ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात के बाद अकसर लड़कियां ऐसे हालात का शिकार हो जाती हैं जहां से निकलना उनके लिए मुश्किल होता है। हमारे सामाजिक तानेबाने में उन्हें हादसे का अहसास हर रोज बार-बार कराया जाता है। इस वजह से पीड़िता की मनोदशा इतनी खराब हो जाती है कि वह खुद को ही अपराधी समझने लगती है। इस तरह की महिलाओं को इस मनोदशा से निकालने में जुटी है हिसार के आजादपुर की रहने वाली 19 वर्षीय एक युवती जो खुद इस हादसे से गुजर चुकी है। वह न सिर्फ खुद इस हादसे से उबर कर अब अपनी पढ़ाई शुरू कर चुकी है बल्कि अपने जैसी 80 लड़कियों को भी इस मनोदशा से निकाल कर समान्य जीवन में प्रवेश करा चुकी है। बलात्कार पीड़ित की पहचान को हटाने के लिए उसने खुद को नई पहचान दी, रेप सर्वाइवल की। इस बहादुर लड़की की कहानी उसकी ही जुबानी :-
सितंबर 2012 को 12 दबंग युवकों ने मेरा अपहरण कर गैंग रेप किया और अधमरी हालत में छोड़ दिया। अस्पताल में होश आया तो सब कुछ बदल चुका था। यहां तक कि नाम भी, हर कोई रेप विक्टिम बोलता था। यह शब्द एक साल तक झेलती रही। बहुत कोशिश की कि इसे भूल जाऊं। शहर के कॉलेज में पढ़ती थी। थोड़ी ठीक हुई तो कॉलेज जाना शुरू किया लेकिन सबका व्यवहार बदल चुका था। सहेलियां जो पहले साथ रहती थी अब कन्नी काटती थी। पुरुष हो या महिला शिक्षक, हमेशा हादसे का अहसास कराते रहते थे। ऐसे में लगने लगा कि अब जीना बेकार है। डिप्रेशन इतना हो गया कि जिंदगी को ही खत्म करने की सोचने लगी। आस पास के लोग, यहां तक की परिवार के लोग भी यही चाह रहे थे कि मैं मर जाऊं। उन्हें लगता था कि मेरी वजह से उनके परिवार की बदनामी हुई है। हर रोज ताने सुन-सुन कर मैं भी तंग आ गई थी। कॉलेज छूट गया क्योंकि कॉलेज में मेरे साथ कोई लड़की बात ही नहीं करती थी। यहां तक कि महिला शिक्षकों का व्यवहार भी बहुत खराब था। हर कोई मेरे साथ इस तरह से पेश आ रहा था मानो मैंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो। एक भी क्षण यह भूलने नहीं दिया जा रहा था कि मेरा बलात्कार हुआ है। मैं आत्महत्या करने की सोचने लगी थी।

काउंसिलिंग से लौटा हौसला
मेरी यह स्थिति देख मेरा केस लड़ रहे वकील ने सलाह दी कि दिल्ली में कुछ काउंसलर हैं जो इस हालात से उबरने में मेरी मदद कर सकते हैं। उनकी सलाह पर मैं दिल्ली चली गई। वहां करीब एक साल तक काउंसिलिंग ली। सरकार की ओर से कुछ मुआवजा मिला था जिससे वहां रहने का खर्च चलाया। वहां रहने के दौरान अपने जैसी कुछ दूसरी लड़कियों से मिली। उनसे बातचीत होने लगी तो धीरे-धीरे खोया आत्मविश्वास लौटने लगा। तब समझ में आया कि मेरा कसूर नहीं है। कसूरवार तो वे हैं। उन्हें सजा मिलनी चाहिए। यही वह जज्बा था जिसने मुझे दोबारा अपने पांव पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया। हिसार वापस आते ही फिर से स्कूल जाने लगी। हर कोई मुझे रेप विक्टिम कहते थे। मैंने खुद को रेव सर्वाइवर कहना शुरू किया। पहले मुझे दूसरों के सामने जाने से डर लगता था। हिचक होती थी कि सामने वाला क्या कहेगा? लेकिन अब मैंने डरना और शर्माना छोड़ दिया। तय कर लिया कि लडूंगी, समाज से अपनी जिदंगी और सम्मान की जंग।

जो मैंने सहा, दूसरी को सहने नहीं दूंगी
दिल्ली से जब वापस आई तभी हिसार में इस तरह की चार घटनाएं हुई। मैं यह सब झेल चुकी थी, इसलिए मैं उनसे मिलने पहुंच गई। शुरुआत में ऐसी लड़कियों से मिलने में दिक्कत आई। परिजन भी मिलने नहीं देते थे। कई बार तो भगा दिया जाता था। अकसर जब मैं पीड़िता से बात करती तो उनके परिजन में से कोई न कोई वहां आकर बैठ जाता था। मैं तो उन्हें खुद का उदाहरण देती हूं। तब जाकर वे उस लड़की से मिलने देते हैं। बातचीत में समझ में आया कि सिर्फ कउंसिलिंग ही जरूरी नहीं है। कानूनी मदद भी बड़ा पहलू है क्योंकि जब तक अपराधी को उसके किए की सजा नहीं मिल जाती तब तक पीड़ित का मन कचोटता रहता है। इसलिए मैं ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) से जुड़ी।

18 लड़कियों ने दोबारा पढ़ाई शुरू की
सिरसा में नाबालिगलड़की के साथ टीचर ने रेप कर दिया था। परिजनों ने उसकी पढ़ाई छुड़वा दी। बच्ची को रिश्तेदारी में भेज दिया। मुझे पता चला तो सिरसा गई। उस बच्ची के मां-बाप से मिली। वे डरे हुए थे, उन्हें समझाया। तीन-चार बार मिली, तब जाकर वे उस बच्ची को दोबारा स्कूल भेजने पर राजी हुए। इसी तरह भिवानी में हादसे का शिकार हुई लड़की के परिजन उसकी शादी एक अधेड़ से करना चाह रहे थे। उन्हें समझाया। जब नहीं मानें तो उन्हें कानूनी कार्रवाई की धमकी दी। खुद उसके साथ रही। जो कोई उसके बारे में गलत बोलता था उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की धमकी दी। इसका परिणाम यह हुआ कि वह बच्ची शादी से बच गई। अभी तक 18 लड़कियां पढ़ाई दोबारा शुरू कर चुकी हैं। इसके अलावा 20 बेमेल विवाह होने से रोके। कुछ लड़कियां तो जीने की इच्छा ही छोड़ चुकी थीं। उनका हौसला बढ़ाया। अब मेरे साथ तीन अन्य लड़कियां भी इस काम में लगी हुई हैं। इसके साथ ही मैं दिल्ली की स्वयंसेवी संस्था से जुड़ी हूं जो इस तरह की महिलाओं की कानूनी मदद करती है।
यह बड़ी पहल है : डॉ. दीपा चटर्जी
वुमेन स्टडी सेंटर, दिल्ली की डायरेक्टर डॉ. दीपा चटर्जी ने बताया कि यह बहुत बड़ा प्रयास है क्योंकि इसे करने वाली खुद इस हालात से निकल कर आई है। वह बेहतर तरीके से पीड़ितों को समझा सकती है। उसकी बात का बहुत ज्यादा असर होता है। एक रेप विक्टिम को पता होता है कि उसे बाद में क्या-क्या दिक्कत आती है। वह बेहतर तरीके से ऐसी लड़कियों को सामान्य जीवन जीने के लिए प्रेरित कर सकती है।
हरियाणा में बलात्कार की घटनाओं में 70 फीसदी घटनाएं दलित या पिछड़े वर्ग की महिलाओं और लड़कियों से होती है। ऐसे में आरोपी पीड़िता के परिवार को डरा धमका कर केस वापस कराने या कमजोर करने की कोशिश करते हैं। इसके लिए कई बार तो सुबूत ही मिटा दिए जाते हैं जिससे आरोपी के बच निकलने की गुंजाईश बढ़ जाती है। इससे निपटने के लिए इस युवती ने वकीलों के साथ मिल कर एक ग्रुप बनाया जो समय-समय पर जिला स्तर पर वकीलों के सेमिनार करता है जिसमें ऐसे केस से जुड़े वकीलों के साथ बातचीत की जाती है। उन्हें जागरूक किया जाता है। पिछले साल (2017) प्रदेश में रेप पीड़ित पांच महिलाओं ने आत्महत्या की है।