अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि केंद्र में उनकी सरकार पूर्वोत्तर के राज्यों को विकास की नई उंचाइयों पर ले जाने के लिए कृतसंकल्प है। उनके मुताबिक, केंद्र सरकार असम को दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार के केंद्र के रूप में विकसित करना चाहती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने असम के तिनसुकिया जिले में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी लोहित पर बने धौला-सादिया पुल को राष्ट्र को समर्पित करते हुए उन्होंने कहा कि ‘लुक ईस्ट पालिसी’ के तहत केंद्र सरकार दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापार के क्षेत्र में असम को प्रमुख केंद्र बनाना चाहती है और इसके लिए कोई कोर कसर नहीं रखी जाएगी। पूर्वोत्तर क्षेत्र को वह विकास की नई ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं और इसके लिए रेल, सड़क, संचार और बिजली की सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है। इस क्षेत्र में रेलवे का विकास सरकार की प्राथमिकता है।
उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है और यहां पर्यटन को बढावा देने की भरपूर संभावनाएं है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इस पुल के जरिए से असम और अरुणाचल प्रदेश की दूरी कम होगी और व्यापार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक खुशहाली आएगी। इस पुल के कारण दोनों राज्यों के लोगों के आवागमन के समय की काफी बचत होगी और प्रतिदिन 10 लाख रुपये का ईधन बचेगा। प्रधानमंत्री के अनुसार, पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास पर पिछले तीन साल के दौरान जितनी राशि खर्च की गई है उतना दस पंद्रह साल में खर्च किया जाता। उन्होंने राज्य की सर्वानंद सोनोवाल सरकार के कामकाज की तारीफ करते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकार कंधे से कंधा मिलाकर काम करेगी।

भारत के सबसे लंबे पुल धौला-सादिया के उद्घाटन के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तिनसुकिया के लोगों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पिछले पांच दशकों से यहां के लोग इस पुल का इंतजार कर रहे थे। आज इस पुल के शुरू हो जाने के बाद से कम-कम से कम पांच से छह घंटों की बचत होगी और यहां आर्थिक क्रांति आएगी।  विकास के रास्ते खुलेंगे। दस लाख रुपये के डीजल-पेट्रोल की बचत होगी। पीएम ने धौला-साकिया पुल का नाम बदलकर भूपेन हजारिका करने की बात कही।

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अगर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार दोबारा जीतकर आई होती, तो यह पुल दस साल पहले यहां के लोगों को मिल गया होता। गौरतलब है कि लोहित नदी के उपर बने इस पुल का एक छोर अरुणाचल प्रदेश के ढोला में और दूसरा छोर असम के सदिया में पड़ता है। यह सेतु 9.15 किलोमीटर लंबा लंबा है, जो मुंबई स्थित बांद्रा वर्ली सी लिंक से 3.55 किलोमीटर अधिक लंबा है।

इस पुल के बनने के बाद असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच यात्रा करने में लगने वाले समय में चार घंटे की कमी आएगी। सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश तक सैनिकों और आर्टिलरी के त्वरित गमन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पुल को टैंकों के आवागमन के हिसाब से डिजाइन किया गया है।

सेल के इस्पात से बना है देश का सबसे लंबा सेतु

गौरतलब है कि स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) असम के लोहित नदी पर बने देश के सबसे लंबे पुल “ढोला-सदीया” के निर्माण में इस्तेमाल किए गए स्टील का सबसे बड़ा और प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। सेल ने इस पुल के लिए लगभग 90 प्रतिशत यानी लगभग 30,000 टन इस्पात की आपूर्ति की है। जिसमें टीएमटी, स्ट्रक्चरल और प्लेट्स शामिल हैं। यह पुल असम और अरुणाचल प्रदेश जैसे दो महत्वपूर्ण राज्यों को जोड़ेगा। 9.15 किलोमीटर लंबे पुल का निर्माण सार्वजनिक निजी साझेदारी के तहत 2011 में शुरू किया गया।
सेल देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र की कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं के लिए इस्पात की आपूर्ति कर रहा है। ढोला-सदीया पुल के अलावा, सेल इस्पात का उपयोग बोगिबेल रेल-सह-सड़क पुल, एनटीपीसी की 750 मेगावाट की बिजली परियोजना एवं 600 मेगावाट की कमेंग जलविद्युत परियोजना समेत कई बिजली संयंत्र, ट्रांस अरुणाचल हाइवे इत्यादि में भी किया गया है। ये सभी परियोजनाएं इस क्षेत्र के अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। सेल ने पूर्वोत्तर क्षेत्र में अपना विस्तार करने और बाज़ार हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए कुछ विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की है; इसके साथ ही अपने विप्णन को बढ़ाने के लिए सुनियोजित रणनीति लागू की है। पूर्वोत्तर के दूरदराज के इलाकों में इस्पात की आपूर्ति करने के लिए क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों की इस्पात खपत की उच्च क्षमता का उपयोग करने, सरकार का पूर्वोत्तर को देश के साथ जोड़ने की नीति पर ज़ोर की संभावनाएं समेत सभी प्रमुख रूप से कंपनी की प्राथमिकता सूची में हैं। हाल ही में सेल ने इस क्षेत्र में विप्णन के लिए एक महाप्रबंधक नियुक्त किया है।

राष्ट्रीय महत्व और गुणवत्ता की ऐसे परियोजनाओं का हिस्सा बनना सेल स्टील पर राष्ट्र के विश्वास का प्रमाण है। जैसा कि सेल अपनी शेष आधुनिकरण परियोजनाओं को लगभग पूरा करने की ओर है, इससे ऐसी परियोजनाओं के लिए और बेहतर और अधिक मूल्य-वर्धित इस्पात पेश करने की स्थिति में है। इस आधुनिकीकरण के पूरा होने के बाद सेल के विक्रेय इस्पात में मूल्य वर्धित इस्पात उत्पादन का 50 प्रतिशत भाग होगा।