16-31 oct2015जिंदगी रुकती नहीं है। हर ठहराव के बाद वह फिर से खड़ी होकर अपनी रफ्तार से चलने लगती है। बिसहड़ा गांव के लोगों का जीवन भी पटरी पर लौट रहा है। गांव की पहचान जरूर बदल गई है। अब दुनिया भर में यह मोहम्मद अखलाक के गांव के नाम से मशहूर हो गया है। मोहम्मद अखलाक के सुपुर्दे खाक होने के सत्रह दिन बाद रविवार बारह अक्तूबर को गांव में एक बार फिर लोग जुटे। जी हां हिंदू और मुसलमान दोनों। 28 सितम्बर की रात जितने लोग अखलाक के घर जमा हुए थे उससे ज्यादा लोग हकीम के घर जुटे। लेकिन एक फर्क था। इस बार किसी के चेहरे पर गुस्सा नहीं था कोई किसी से सवाल नहीं पूछ रहा था, कोई हमलावर नहीं था और कोई बचाव के लिए गुहार नहीं लगा रहा था। सब लोग इकट्ठे हुए थे खुशी बांटने के लिए। हकीम के घर बारात आई थी। वह भी एक नहीं दो दो। उसकी दोनों बेटियों की शादी थी।

बिसहड़ा गांव में एक अजीब सी खामोशी है। इस खामोशी को बारात का उत्साह, गाजे बाजे का शोर औरपुलाव की खुशबू भी नहीं तोड़ पाई। खामोशी आने वाले दिनों की अनिश्चितता के कारण है। गांव वालों को पता है कि जैसे जैसे स्थिति सामान्य होती जाएगी, पुलिस का व्यवहार बदलने लगेगा। 28 सितम्बर की घटना में किस किस के खिलाफ मुकदमा दायर होगा, पुलिस तय करेगी। इसमें गांव के लोगों का आपसी राग द्वेष और स्थानीय राजनीति भी काम करेगी। गांव वालों के मन में पुलिस का डर, मीडिया से नाराजगी और नेताओं के प्रति आक्रोश का भाव है। उन्हें लग रहा है कि आने वाले दिनों में उन पर जो मुसीबत आएगी उसके लिए मीडिया ही जिम्मेदार है।

गांधी जयंती के दौरान दादरी का एक गांव बिसहड़ा देश भर की सुर्खियों में था। लेकिन ऐसी वजह से जिसका गांधी जी या उनके सिद्धांतों से दूर दूर तक लेना देना नहीं था। दरअसल, वहां गोमांस को लेकर हुए विवाद में 28 सितंबर को एक ग्रामीण अखलाक की हत्या हो गई थी। गांव पुलिस छावनी में तब्दील हो गया था। नेताओं का तांता लगा था। कवरेज करने पहुंचे मीडियाकर्मियों को गांव की महिलाओं ने दौड़ा दौड़ाकर पीटा। देश भर की राजनीति गरमा गई थी। सभी दलों के बड़े नेता भड़काऊ बयानों के साथ मैदान में आ गए। टीवी चैनल और समाचार पत्रों की हेडलाइंस इस पर थी। वहां से हजार किलोमीटर दूर बिहार के चुनाव में भी यह मुख्य मुद्दा बन चुका था। घटना के 15 दिन बीतने के बाद भी इसका प्रभाव कम होता नहीं दिख रहा। पूरी घटना और उसके कारणों को लेकर कई तरह की कहानियां हैं। आखिर क्या है इस घटना की सच्चाई, जिस पर सीएम से लेकर पीएम और प्रेसीडेंट तक को बोलना पड़ा।

पहली कहानी

हमले में मारा गया अखलाक
हमले में मारा गया अखलाक

गांववालों का कहना है कि कुछ लोगों ने अखलाक को पॉलीथीन में कुछ फेंकते देखा। बाद में कुत्तों ने उस पालिथीन को फाड़ दिया तो लड़कों को उसमें से गोमांस के अवशेष दिखे। इसके बाद लड़कों ने शोर मचाया तो और लोग जुट गए। सभी पास ही में स्थित अखलाक के घर के पास पहुंच गए और उससे बाहर निकलने को कहने लगे। इसी दौरान कुछ लड़के मंदिर में अनाउंस कराने चले गए। दरवाजे के बाहर जमा ग्रामीणों का रुख देख अखलाक ने अपने एक पड़ोसी को मदद के लिए फोन किया। गोहत्या के आरोप पर अखलाक ने मजबूत प्रतिवाद किया तो भीड़ उग्र हो गई और दरवाजा तोड़कर अंदर घुस गई। भगोने और फ्रिज में मांस मिलने के बाद लोगों ने उसकी पिटाई शुरू कर दी। उसे बचाने आए उसके बेटे को भी बुरी तरह पीटा। पुलिस पहुंचने की सूचना मिलने पर पिटाई करने वाले लोग भाग निकले। इसमें अखलाक की मौत हो गई। गांववालों का कहना है कि यह सब कुछ अचानक हुआ। गोहत्या की बात से लोग नाराज हो गए और अखलाक के प्रतिवाद से मामला और बिगड़ गया। हत्या का इरादा नहीं था। जो लोग इस घटना के समर्थन में नहीं थे, वे भी भीड़ के आक्रोश देखकर चुप रह गए।

दूसरी कहानी

हमले में बुरी तरह से घायल अखलाक का छोटा बेटा दानिश
हमले में बुरी तरह से घायल अखलाक का छोटा बेटा दानिश

गोमांस के अवशेष देख लड़कों ने गांव में खबर की। कुछ बुजुर्ग जमा हुए तो कहा गया कि बात करने के लिए अखलाक को बुलाकर लाओ। पर अखलाक ने आने से मना कर दिया और विवाद बढ़ने पर धारदार हथियार लेकर दरवाजे पर खड़ा हो गया। गुस्से में आई भीड़ में से कुछ युवक घर में जबरन घुस गए और फ्रिज में मांस मिलने पर अखलाक को पीटना शुरू कर दिया। रोकने आए उसके छोटे बेटे दानिश को भी पीटा। जब पुलिस आने की सूचना मिली तो बाकी लोग तो वहां मौजूद रहे पर पीटनेवाले वहां से खिसक गए।

तीसरी कहानी

पुलिस के अनुसार बिसहड़ा गांव का ही रहनेवाला होमगार्ड विनय पहले से ही अखलाक से रंजिश रखता था। किस बात की रंजिश थी, यह कोई साफ नहीं कर पा रहा। उसी ने लोगों को बताया कि उसके यहां गाय काटी गई है। फिर अखलाक के घर पहुंचने के लिए उसी ने अनाउंसमेंट कराई और लोगों को भड़काया। पुलिस के मुताबिक, 28 सितंबर की रात विनय विशाल और शिवम के साथ मंदिर पहुंचा। पुजारी दरवाजा बंद कर रहे थे। विनय ने पुजारी से कहा कि वह इस बात का एलान करे कि एक गाय को काटा गया है और सभी को मंदिर पर इकट्ठा होना चाहिए। दबाव में पुजारी ने एलान कर दिया। जब लोग इकट्ठे हो गए, तो विनय ने भीड़ से कहा कि अखलाक ने गाय काटी है और उसे सबक सिखाया जाना चाहिए। इस बीच कुछ लड़के यह देखने गए कि अखलाक और उसका बेटा घर पर हैं कि नहीं। विनय की अगुआई में भीड़ अखलाक के घर पहुंची और हमला कर दिया।

चौथी कहानी

अखलाक की बेटी शाइस्ता के अनुसार 28 सितंबर की शाम बाहर शोर शराबा सुनाई दिया। घर के आसपास एक उन्मादी भीड़ थी। वे दरवाजा तोड़ने का प्रयास कर रहे थे। जब वे असफल रहे तो दीवार को क्षतिग्रस्त कर दिया और अंदर घुस आए। पहले ग्राउंड फ्लोर पर रखे फ्रिज को चेक किया फिर फर्स्ट फ्लोर पर गए। वहां उन्हें फ्रिज में मीट मिला तो उनमें से एक चिल्लाया-सबूत मिल गया। उसके बाद लोगों ने अखलाक को पीटना शुरू कर दिया। उन्होंने शाइस्ता और उसकी मां के साथ दुर्व्यवहार भी किया। अखलाक की मां ने बाथरूम में अंदर से खुद को बंद कर लिया था। भीड़ अखलाक को खींचकर घर के पास स्थित ट्रांसफार्मर पर ले गई। वे लगातार उसे और दानिश को पीट रहे थे। कुछ मिनटों के बाद ही पुलिस आ गई। एक टीम सुरक्षा में लगी और दूसरी अखलाक और दानिश को अस्पताल ले गई। लेकिन अखलाक की मौत पहले ही हो चुकी थी। हमले के समय बिजली नहीं थी। घर में इन्वर्टर से हल्का उजाला था। इसलिए घर में घुसनेवाले सभी लोगों को वह पहचान नहीं पाई पर उनमें से दस के चेहरे साफ दिखे, जिनके नाम उसने पुलिस को बता दिए।

सरकार और प्रशासन का रवैया

bisada9पुलिस सूचना के 20 मिनट में पहुंच गई थी। आठ लोगों पर नामजद और अन्य अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई। पांच अक्टूबर की रात एक युवक जयप्रकाश की मौत से पुलिस फिर फंस गई। गांववालों का आरोप है कि पुलिस ने अखलाक मामले में उसका उत्पीड़न किया था, इससे डरकर उसने जान दे दी। हालांकि, पुलिस ने किसी तरह से उससे पूछताछ किए जाने से इनकार कर दिया। गांव के लोगों का कहना है कि अज्ञात में किसी को भी उठा लेने का दबाव पुलिस बना रही है। पुलिस ने धारा 144 लागू होते हुए भी भाजपा विधायक संगीत सोम को गांव में माहौल भड़काने का अवसर दिया। अरविंद केजरीवाल, राहुल गांधी, असदउद्दीन ओवैसी और महेश शर्मा जैसे राजनेताओं को आने जाने दिया। बसपा के नसीमुद्दीन सिद्दीकी दल बल के साथ आए और 11 लाख रुपए अखलाक के परिवार को दे गए। इस पर अखिलेश कैसे पीछे रहते, आजम खान की सलाह पर पीड़ित परिवार को 45 लाख रुपये, नौकरी और एक मकान देने का वादा कर दिया।

राजनीति पर इसका असर

इस क्षेत्र के सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री महेश शर्मा गांव पहुंचे और इस घटना को हादसा करार दिया। इसके बाद वे विपक्षी दलों और बुद्धिजीवियों के निशाने पर आ गए। घटना को मिल रही मीडिया कवरेज के कारण प्रचार पाने वाले नेता एक-एक कर कूदने लगे। सबसे पहले ओवैसी पहुंचे और अखलाक के परिवार से मिलकर चले गए। ग्रामीणों की मानें तो ओवैसी की उपस्थिति के दौरान एक अधिकारी के साथ मारपीट भी हुई। फिर अरविंद केजरीवाल पहुंचे और ग्रामीणों के विरोध के कारण पुलिस सुरक्षा में अखलाक के परिवार से संवेदना जताई और बाद में इस पर एक विज्ञापन भी जारी कर दिया।

भाजपा के संगीत सोम ने तो गांव पहुंचकर आरोपियों से समर्थन जताते हुए अखलाक को गो हत्यारा करार दे दिया। सपा नेता आजम खान ने अपनी ही सरकार को किनारे रख संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को इस मसले पर चिट्ठी लिख डाली। इसके बाद बिहार चुनाव में लालू यादव ने मुस्लिम वोटरों को लुभाने के लिए यह बयान दे दिया कि कुछ हिंदू भी गाय का मांस खाते हैं। इसके बाद बिहार के भाजपा नेताओं ने इसे मुद्दा बना लिया और सार्वजनिक भाषणों से सोशल मीडिया तक गोमांस और बिसहड़ा मुद्दा बन गया। प्रधानमंत्री मोदी ने भी आठ अक्टूबर को बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान लालू यादव के बहाने इस मामले को ठीक से उठा दिया।

साध्वी प्राची और हिंदू युवा वाहिनी जैसे संगठन भी इसमें कूद पड़े। दो बड़े साहित्यकारों नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने भी इस मसले पर अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का एलान कर दिया। हालांकि, बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग इस कदम को सिर्फ चर्चा में आने की कसरत ही मान रहा है।

क्या इसे रोका जा सकता था

अखलाक के परिजनों से मिलते केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा
अखलाक के परिजनों से मिलते केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा

अगर आसपास के अन्य मुस्लिम परिवार और जिम्मेदार हिंदू ग्रामीण पुलिस के आने तक धार्मिक भावनाएं आहत होने से उग्र हुई भीड़ को समझाने बुझाने का प्रयास करते।

गांव का इतिहास

नोएडा जिले के दादरी विधानसभा का यह गांव सिसौदिया ठाकुर बाहुल्य है। यहां की आबादी करीब 12 हजार है। इस इलाके को 60 गांव सिसौदिया और 84 गांव तोमर राजपूतों का होने के कारण साठा चौरासी कहा जाता है। गांव में स्थित इंटर कॉलेज के प्रिंसिपल रामकुमार  बताते हैं कि गांव करीब 1421 ईस्वी में राजस्थान से आए राजपूतों से बसा था। 15-20 मुस्लिम परिवार भी इस गांव में करीब 70-80 सालों से थे, पर कभी किसी विवाद की बात नहीं सुनी गई। पास ही के गांव देहरा में गहलौत मुस्लिमों की आबादी है। ये पहले गहलौत या सिसौदिया राजपूत थे और मुगलकाल में मुसलमान बन गए थे पर अभी भी उनके रीति रिवाज राजपूतों वाले हैं। बकरीद वाले दिन आरोपियों में शामिल लोग भी अखलाक के घर खाने गए थे। बिसहड़ा में लोग औसत शिक्षित हैं और ज्यादातर फौजी या शिक्षक हैं।

अखलाक का परिवार

अखलाक का बड़ा बेटा सरताज और छोटा दानिश गांव के ही इंटर कॉलेज में पढ़े हैं और पढ़ाई में सामान्य थे। उसकी बेटी शाइस्ता घर पर ही सिलाई का काम करती है। अखलाक खुद लुहार था और इंटर कॉलेज परिसर में वेल्डिंग का काम करता था। गांववालों का मानना है कि इधर कुछ दिनों से वह मजहबी हो गया था और मस्जिद में बैठकें करता था। कुछ गांववालों ने बताया कि वह पाकिस्तान गया था और लौटकर आया तो उसने कार खरीदी थी। लेकिन तथ्यों के अनुसार वह पाकिस्तान 1988 में किसी रिश्तेदार के यहां गया था और कार उसके एयरफोर्स में कार्यरत बेटे सरताज की शादी में मिली थी। आसपास के लोगों से कभी इस परिवार के लोगों का कोई विवाद नहीं हुआ था। उसके भाई का घर भी पास है पर उनसे कोई खास प्रगाढ़ता नहीं थी।

बिसहड़ा के हालात

पांच अक्टूबर को जब हम बिसहड़ा जाने की तैयारी में थे तो वहां साथ जाने वाले स्थानीय पत्रकार ने इसके लिए मना कर दिया और सलाह दी कि अभी वहां माहौल ठीक नहीं है। मीडियाकर्मियों को देखते ही गांव वाले पीट देते हैं। लेकिन अगले दिन ही एनएच 24 से धौलाना सलारपुर होते हुए हम बिसहड़ा पहुंच गए। गांव से दो किलोमीटर दूर से ही पुलिस की सतर्क उपस्थिति दिख रही थी। गांव के नजदीक पहुंचते ही पुलिस की भारी उपस्थिति का अहसास हुआ। गांव में प्रवेश करने वाले सभो रास्तों पर पुलिस की गाड़ियां तैनात थी। अंदर भो जगह जगह प्रशासन और पुलिस के लोगों की मौजूदगी दिख रही थी। महाराणा प्रताप की मूर्ति वाले प्रवेश द्वार से अंदर जाते ही दुकानों की कतार थी पर सबके शटर बंद थे। सिसौदिया सर्विस सेंटर पर मौजूद एक ग्रामीण ने बताया कि ये दुकानें गांव में रहने वाले मुस्लिम परिवारों की है। फिलहाल ये सभो गांव छोड़ आसपास के रिश्तेदारों के यहां चले गए हैं। पुलिस वालों की मौजूदगी के कारण गांव के लोग खुलकर बात करने को तैयार नहीं थे और इस बात की सलाह दे रहे थे कि आगे जाना ठीक नहीं है। प्रशासन की कोशिशों से शांति के बयान दे रहे ग्रामीण नेता मुसलमान परिवारों में पूरा भरोसा नहीं जगा पा रहे। अब गांव के लोग चाहते हैं कि पुलिस इसे साजिशन वारदात के रूप में नहीं बल्कि गैर इरादतन घटना के रूप में ही दर्ज करे। उन्हें डर है कि प्रदेश सरकार के दबाव में पुलिस मीट सैंपल से लेकर मामला दर्ज करने तक में गड़बड़ कर सकती है। इसके रोकने के लिए साठा चौरासी और पुंडीरों की महापंचायत बुलाने की भो सुगबुगाहट है।

सुधरते दिख रहे हालात

10 अक्टूबर को फिर हम लोग बिसहड़ा पहुंचे। मीडियाकर्मी गांव के बाहर स्थित ढाबे से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। गांव के गेट पर और अंदर पुलिस की मौजूदगी पहले की तरह ही दिखी पर अब वे थोड़े सहज दिख रहे थे। गांव की दुकानों पर रौनक लौटती दिख रही थी। स्कूल की गाड़ियों में बच्चे भरे थे। गैस सिलेंडर लेने जा रहे ग्रामीण जगपाल उलटे सवाल पूछने लगे कि आपको कहीं तनाव दिखता है। मुलायम सिंह की साजिश वाले बयान से सभो असहमत थे। एक बुजुर्ग कहते हैं कि कुल 20 मिनट का एक ज्वार था। एक ग्रामीण ने कहा कि अगर यह घटना सिर्फ मुसलमान होने की वजह से हुई तो उसके ठीक बगल में ही अन्य मुस्लिम परिवार थे। लोगों ने उनमें से किसी को आंख भो उठाकर नहीं देखा, क्यों? लोग ईद बकरीद में खाना खाने क्यों जाते? गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति यशपाल सिंह बताते हैं कि यहां मुसलमानों से रंजिश जैसी कोई बात नहीं है। आज भो उनके अधिकतर काम हिंदुओं के सहयोग से ही होते हैं। जब हमलोग उनसे बात कर रहे थे तभो पता चला कि एक मुसलिम परिवार में दो बेटियों की शादी है और उसके इंतजाम में गांव के हिंदू भो जुटे हैं। पड़ोसी गांव के जीतपाल सिंह हमें लेकर प्रधान संजय सिंह के यहां गए। वहां कई लोग बैठे हुए हालात पर चर्चा कर रहे थे। एक व्यक्ति ने कहा कि इस घटना से गांव की शांति भंग हो गई। हमारे बच्चों का कैरियर खराब हो गया। एक ने कहा कि मीडिया और नेता सब एकतरफा हो गए। सच जानते समझते हुए भो कोई बोलने को तैयार नहीं। गांव के नौजवान प्रधान संजय कहते हैं कि हमारा काम सभो के सहयोग से गांव की शांति बनाए रखना है। वे इस बात से वाकिफ हैं कि गांव का एक तबका प्रशासन के साथ करीबी को लेकर अभो उनसे नाराज है।

मुस्लिम बेटियों की शादी

प्रधान संजय, जीतपाल और अन्य लोगों के साथ नजदीक के प्राइमरी स्कूल पहुंचे, जहां हकीम की बेटियों की शादी के लिए मिठाई बन रही थी। दो प्रशासनिक अधिकारी जायजा लेकर पसीना पोछते लौट रहे थे। हकीम ने बताया कि फिलहाल तो कोई दिक्कत नहीं है। पास के गांव से ही दोनों बारातें आनी है। गांववालों के सहयोग से सारी व्यवस्था हो गई है। अखलाक के हादसे का असर तो था पर उससे बाहर आकर आगे बढ़ने की मन:स्थिति भो दोनों तरफ दिख रही थी।

जयप्रकाश को भी मदद मिले

कुल मिलाकर गांव के लोग पुलिस के लफड़े और नेताओं की बयानबाजी से छुटकारा चाहते हैं और चाहते हैं कि उनकी जिंदगी बिना किसी बाहरी की दखलंदाजी के, पहले की तरह हो जाए। वे चाहते हैं कि अखलाक की बात हो पर साथ ही जयप्रकाश की भो मदद हो, जिसकी मौत के समय उसके घर में एक मुट्ठी आटा भो नहीं था। गांव की महिलाएं तक इस बात को एकदम नहीं उठाने के लिए मीडिया और नेताओं से नाराजगी जता रही थीं। जीतपाल सिंह इस बात के लिए लोगों को राजी कर रहे थे कि गांव के लोग ही मिलकर जयप्रकाश के परिवार की आर्थिक मदद करें।

मीडिया से नाराजगी

गांव मीडिया से इस बात पर नाराज था कि मीडिया सिर्फ एक पक्ष की बात कर रहा है और गांव की छवि खराब कर रहा है। अखलाक की मौत एक स्थिति से उत्पन्न प्रतिक्रिया का परिणाम था, न कि पूर्वनियोजित साजिश का। उनका कहना है कि किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि वर्षों से साथ रहने वाले, ईद बकरीद में मुसलिम परिवारों के यहां खाना खाने वाले लोग अचानक इतने गुस्से में क्यों आ गए। आखिर ऐसा क्या हुआ था। पुलिसवाले भो मीडिया की पहरेदारी से परेशान थे। कुछ गांववाले कहते हैं कि पुलिसवालों ने ही मीडियाकर्मियों को गांव से खदेड़ने को कहा। इसके बाद महिलाएं डंडे और पत्थर लेकर पत्रकारों को पीटने और खदेड़ने लगी। बाद में गांव के बाहर ही ढाबे पर जमे मीडियाकर्मी पीपली लाइव जैसा दृश्य बनाते रहे। ढाबे के पास के खेतों से और गांव के गेट के बाहर से ही लाइव के लिए बाइट दे रहे पत्रकारों का गांव के लोग मजाक बना रहे थे।

कुछ अनसुलझे सवाल

  • किसने अखलाक को मांस अवशेष फेंकते देखा?
  • किस किस ने देखा कि अवशेष गोमांस का था?
  • उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र को ोजी रिपोर्ट में किसका मांस था, इसका जिक्र क्यों नहीं किया?
  • अगर यह हमला रंजिश में सोच समझकर किया गया था तो अखलाक से किसी की क्या रंजिश थी?
  • गांव में बसे मुस्लिम और हिंदू परिवारों में से कोई भो उसे बचाने क्यों नहीं आया?
  • धारा 144 लगी होने के बावजूद नेताओं को जाने की अनुमति किसने और किस आधार पर दी?
  • केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा को मामले को हादसा करार देने की इतनी जल्दी क्या थी?

क्या कहते हैं मुस्लिम नेता

मामला संयुक्त राष्ट्र ले जाना खतरनाक कदम 

(असदुद्दीन ओवैसी, सांसद, मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन)

दादरी के मसले को अवाम मुक्तदा (संयुक्त राष्ट्र) में ले जाना बहुत खतरनाक कदम है। इसकी जितनी भो निंदा की जाय कम है। इस हरकत से आजम खान ने अपनी ही सरकार का मजाक बनाया है। हिंदुस्तान एक जम्हूरी मुल्क है और हमारे पास अपने सभो मसले को हल करने की सलाहियत है। हमें किसी बाहरी ताकत के दखल की जरूरत नहीं है। इस तरह की हरकत केवल अपनी सरकार की नाकामी को ढकने का प्रयास है। समाजवादी पार्टी के किसी नेता और आजम खान ने दादरी जाने की जहमत नहीं की। आजम खान तो मुजफ्फरनगर जिले के प्रभारी मंत्री भो हैं, लेकिन दंगे के दो साल बाद भो दंगा पीड़ितों के आंसू पोंछने का समय नहीं निकाल पाए। उत्तर प्रदेश में हर फसाद के पीछे अगर भाजपा की साजिश है तो सपा की सरकार क्या कर रही थी। हर शहरी की जान माल की हिफाजत करना सरकार का बुनियादी फर्ज है और सपा सरकार अपने फर्ज को निभाने में नाकाम रही है।

हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश

( सलीम इंजीनियर, राष्ट्रीय सचिव, जमात-ए-इस्लामी, दिल्ली)

दादरी कोई अकेली घटना नहीं है। देश में मुस्लिम के खिलाफ नफरत का माहौल बनाया जा रहा है। हिन्दू राष्ट्र बनाने की कोशिश की जा रही है जिसके कारण दुनिया में हमारा मजाक बन रहा है। केंद्र व राज्य सरकार दोनों का फर्ज है कि वे अपना राजधर्म निभाएं और कानून का राज स्थापित करें। समाजवादी पार्टी जैसे सियासी दल तो केवल अपना सियासी नफा-नुक्सान का हिसाब करने में जुटे हैं। दादरी के पीड़ित परिवार से वहां जाकर मिलने के बजाय मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनको लखनऊ में अपने राज दरबार में बुलाया, यह बहुत शर्म की बात है। सबसे बड़ी चिंता की बात है कि प्रधानमंत्री खामोश हैं। मुसलमान व अन्य अल्पसंख्यक समुदाय अपनी धार्मिक पहचान को बनाये रखना ही नहीं, उसकी पुरजोर तरीके से हिमायत चाहते हैं, दादरी जैसी घटनाएं अल्पसंख्यकों के इस प्रयास को दबाने की साजिश है।

सोची-समझी साजिश का नतीजा 

(मौलाना जुल्फिकार अहमद, शहर मुफ़्ती -मुजफ्फरनगर व सदस्य उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग)

दादरी की घटना कोई हादसा नहीं, एक सोची-समझी साजिश का नतीजा है । संघ परिवार और भारतीय जनता पार्टी 2017 के प्रदेश विधानसभा चुनाव तक उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक तनाव बनाये रखना चाहते हैं। कभो लव जेहाद, घर वापसी, कभो हिन्दू लड़कियों से छेड़खानी और अब गाय का मसला उठा दिया। मुस्लिम समुदाय गोमांस के पक्ष में नहीं है क्योंकि किसी भो दूसरे मजहब की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना गैर इस्लामी है। वैसे भो उत्तर प्रदेश में गोहत्या पर कानूनन पाबंदी है। भारतीय जनता पार्टी पर इलजाम लगाने के साथ मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि इस तरह के आये दिन रोज होने वाले फसाद की बड़ी वजह सरकार की ढिलाई और लचर प्रशासन भो है। सरकार का फर्ज बनता है कि कोई भो शख्स, किसी भो धर्म या जाति का हो, खुराफात करने वाले के साथ सख्ती से पेश आए। यदि सरकार के कामकाज का यही तरीका बना रहा तो समाजवादी पार्टी को 2017 के विधानसभा चुनाव में इसके गंभोर परिणाम भुगतने होंगे।

यूपी की हूकुमत जिम्मेदार

(मौलाना गुलाम रसूल वस्तानवी, जामिया इस्लामिया इश्हातुल उलूम, अक्लकुवा, नंदुरबार, महाराष्ट्र के सदर)

दादरी का वाकया बेहद अफसोसनाक है। एक खानदान पर बड़ा जुल्म किया गया। सोची समझी साजिश के तहत एक इंसान का कत्ल कर दिया गया। गोहत्या एक अलग मसला है। लेकिन इस बुनियाद पर किसी के घर में घुस कर किसी आदमी का कत्ल कर देना कि उसके घर में गोमांस रखा है, यह चिंता की बात है। हुकूमत हर शहरी की निजी जिंदगी और प्राइवेसी पर हाथ डाल रही है। इस घटना के लिए मैं पूरी तौर पर उत्तर प्रदेश की हुकूमत को जिम्मेदार मानता हूं। जिन लोगों ने अखलाक के घर में घुस कर उसका कत्ल किया वो हुकूमत की ताकत की बुनियाद पर गए थे। उनको भरोसा था कि इस काम को अंजाम देने के बाद हुकूमत उनकी पुस्त पनाही करेगी। यदि किसी ने कानून के खिलाफ काम किया तो कानून उसकी जवाबदेही तय करेगा।