रमेश कुमार ‘रिपु’

छत्तीसगढ़ में 13 मार्च को बख्तरबंद वाहन माइन्स प्रोटेक्ट व्हीकल (एमपीवी) पर नक्सलियों के हमले ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर सुरक्षा बल के जवान कब तक शहीद होते रहेंगे? लाल आतंक के आगे जिंदगियां कब तक बेबस रहेंगी। लाल जाल में फंस कर फिर नौ जवान शहीद हुए। इस बार नक्सलियों ने जवानों पर सीधा हमला नहीं किया। विस्फोट करके दहशत फैलाई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 2005-06 में भी सरकार ने फोर्स के जवानों को माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल दिए थे लेकिन ये व्हीकल भी जवानों की जान बचाने में नाकाम हुए थे। जवानों को सरकार ने जो एमपीवी मुहैया कराई है वह 40 से 60 किलो तक के आईईडी झेल सकता है लेकिन नक्सलियों ने इससे चार गुना विस्फोटक का इस्तेमाल कर वाहन को उड़ा दिया था। विस्फोट इतना तेज था कि एंटी लैंड माइन्स व्हीकल सड़क से दूर जा गिरा। जवानों के शव भी 50 मीटर दूर तक गिरे। अनुमान है कि नक्सलियों ने करीब एक क्विंटल विस्फोटक का इस्तेमाल किया था, जबकि वाहन 40-60 किलो तक ही विस्फोटक झेल सकता है। गौरतलब है कि देश के अन्य माओवादी राज्यों में उन्नत किस्म के वाहन बनाए गए जो 60 किलो तक के विस्फोटक को सह सके। लेकिन नक्सलियों ने इसका भी तोड़ निकाल लिया और अधिक विस्फोटक का इस्तेमाल करने लगे हैं।

आईबी ने किया था अलर्ट
किस्टारम सुकमा जिले का घनघोर जंगली इलाका है, जहां माओवादियों ने जवानों के रास्ते पर एक साथ कई आईईडी लगा रखे थे। नक्सली रेकी करके पता कर लिए थे कि साप्ताहिक बाजार से सामान लेकर जवान इसी रास्ते से माइन्स प्रोटेक्टिव व्हीकल से लौटेंगे। पांच और स्थानों पर नक्सली बारूद बिछा रखे थे। जैसे ही बख्तरबंद वाहन इसकी जद में आया, माओवादियों ने ब्लास्ट कर इसे उड़ा दिया और गोलीबारी शुरू कर दी। चौंकाने वाली बात यह है कि इस इलाके में माओवादियों की गतिविधियां बढ़ गई थीं। इसे लेकर आईबी ने पहले ही अलर्ट जारी कर दिया था। फिर भी सूचना को नजर अंदाज कर दिया गया।

जवानों की मजबूरी
छत्तीसगढ़ में नक्सल आपरेशन के वरिष्ठ अधिकारियों की मानें तो नक्सल प्रभावित जिलों में अभी 20 से ज्यादा माइन्स प्रोटेक्टेड व्हीकल का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह गाड़ी पिछले 10 साल से नक्सल मोर्चे पर तैनात है। इनका उपयोग जवान नक्सलियों की गोली से बचने के लिए कर रहे हैं। जवानों को भी पता है कि ज्यादा मात्रा में बारूद का उपयोग कर नक्सली इसे उड़ा सकते हैं। लेकिन जवान मजबूरी में इसमें सवार हो रहे हैं।

ज्यादा विस्फोटक खतरनाक
सीआरपीएफ आईजी संजय कुमार अरोरा के मुताबिक एमपीवी जवानों के लिए मददगार साबित होता है लेकिन कई बार इसकी क्षमता से ज्यादा विस्फोटक का इस्तेमाल होने से इससे नुकसान भी हो जाता है। इसे ऐसे समझें कि एक जवान ने बुलेट प्रूफ जैकेट पहनी है और 200 मीटर दूर से गोली चलेगी तो जवान घायल भी नहीं होगा लेकिन 5 मीटर की दूरी से चलने पर बुलेट प्रूफ जैकेट में भी जवान को नुकसान होने का अंदेशा है। जाहिर सी बात है कि माइंस प्रोटेक्टेड व्हीकल पूरी तरह सुरक्षित नहीं है। सुकमा के किस्टारम में हुई वारदात ने सबका ध्यान खींचा है। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि जब केंद्र सरकार से लेकर रमन सरकार और यहां तक कि नक्सलियों को भी इसकी जानकारी है कि सुरक्षा बलों के पास मौजूद एंटी लैंड माइन्स वाहन 40-60 किलो टीएनटी (ट्राई नाइट्रो टालविन) का ही धमाका सह सकता है, फिर एंटी लैंड माइन वाहन से सुरक्षा बलों को गश्त करने की अनुमति क्यों दी गई। जबकि सुकमा के क्रिस्टारम का वह इलाका है जहां चप्पे चप्पे में जमीन के नीचे बारूद नक्सलियों ने बिछा रखी है, इसकी जानकारी सुरक्षा बल के नौजवानों से लेकर अफसरों तक को है। जमीन के नीचे मौत रहती है।

यूबीजीएल के तीनों गोले नहीं फटे
जवानों ने किस्टारम में सुबह-सुबह ही नदी के किनारे नक्सलियों को देखने के बाद तुरंत ही एक के बाद एक तीन यूबीजीएल के गोले नक्सलियों पर दागे लेकिन एक भी नहीं फटा। यदि इनमें से एक भी गोला फट गया होता तो आधे नक्सली मौके पर ही मारे जाते। अगर तीनों गोले फट गए होते तो सभी सौ नक्सली मारे जाते। यह भी जांच का मुद्दा है कि यूबीजीएल के गोले फटे क्यों नहीं? यदि सुरक्षा बलों को ऐसे ही यूबीजीएल के गोले दिए जाएंगे तो फिर माओवादियों पर जीत कैसे मिलेगी?

क्या है यूबीजीएल
यूबीजीएल 25 सेमी लंबा लांचर है जो एके 47 और इंसास राइफल से दागा जाता है। इससे एक मिनट में 5 से 7 गोले 400 मीटर की दूरी तक निशाना साधकर दागे जा सकते हैं। करीब डेढ़ किलो वजनी इस गोले से जंगलों में छिपे या पहाड़ियों पर मौजूद दुश्मनों को निशाना बनाया जा सकता है। यह जहां गिरता है वहां 8 मीटर तक के दायरे को तहस-नहस कर देता है।

समस्या का हल क्या
किस्टारम में हुए बड़े माओवादी हमले के बाद सीआरपीएफ की 212वीं बटालियन के कमांडेंट प्रशांत धर को गु्रप मुख्यालय में अटैच कर दिया गया है। उनके स्थान पर हरमिंदर सिंह को जिम्मेदारी दी गई है। सवाल यह है कि क्या समस्या का यही समाधान है? बताया जाता है कि हमले के दिन सीआरपीएफ डीजी आर आर भटनागर ने कामांडेंट प्रशांत धर को पुलिस पार्टी को पालोडी मार्ग पर न भेजने के लिए अलर्ट किया था। फिर भी सुरक्षा नियमों की अनदेखी की गई।

एमपीवी पर रोक
किस्टारम में नौ जवानों के शहीद होने के बाद सीआरपीएफ ने रोजाना की गश्ती में बारूदी सुरंग रोधी वाहनों के उपयोग पर रोक लगा दी है। जबलपुर आर्डिनेंस फैक्ट्री से पहुंची चार सदस्यीय टीम इसकी जांच कर रही है। सूत्रों का कहना है कि एमपीवी का मेंटीनेंस काफी समय से नहीं किया जा रहा है। नियमित जांच न होने और रखरखाव में लापरवाही से भी इसकी क्षमता प्रभावित होती है।

कश्मीर जैसे हालात
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह हर वारदात के बाद यही कहते हैं कि माओवादी दहशत में हैं। जल्द ही प्रदेश को माओवादियों से मुक्त कर दिया जाएगा। लेकिन देखा जाए तो कश्मीर से भी अधिक बुरे हालात छत्तीसगढ़ में हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पिछले नौ सालों में कश्मीर से दोगुने जवानों की माओवादी फ्रंट पर शहादत हुई है। यानी यह कहा जा सकता है कि आम नागरिकों और सुरक्षा बलों के लिए छत्तीसगढ़ के हालात कश्मीर जैसे हैं। फरवरी माह तक देश भर में माओवादियों ने कुल 120 वारदात की है। पिछले नौ सालों में पुलिस और माओवादियों के बीच कुल 2,270 मुठभेड़ हुई हैं। पुलिस पर हुए हमलों की संख्या 1,356 है। अकेले छत्तीसगढ़ में 41 फीसदी माओवादी घटनाएं अब तक हुई हैं। 2005 से 2018 तक में यानी 13 वर्षों में 988 जवान शहीद हुए हैं। देश में 60 जिले माओवाद से प्रभावित हैं, जिसमें अकेले 14 जिले छत्तीसगढ़ के हैं और सबसे अधिक नक्सली हिंसा भी यहीं होती है।

पहले आदिवासियों से बात
पीसीसी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव कहते हैं, ‘रमन सरकार की गलत नीतियों की वजह से आंतरिक सुरक्षा का खतरा लगातार बढ़ रहा है।’ सामाजिक कार्यकर्ता सोनी सोरी कहती हैं, ‘सरकार माओवादियों से बातचीत का केवल ढोंग कर रही है। सरकार यदि माओवादियों से बातचीत पहले करने की बजाय आदिवासियों से बात कर ले तो समस्या का समाधान हो जाएगा। लेकिन सरकार तो आदिवासियों को ही माओवादी मान रही है तो बस्तर कैसे खुशहाल होगा। 