बदलाव का दांव

रमेश कुमार ‘रिपु’

जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को भाजपा ने मध्य प्रदेश का अध्यक्ष बनाया तो एक बात साफ हो गई कि भाजपा हाईकमान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पसंद और नापसंद को तरजीह देता है। भाजपा हाईकमान नरोत्तम मिश्रा को अध्यक्ष बनाना चाहता था। नंदकुमार सिंह चौहान का प्रदेश अध्यक्ष पद से जाना तभी तय लगने लगा था जब विधानसभा के चार उपचुनाव पार्टी हार गई। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए शिवराज चाहते थे कि तीसरी बार भी केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष बनें लेकिन उन्होंने यह कह कर इनकार कर दिया कि चुनाव जीतने के लिए हर बार एक ही व्यक्ति का अध्यक्ष बनना जरूरी नहीं है। भाजपा व्यक्ति प्रधान दल नहीं है। पार्टी कार्यकर्ता के नाते मेरा जो काम होगा वो करूंगा। हम सभी मिलकर चुनाव लड़ेंगे। गौरतलब है कि तोमर और चौहान की जोड़ी को 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में विजय मिली थी।

महाकौशल प्रांत से 33 साल बाद पार्टी ने जबलपुर के सांसद राकेश सिंह को भाजपा का नया प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। इससे पहले 1985 में दस माह के लिए शिवप्रसाद चिनपुरिया को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया था। शिवराज सिंह ओबीसी हैं इसलिए उनकी भी मंशा थी कि प्रदेश के 52 फीसदी ओबीसी वोटरों को साधने के लिए पार्टी अध्यक्ष और मुख्यमंत्री एक ही जाति के होंगे तो सत्ता और संगठन के बीच तालमेल रहेगा। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी कहते हैं, ‘संगठन की गाड़ी ठीक चल रही थी लेकिन ड्राइवर में कुछ कमी थी। इसलिए बदलाव जरूरी हो गया था।’ पार्टी के अंदर यह माना जाने लगा था कि नंदकुमार सिंह चौहान की वजह से एंटी इनकमबैंसी का दायरा बढ़ गया है। उनके बयानों से भी पार्टी की छवि खराब हो रही थी। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं, ‘अभी तक वन मैन शो था। उम्मीद है कि अब समन्वय से फैसले होंगे। नए अध्यक्ष सत्ता के दबाव में काम नहीं करेंगे। पार्टी को जिससे नुकसान हो ऐसा बयान नहीं देंगे।’

सबको मिली जगह
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए राजेंद्र शुक्ला,भूपेंद्र सिंह और नरोत्तम मिश्रा दावेदार थे। लेकिन चुनावी साल में किसी तरह की भीतरघात न हो इससे बचने को दावेदारों को चुनाव प्रबंध समिति में जगह दी गई। नरोत्तम मिश्रा के साथ आदिवासी नेता फग्गन सिंह कुलस्ते व अनुसूचित जनजाति से लाल सिंह आर्य को सह संयोजक बनाया गया। थावरचंद गहलोत, प्रभात झा, कैलाश विजयवर्गीय, नंदकुमार सिंह चौहान, भूपेंद्र सिंह, राजेंद्र शुक्ला, प्रह्लाद पटेल और माया सिंह को सदस्य बनाया गया है।

राकेश ही क्यों
राकेश सिंह को भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे कई कारण हैं। पार्टी नेताओं का तर्क है कि महाकौशल में वे कांग्रेस नेता कमलनाथ और भाजपा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के विरोधी प्रह्लाद पटेल का तोड़ साबित होंगे। ओबीसी चेहरा होने की वजह से प्रदेश की 52 फीसदी जनता को साधने का काम इनके जरिये पार्टी कर सकेगी। वे राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और संघ के भी करीबी हैं। इस वजह से प्रदेश संगठन और दिल्ली में भी उनका विरोध नहीं हुआ। महाकौशल इलाके में विधानसभा की 37 सीटें हैं। पिछले चुनाव में भाजपा को यहां 25 सीटें मिली थी। महाकौशल और बुंदेलखंड में राकेश सिंह एक स्थापित चेहरा हैं। वे केंद्र में भी सक्रिय हैं। महाराष्ट्र के सह प्रभारी और भाजपा संसदीय दल के चीफ व्हिप हैं। शिवराज की पसंद होने के साथ ही वे नरोत्तम मिश्रा की काट सबित हुए। इन सब के बावजूद इतना आसान नहीं है कि केवल सात महीने में वे प्रदेश की जनता और पार्टी में स्वीकार लिए जाएंगे। यह अलग बात है कि उन्हें संगठन के लिए पदाधिकारी चुनने की आजादी मिली हुई है। चुनाव को देखते हुए उन्हें संगठन का नया ढांचा भी खड़ा करना है। संगठन का चेहरा बदलने की वजह से पदाधिकारी भी बदले जाएंगे।
लागतार तीन बार से प्रदेश में भाजपा की सरकार होने की वजह से एंटी इनकमबैंसी का फैक्टर भी है जिसे कम कर विधानसभा के साथ लोकसभा चुनाव भी जीतने का दबाव राकेश सिंह पर ज्यादा है। इसके अलाव प्रदेश में अपनी स्वीकार्यता स्थापित करना, कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के साथ बैठक करना, पार्टी की गुटबाजी को समय रहते खत्म करना, साथ ही विधायकों की रिपोर्ट का अध्ययन कर खराब कामकाज वाले विधायकों के लिए विकल्प की तलाश या फिर उससे निजात दिलाने वाले सियासी मंत्र का इजाद करना उनके लिए बड़ी चुनौती है। पार्टी नेताओं की अनावश्यक बयानबाजी को रोकना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि नंदकुमार सिंह चौहान, कैलाश जोशी, बाबूलाल गौर, उमा भारती, प्रभात झा, कैलाश विजयवर्गीय, सरताज सिंह आदि नेताओं के बयान से पार्टी की छवि पर असर पड़ा है। सत्ता और संगठन के साथ मिलकर पार्टी को चुनाव से पहले खड़ा करना उनकी सबसे बड़ी जवाबदारी है। प्रदेश में भाजपा की चौथी बार भी सरकार बन सके इसके लिए नया खाका तैयार कर कांग्रेस को मात देने की रणनीति को अंजाम देना राकेश सिंह के लिए चुनौती है।

कांग्रेस की भी सर्जरी
कांग्रेस में अरुण यादव को लेकर गुटबाजी बढ़ती जा रही थी। कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा दिग्विजय सिंह का गुट भी उनके नेतृत्व में काम नहीं करना चाहता था। इस बात की जानकारी राहुल गांधी को हो गई थी। बावजूद इसके वे अरुण यादव को हटाना नहीं चाहते थे। गुजरात चुनाव की तर्ज पर कांग्रेस मध्य प्रदेश में चुनाव की रणनीति को अंजाम देना चाहती थी। मगर अरुण यादव के खिलाफ बढ़ते विरोध को देखते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष और ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया। इसके अलावा जाति गणित को देखकर चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की 63 सीटें हैं। कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए बाला बच्चन कांग्रेस का आदिवासी चेहरा हंै। वे निमाड़ से आते हैं। यहां की 16 सीटों पर सीधे बाला बच्चन का दखल है। साथ ही वे कमलनाथ समर्थक हैं। ग्वालियर संभाग में 34 सीटें ओबीसी बहुल है। रामनिवास रावत सिंधिया समर्थक हैं। इसलिए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। अनुसूचित जाति की प्रदेश में 35 सुरक्षित सीटें हैं। ऐसे में सुरेंद्र चैधरी जो अनुसूचित जाति के हैं, बुंदेलखंड का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ है। इसलिए उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। जीतू पटवारी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे मूल वजह यह है कि वे तेज तर्रार हैं और ओबीसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। युवाओं में उनकी लोकप्रियता को कांग्रेस भुनाना चाहती है।
कांग्रेस को कमलनाथ की जरूरत इसलिए पड़ी कि भाजपा अध्यक्ष महाकौशल से आते हैं और कमलनाथ भी इसी इलाके के हैं। वे आठ बार से सांसद हैं। साथ ही वे किंगमेकर के नाम से मशहूर हैं। उनकी लोकप्रियता प्रदेश में राकेश सिंह से कहीं अधिक है। उनके अध्यक्ष बनने से प्रदेश कांगे्रस में गुटबाजी में कमी आएगी और महाकौशल की 37 सीटों पर सीधा असर पड़ेगा। कमलनाथ से कांग्रेस को राजनीतिक लाभ हो सकता है लेकिन कुछ खामियां भी हैं जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उनके अध्यक्ष बनने से ज्योतिरादित्य सिंधिया,अरुण यादव समर्थकों की सक्रियता में कमी आ सकती है। उनकी कॉरपोरेट छवि सबसे बड़ा रोड़ा है। दूसरी ओर ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर-चंबल संभाग में अधिक लोकप्रिय हैं। इस अंचल की 34 सीटों पर उनकी वजह से सीधा असर पड़ेगा। मालवा में भी उनकी पकड़ है। आम लोगों के बीच वे अधिक लोकप्रिय हैं। बावजूद इसके भाजपा सिंधिया की राज परिवार वाली छवि को सियासी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।

कमलनाथ की चुनौती
कमलनाथ के लिए अरुण यादव, दिग्गी राजा और सिंधिया समर्थकों को लेकर चलना सबसे बड़ी चुनौती होगी। साथ ही 15 वर्षों से सत्ता से दूर रही कांग्रेस की वापसी की रणनीति बनाना भी। उन्हें ऐसी टीम तैयार करनी होगी जिसमें कोई विरोध न हो। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि कमलनाथ से जुड़े लोगों को संगठन में अधिक तरजीह मिलेगी। संगठन में महामंत्री का पद सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। विंध्य क्षेत्र से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल हैं। देखना है कि विंध्य क्षेत्र के किन-किन लोगों को संगठन में कौन-कौन सा पद मिलता है। इसलिए कि 28 सीटें विंध्य क्षेत्र में हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्रीनिवास तिवारी के निधन के बाद कांग्रेस किसी ब्राह्मण नेता को संगठन में कोई पद देती है या नहीं क्योंकि इस क्षेत्र में 65 फीसदी सवर्ण वोटर है। माना जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस की टीम में सज्जन सिंह वर्मा, गुरमीत सिंह मंगू, दीपक सक्सेना, आसिफ जकी, मोहम्मद सलीम, सैय्यद जाफर, कुलदीप बुंदेला, नीलेश अवस्थी, तरुण भनोत, हिना कांवरे, मधु भगत, दिनेश गुर्जर आदि को शामिल किया जा सकता है।
कमलनाथ कहते हैं, ‘कांग्रेस में गुटबाजी नहीं है। गुटबाजी की बात मीडिया की देन है। अभी सभी का एक मात्र लक्ष्य है कांग्रेस की सरकार बनाना। आज प्रदेश का हर वर्ग परेशान है। उनकी परेशानियों को दूर करने की चुनौती है। नौजवानों को रोजगार मिल सके और लोगों का भविष्य सुरक्षित करने की चुनौती है। कांग्रेस के पास कोई एक चुनौती नहीं है। जो जनता की चुनौती है वह हमारी चुनौती है। साथ ही टिकट वितरण सबसे बड़ी चुनौती है। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि जिताऊ उम्मीदवार को सबसे पहले वरीयता मिले। यह भी देखा जाएगा कि जनता में किसकी पकड़ अधिक मजबूत है। शिवराज केवल नाम के मामा हैं। उन्हें जनता मामा मानती ही नहीं है। महिलाओं के साथ देश में सबसे अधिक अनाचार मध्य प्रदेश में हो रहा है फिर भी वे अपने आप को मामा कहते हैं। प्रदेश को नंबर एक का राज्य बनाने का वादा करने वालों ने इसे घोटाले का प्रदेश बना दिया है।’

चौथी बार भी जनता भाजपा के
साथ : राकेश सिंह
भाजपा के नए अध्यक्ष राकेश सिंह का दावा है, ‘चौथी बार भी प्रदेश की जनता भाजपा के साथ है। कांग्रेस दूर-दूर तक कहीं नहीं दिख रही है। प्रदेश में भाजपा को लेकर एंटी इनकमबैंसी है, यह मात्र एक अफवाह है। सरकार और संगठन ने अच्छा काम नहीं किया होता तो भाजपा की तीसरी बार सरकार नहीं बनती। पार्टी जिन सीटों पर चुनाव हारी है वह पहले भी हमारी नहीं थी। चित्रकूट में हम एक ही बार जीते हैं। उप चुनाव और पूर्ण चुनाव दोनों में जनता की सोच अलग-अलग होती है। अभी संगठन में बदलाव नहीं किया जा रहा है। जो हैं उन्हीं के साथ मिलकर काम किया जाएगा।’
भाजपा ने जीत के लिए नई रणनीति बनाई है। प्रदेश की जिन 61 सीटों पर भाजपा 2013 के चुनाव में हार गई थी वहां की जवाबदारी उसी जिले के मंत्रियों को दी गई है। कांग्रेस के गढ़ों पर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की नजर रहेगी। संगठन मंत्री सुहास भगत इन सीटों की मॉनिटरिंग करेंगे। जहां तक उम्मीदवारों की बात है तो भाजपा भी कांग्रेस की ही तरह केवल जीतने वाले उम्मीदवारों को टिकट देने की बात कर रही है। जाहिर है, इस बार कई विधायकों और मंत्रियों के टिकट कट सकते हैं। बहरहाल, दोनों पार्टी के नए प्रदेशाध्यक्ष की कड़ी परीक्षा होनी है।

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