हिंदी के मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंह के इंटरव्यू के पहले भाग –मैं नामवर से कम नहीं- में आपने पढ़ा था उनके जीवन के अनछुए पहलुओं को। दूसरे और अंतिम भाग में जानिए उनसे जुड़े कुछ और तथ्य और जानिए आज के किन युवा साहित्यकारों ने उन्हें प्रभावित किया है।

बनारस और इलाहाबाद पहले हिन्दी साहित्यकारों का गढ़ हुआ करते थे। अब खाली होते जा रहे हैं। वजह ?

यह परिवर्तन आया 1960 में। जब रोजगार की तलाश में बनारस व इलाहाबाद  से लोग दिल्ली व मुंबई जाने लगे क्योंकि उन शहरों में रोजगार की संभावना ज्यादा थी। जाने वालों में मध्य वर्ग के युवक ज्यादा थे। पत्रिकाएं, प्रकाशन संस्थान भी वहीं थे। उन महानगरों में नया वर्ग विकसित हो रहा था। वहां सुविधाएं व संसाधन भी ज्यादा थे। इसके चलते साहित्य के पुराने गढ़ धीरे  धीरे खंडहर होते गये और नये गढ़ विकसित होते गए।

आप आज जो हैं, उसमें आपके बड़े भाई  और हिन्दी साहित्य के कद्दावर आलोचक  नामवर सिंह का कितना योगदान है ?

यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि नामवर जी मेरे बड़े भाई ही नहीं, मेरे संरक्षक भी रहे हैं और गुरु भी। साहित्य की मेरी समझ उनके सम्पर्क से विकसित हुई है। लेकिन मेरे सामने वह चुनौती की तरह खड़े रहे।  लंबे समय तक मेरी पहचान नामवर के भाई के रूप में ही रही। यह बात मेरी पीठ पर बराबर कोड़े की तरह पड़ती रही और अहसास कराती रही कि मैं इसे कलंक की तरह नहीं बल्कि वरदान की तरह लूं। यह शिक्षा उन्हीं की (नामवर सिंह की) दी हुई थी कि हम घर में तो भाई हैं लेकिन साहित्य में नहीं। मेरे भीतर एक जिद थी कि मैं अपने लेखन से अपना होना साबित करूंगा।आज  मेरी अपनी अलग पहचान है और अपने (कथा साहित्य के ) क्षेत्र में नामवर जी से कम नहीं ।

आपकी पुस्तक काशी का अस्सी पर चन्द्र प्रकाश पांडेय ने फिल्म बनाई है- मोहल्ला अस्सी । उस पर विवाद क्यों है ?

विवाद गालियों को लेकर हुआ है। धर्मनाथ शास्त्री जो मुख्य चरित्र हैं, उनके सपने में शिव आए हैं और सपने में आने वाले शिव गाली देते हैं। मेरे उपन्यास में यह प्रसंग नहीं है । आपत्ति इस बात पर है कि शिव के मुख से गाली क्यों दिलवाई गई है। बाकी बहुत सारी फिल्में इसके पहले भी आ चुकी हैं जिनमें गालियों का उपयोग हुआ है। मैं मानता हूं कि फिल्म एक निर्देशक की अपनी रचना है। कुछ बेहतर करने के लिए वे कुछ बदलाव करते हैं।  कुछ सुधार करना या न करना उनकी स्वतंत्रता है।

आपकी सबसे पढ़ी गई व प्रसिद्ध पुस्तक होने के बाद भी काशी का अस्सी पर कोई पुरस्कार ?

अब तक कोई पुरस्कार नहीं मिला जबकि यह मेरी सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली व प्रिय पुस्तक है।

क्या हिन्दी साहित्य में जो विचारधारा की लड़ाई थी, उसने बहुत से लेखकों को आगे बढ़ने का मौका नहीं दिया ?

वैचारिकता का मतलब है दुनिया को देखने की दृष्टि । बगैर दृष्टि के लेखन संभव नहीं है। नजरिया का होना, विचार का होना बहुत जरूरी है।

क्या भोपाल में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन में सब ठीक रहा ?

विश्व हिन्दी सम्मेलन में भाषा व साहित्य पर बात नहीं हो , उससे जुड़ा कोई व्यक्ति नहीं हो तो वह सम्मेलन व्यर्थ है। भोपाल में हुए 10 वें विश्व हिन्दी सम्मेलन में यह हुआ।

आपको अपनी कौन सी कृति बेहद पसंद है ?

अपनी लिखी कहानियों में कविता की नई तारीख । उपन्यासों में  काशी का अस्सी।

आपके अनुसार हिन्दी के  तीन सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार कौन  हैं  और अच्छा कार्य कर रहे तीन युवा साहित्यकार कौन ?

सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार है- तुलसीदास, प्रेमचंद  और निराला । अच्छा कार्य कर रहे युवा साहित्यकार हैं – चंदन पांडेय,  उमाशंकर चौधरी  ( दोनों कथाकार) और अनुज लुगुन (कवि) ।

आपको हाल ही में उप्र सरकार का साहित्य का सबसे बड़ा पुरस्कार भारत भारती  मिला है । कुछ साहित्यकारों का कहना है कि यह बड़ा विवादास्पद पुरस्कार है  जो सत्ता प्रतिष्ठान के करीबियों को ही मिलता है। 

इतना जानता हूं कि राज्य में भाजपा की सरकार होती तो मुझे यह पुरस्कार नहीं मिलता।  मैं सपाई नहीं हूं । मुलायम या मायावती की जातिवादी सरकार के विरुद्ध भी मैंने काफी कुछ लिखा है ‘काशी का अस्सी’ में । कहने वालों का क्या।