लोकतंत्र समर्थक माने जाने वाले पाकिस्तान के नए सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने मंगलवार को पदभार ग्रहण कर लिया। इस पद के लिए जब नवाज शरीफ सरकार ने उनके नाम की घोषणा की थी तो माना जा रहा था कि पाकिस्तानी सेना की नीतियों में बदलाव आएगा मगर पाकिस्तान ने यह साफ कर दिया है कि सेना की पुरानी नीति जारी रहेगी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने साफ कर दिया है कि सेना की नीति में तत्काल कोई तब्दीली नहीं होगी। देश की पूर्वी सीमा पर सेना का ध्यान बना रहेगा। वहीं भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने आगाह किया है कि जनरल बाजवा से भारत को सतर्क रहने की जरूरत है जबकि अमेरिका ने नए सेना प्रमुख की नियुक्ति का स्वागत करते हुए पाकिस्तान को पड़ोसियों के खिलाफ आतंकवादी हमलों के लिए अपनी सरजमीं का इस्तेमाल नहीं करने देने के वादे को पूरा करने की याद दिलाई है।
जनरल बाजवा के सेना प्रमुख बनने के बाद अब सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हुई हैं कि क्या भारत के साथ उनका रवैया उसी तरह से रहता है जिस तरह से राहिल शरीफ का भारत के साथ दुश्मनी भरा रिश्ता रहा था। जानकारों की मानें तो बाजवा को लेकर अभी से कयास लगाना जल्दबाजी होगी। भारत के साथ उनके रवैये को लेकर थोड़ा और इंतजार करना उचित होगा। भारत के पूर्व आर्मी चीफ और बाजवा के साथ संयुक्त राष्ट्र के मिशन में काम कर चुके जनरल बिक्रम सिंह का भी यही मानना है कि बाजवा को लेकर अभी जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। भारत के साथ उनके रवैये को अभी से नहीं परखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यूएन मिशन में जनरल बजवा का काम पूरी तरह से प्रोफेशनल और शानदार रहा है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय माहौल में एक अफसर का व्यवहार अलग और अपने देश में अलग रहता है। जनरल बिक्रम सिंह के अनुसार जनरल बाजवा को भारत के प्रति अपने देश की नीतियों की पूरी जानकारी है। इसलिए ऐसा लगता है कि कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का जो रुख है उसमें नए आर्मी चीफ के आने से भी कोई बदलाव नहीं आने वाला है।
पाकिस्तान की सियासत में वहां की फौज का दखल रहता है। सेना का हर जनरल अपनी फौज का हित सबसे ऊपर रखता है। नवाज शरीफ राहिल शरीफ से तालमेल बैठाए हुए थे। इसीलिए आशा है कि बाजवा के साथ भी उनकी सरकार का समन्वय बना रहेगा। नवाज शरीफ के लिए चुनौती है कि उन्हें पांच साल पूरे करने हैं। ऐसे में लगता नहीं कि दोनों तरफ से कोई तनाव पैदा करने की मंशा होगी।