दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने निजी क्षेत्र की तीन बिजली वितरण कंपनियों के खातों का ऑडिट कैग से कराने के दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति आर एस एंडलॉ की दो सदस्यीय पीठ ने कहा कि कोर्ट ने बिजली वितरण कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है। पीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि ऑडिट की अब तक की प्रक्रिया और सरकारी ऑडिटर सीएजी की मसविदा रिपोर्ट अमान्य मानी जाएगी। इस आदेश से मुख्यमंत्री केजरीवाल को तगड़ा झटका लगा है क्योंकि आम आदमी पार्टी ने बिजली की बढ़ी कीमत को चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाया था। कीमतों में कटौती के वादे पर ही उन्हें दिल्ली की जनता ने भारी समर्थन दिया था। वैसे केजरीवाल सरकार ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है।

दिल्ली की बिजली वितरण कंपनियों टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना लिमिटेड ने आप सरकार के सात जनवरी, 2014 के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें इन कंपनियों के खातों का ऑडिट कैग से कराने के आदेश दिए थे। इन वितरण कंपनियों ने हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के उस आदेश को भी चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने कैग ऑडिट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। 24 जनवरी, 2014 के आदेश में एकल पीठ ने बिजली वितरण कंपनियों से कहा था कि वे ऑडिट की प्रक्रिया में कैग के साथ पूरा सहयोग करें। बिजली वितरण कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दो सदस्यीय पीठ ने यूनाइटेड आरडब्ल्यूएज ज्वाइंट एक्शन (उर्जा) नामक गैर सरकारी संगठन की वह जनहित याचिका भी खारिज कर दी जिसके तहत डिस्कॉम के खातों का ऑडिट कैग से कराने की मांग की गई थी।

दिल्ली सरकार ने अदालत में दलील दी थी क बिजली वितरण की निजी कंपनियों के खातों का कैग ऑडिट इसलिए जरूरी है क्योंकि ये कंपनियां सार्वजनिक काम करती हैं। बिजली वितरण कंपनियां निजी कंपनियों और दिल्ली सरकार के बीच 51:49 प्रतिशत का साझा उपक्रम हैं। सरकार ने कहा था कि वह बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज को रोकने या उसमें हस्तक्षेप की कोशिश नहीं कर रही बल्कि वह तो सिर्फ उन्हें सार्वजनिक लेखा परीक्षण के दायरे में लाने की कोशिश कर रही है क्योंकि इन कंपनियों में 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी दिल्ली सरकार की है और उसने इन कंपनियों में पूंजी भी लगाई है।