ साहस ही उन्हें दूसरों से अलग करता है। यह साहस उनके भीतर आखिर आया कहां से? कहां से लार्इं वह इतनी सख्ती? कोमल अम्मू जब अम्मा बनीं तो उनके ऊपर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे! वह आजीवन अविवाहित रहीं। एक ग्लैम गर्ल जो तमिल सिनेमा का सबसे चमकदार सितारा बना, क्या उसे किसी ने पाने की चाहत नहीं पाली? या उन्होंने किसी को नहीं चाहा? प्यार उन्हें हुआ नहीं या हुआ मगर जाहिर नहीं हुआ? उनसे जब इसी इंटरव्यू में सिमी गरेवाल ने पूछा कि क्या कभी उन्होंने बिना शर्त प्यार महसूस किया? तो उनका त्वरित जवाब था, ‘कभी नहीं।’ मगर उनके इस जवाब से तो कई सवाल खड़े होते हैं। उनकी मां क्या उन्हें सशर्त प्यार करती थीं। वह मां जिनका पल्लू जयललिता इस डर से नहीं छोड़ना चाहतीं थीं कि कहीं मां चली न जाएं। एम.जी.आर. जिन्होंने मां के मरने के बाद उन्हें सबसे ज्यादा तवज्जो दी। यह बात सच है कि एम.जी.आर. के साथ संबंधों की चर्चा खूब हुई। मगर जयललिता ने कभी इस संबंध को सरेआम स्वीकारा नहीं। तो क्या एम.जी.आर. से रिश्ते भी सशर्त थे। शायद हां, क्योंकि एम.जी.आर ने उनका साथ फिल्मी जीवन में तो खूब निभाया, राजनीतिक जीवन में भी उनके साथ मजबूती से खड़े रहे, मगर जीवनसाथी के तौर पर कभी आगे बढ़ने को राजी नहीं हुए। वह न तो अभिनेत्री बनना चाहती थीं और न ही नेत्री। मगर विधान ने उन्हें दोनों बनाया। यह खुद उन्होंने साक्षात्कार में कहा था। वहीं उन्होंने यह भी कहा कि ‘जब वह कुछ करती हैं तो पूरे मन से करती हैं। उसमें किसी कमी की कोई गुंजाइश नहीं छोड़तीं। इसलिए दोनों क्षेत्रों में वह सितारे की तरह चमकीं।’ यकीन नहीं होता कि ये दोनों क्षेत्र उनके चुने हुए नहीं थे। क्योंकि जब वह पर्दे पर होती थीं तो ऐसे छा जाती थीं मानो वह अपना सबसे महत्वपूर्ण पल जी रही हों। और जब राजनेता बनीं तो ऐसी मानो राजनीति उनके खून में घुली हो। सोचिए, अगर वह वो बनतीं जो वह बनना चाहतीं थीं तो वह सितारों से आगे शायद सूरज बनकर चमकतीं। वह वकील बनना चाहतीं थीं। खैर जो नहीं हुआ वह शायद नहीं होना था, मगर जो हुआ उसने जयललिता को बहुत लोकप्रिय मगर साथ ही विवादित भी बनाया। जनकल्याण की कई योजनाएं लाकर मशहूर होने वाली शख्सियत बनने के साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी के पुरुष नेताओं को अपने कदमों तक झुकाया। उनकी पार्टी के नेता कई बार अम्मा के कदम छूते, दंडवत करते देखे गए। अम्मा के राजनीतिक पोस्टर ऐसे बनाए गए जिसमें उन्हें देवी के अवतार के रूप में प्रचारित किया गया। कुछेक पोस्टर तो ऐसे भी बने कि ओबामा से लेकर पुतिन तक उनके आगे नतमस्तक दिखाए गए तो कुछेक में उनके समर्थक अपना सीना फाड़कर उनकी छवि अपने दिल में बैठाए दिखाए गए। अम्मा को पता था कि राजनीति में प्रचार कैसे करते हैं? कैसे जन के मन को छूते हैं? कैसे शत्रुओं को परास्त करते हैं। 1982 में राजनीति में आने के बाद उन्हें सबसे पहला राजनीतिक पद एआईडीएमके में प्रोपेगेंडा सचिव का ही मिला था। जाहिर है उन्होंने राजनीति की शुरुआत में ही प्रोपेगेंडा करना सीख लिया था।

सयासी सफर
-1977 में एमजीआर जब मुख्यमंत्री बने और 1982 मेंजयललिता भी सियासी मैदान में किस्मत आजमाने आ गर्इं। माना जाता है कि उन्होंने एमजीआर के कहने पर राजनीति शुरू की। मगर जया ने यह कभी नहीं माना। उनका कहना था कि सियासत में आना उनका व्यक्तिगत फैसला था। 1983 में वह एआईडीएमके में प्रोपेगेंडा सचिव बनीं।
– अपनी सादगी भरी वेशभूषा और असरदार भाषण के लिए जानी जाने वाली जया के बारे में उनके भाषण तैयार करने वाले सोलाई कहते हैं, ‘पहली बार जब मैंने इनके लिए भाषण लिखा तब उन्हें मैंने तीन बार ऊंची आवाज में बोलने के लिए कहा। मगर इसके बाद जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो स्क्रिप्ट को शब्दश: बिना देखे भाषण में उतार दिया। बाद में उनकी भाषण शैली के चर्चे राज्य ही नहीं देशभर में होने लगे।
– 1984 में जब एमजीआर बीमार पड़े तो उन्हें इलाज के लिए अमेरिका शिफ्ट करना पड़ा। उनका उत्तराधिकारी कौन होगा? खींचतान शुरू हुई। 1987 में एमजीआर की मौत के बाद उनकी पत्नी जानकी और जयललिता के फॉलोवर पार्टी में दो धड़ों में बंट गए। जयललिता ने खुद को एमजीआर का उत्तराधिकारी नियुक्त किया। 1989 में जयललिता ने चुनाव लड़ा और जीतीं।

रजत पटल पर सितारा बन चमकीं
15 साल की उम्र में उन्होंने फिल्मों में कदम रखे। पहली फिल्म कन्नड़ भाषा में थी। पहली तमिल फिल्म 1965 में वेनिरा आदय्यै आई। वह न केवल शास्त्रीय संगीत में माहिर थीं बल्कि भारतनाट्यम, मोहिनीअट्टम, मणिपुरी कथक में पारंगत थीं। पहली फिल्म एमजीआर के साथ आदिमाइ पेन्न आई। इसके बाद तो एमजीआर के साथ इनकी जोड़ी खूब जमी। हालांकि दोनों की उम्र में 31 साल का बड़ा फर्क था। 1966 में उन्होंने एक के बाद एक ग्यारह हिट फिल्में दीं। उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।