प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय व आर्थिक सुरक्षा के मद्देनजर 500 व 1000 के पुराने नोट बंद करके नई करेंसी जारी की है। पूर्व आईबी डाइरेक्टर डी सी पाठक एक ऐसे अधिकारी हैं जिनकी राष्ट्रीय व आर्थिक सुरक्षा के मुद्दों पर अच्छी पकड़ है। उनसे नोटबंदी के कई पहलुओं पर चर्चा की गई।
भारतीय पुलिस सेवा में 1960 बैच के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डी सी पाठक ने 1964 में देश की इंटरनल इंटेलीजेंस एजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) में जब अपना ट्रांसफर लिया था तो उन्हें भी मालूम नहीं था कि गुप्तचरी के इस विभाग के जरिये वे देश की सेवा में दूसरी जगहों से कहीं ज्यादा योगदान दे सकते हैं। उन्होंने पुलिस सेवा का अपना समूचा कार्यकाल आईबी में ही पूरा किया। 1994 में पाठक देश की इस सर्वोच्च जांंच एजेंसी के मुखिया बने। आईबी के उनके लंबे अनुभवों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उन्हें 1996 से 1997 तक देश की तमाम खुफिया इकाइयों की सर्वोच्च एकीकृत संस्था ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी का चेयरमैन बनाया। इसी कमेटी पर देश की सुरक्षा से जुड़ी भावी रणनीति तैयार करने का जिम्मा होता है। उनके अनुभवों को देखते हुए 2004 से लेकर 2006 तक डी सी पाठक को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड का सदस्य भी चुना गया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के एडवाइजरी बोर्ड में आज भी डी सी पाठक बतौर सदस्य शामिल होते हैं।
सरकार ने कुछ दिन पहले ही 500 व 1000 रुपये के नोट बंद करके नई करेंसी जारी की है। असल वजह क्या मानते हैं?
डीमॉनेटाइजेशन के कई कारण हैं, जिसके दूरगामी परिणाम कुछ समय बाद देखने को मिलेंगे। अवैध कमाई यानी ब्लैकमनी का ब्योरा लोग सरकार को नहीं देते। इसे भ्रष्टाचार और घूसखोरी से लेकर अपराध व आतंकवादी गतिविधियों से जुटाया जाता है। यही ब्लैकमनी हमारे चुनावी तंत्र में शामिल होकर भ्रष्ट और नाकारा सरकारी तंत्र के रूप में सामने आती रही है। प्रचलित करेंसी को बंद करके सरकार ने ब्लैकमनी के तंत्र पर अंकुश लगाने का काम किया है। हमारी करेंसी के साथ प्रचलन में आ चुकी जाली करेंसी भी नई करेंसी जारी किए जाने की एक प्रमुख वजह रही है। यही वजह रही है कि पिछली सरकारें भी जाली करेंसी को रोकने के लिए पुरानी करेंसी को बदलने पर विचार कर चुकी थीं, लेकिन वे उस पर अमल नहीं कर सकीं। वर्तमान सरकार ने नोटबंदी का साहसिक कदम उठाया है। हो सकता है कि तात्कालिक रूप से कुछ दिक्कतें लोगों के सामने पेश आएं, लेकिन नोटबंदी के इस फैसले से लंबे समय तक देश जाली करेंसी से मुक्त रहेगा। भारत से छद्म युद्ध लड़ते हुए पड़ोसी देश पाकिस्तान ने पिछले कुछ सालों में हमारी करेंसी की हूबहू नकल करके कई सौ करोड़ की नकली करेंसी का जो अंबार अलग-अलग तरीकों से हमारे देश में लगाया, पुरानी करेंसी पर प्रतिबंध लगते ही वह कूड़े का ढेर बन गई है।
देश में जाली करेंसी अर्थव्यवस्था का नेटवर्क कितना बड़ा था कि हमें अपनी करेंसी को बंद कर नई करेंसी जारी करने का कड़ा फैसला लेना पड़ा?
भ्रष्टाचार और ब्लैकमनी पर लगाम लगाने के लिए तो सरकार लंबे समय से प्रयास कर ही रही थी। इसमें कुछ आंशिक सफलता भी मिली, लेकिन पाकिस्तान से तैयार होकर आई नकली करेंसी इतनी बड़ी तादाद में प्रचलन में आ चुकी थी कि उसे रोकने के लिए एक ही उपाय था कि जिस करेंसी की नकल हो चुकी है उसे बंद कर दिया जाए। जाली करेंसी के बारे में सटीक आंकडा तो शायद ही किसी के पास हो, लेकिन ये बात एकदम सच है कि इसकी संख्या इतनी बड़ी थी कि भारत की अर्थव्यवस्था को इसने खतरे के मुहाने पर खड़ा कर दिया था। 2001 में कैबिनेट सचिवालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक रिपोर्ट भेजी थी, जिसके मुताबिक देश में साल 2000 तक करीब 57 अरब रुपये की जाली करेंसी चलन में थी। इसके बाद वित्त मंत्रालय के अधीन काम करने वाली फाइनेंशियल इंंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू) ने 2008 में एक रिपोर्ट के जरिये सरकार को बताया था कि 2004 के बाद जाली करेंसी की आमद और इसके प्रचलन में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। रिजर्व बैंक ने ही अपनी इंटेलीजेंस विंग की जानकारी के आधार पर 2012 में बताया था कि करीब 70 अरब रुपये के जाली नोट चलन में हैं। जाहिर है कि बाद के दिनों में आंकडा और ज्यादा बढ़ा होगा। इन आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में जाली करेंसी कितनी बड़ी संख्या में प्रचलन में आ चुकी थी कि इसे बदले बिना इस पर नियंत्रण का कोई दूसरा उपाय नहीं था। तमाम प्रयासों के बावजूद देश भर में हर साल औसतन 17 से 18 करोड़ की जाली करेंसी ही बरामद हो पाई जबकि करीब 50 से 70 करोड़ रुपये के नए जाली नोट हर साल भारतीय बाजार में आते रहे। नकली नोटों के इसी कैलकुलेशन से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस करने के लिए रची जा रही साजिश कितनी घातक थी और नोटबंदी का फैसला ही इसका अंतिम उपाय था।
जाली करेंसी का सबसे बड़ा स्रोत क्या है?
देश में जितनी भी जाली करेंसी अब तक प्रचलन में थी, उसका 85 फीसदी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की तरफ से तैयार कराए गए जाली नोट थे। हमारी एजेंसियां नकली नोटों के बडेÞ तस्करों से लेकर अपने खुफिया स्रोतों ये जानकारी जुटाकर कई बार सरकार को रिपोर्ट दे चुकी हैं कि पाकिस्तान के क्वेटा, रावलपिंडी व इस्लामाबाद के सरकारी प्रिंटिंग प्रेस में भारत की जाली करेंसी छपती हैं। इंडिया-पाकिस्तान के बीच चल रहे प्रॉक्सी वार के तहत कई वर्षों से भारतीय करेंसी को खुद पाकिस्तान की इंटेलीजेंस एजेंसी की निगरानी में छापा जाता रहा है। बैंक आॅफ पाकिस्तान के कुछ अधिकारी और सरकारी नोट छापने वाले प्रिंटिंग प्रेस के बडेÞ अधिकारियों के एक दल को आईएसआई की इकोनॉमिक विंग में तैनात ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी की निगरानी में सिर्फ इसी काम के लिए लगाया गया है। वे भारतीय करेंसी की नकल इतने बारीक तरीके से करते हैं कि उन्हें आम आदमी आसानी से पकड़ ही नहीं सकता। पाकिस्तान में नकली नोट बनाने के काम में लगे लोग भारतीय नोटों में मामूली से मामूली फेरबदल पर बारीकी से नजर रखते हैं। जाली करेंसी की काट के लिए जब-जब भारतीय रिर्जव बैंक ने अपनी करेंसी में थोडेÞ बहुत बदलाव किए, पाकिस्तान ने कुछ समय बाद ही उन बदलावों की भी नकल कर जाली करेंसी छाप दी।
आईएसआई की ये विंग भारतीय नोटों को छापने के अलावा इनको भारतीय बाजार में चलाने का काम तो करती ही है, नकली करेंसी का सॉफ्टवेयर तैयार करके उसे भारतीय तस्करों को बेच देती है ताकि छोटे स्तर पर इस रैकेट को चलाने वालों को मदद मिल सके। कई रिपोर्टों में यह बात सामने आई है कि देश में प्रचलित जाली करेंसी का केवल 15 फीसद वे नोट होते हैं जो छोटे मोटे अपराधी गिरोह बेहतरीन मशीनों से स्कैनिंग करके तैयार करते हैं। ऐसे नोट अक्सर पकड़ में आ जाते हैं। आमतौर पर अलग-अलग राज्यों में जाली नोट पकडेÞ जाने के जो मामले सामने आए हैं, उनमें ज्यादातर इसी तरह के नोट के हैं। पाकिस्तान में छपी जाली करेंसी ज्यादातर बैंक में पहुंचने के बाद हुए परीक्षण में ही पकड़ में आती है।
ऐसा कौन सा प्रमुख कारण रहा कि तमाम सिक्योरिटी फीचर के बावजूद पाकिस्तान हमारे नोटों की नकल करता रहा?
सबसे बड़ी बात है कि भारत जिन विदेशी कंपनियों से करेंसी छापने वाला पेपर और इंक खरीदता रहा है, पाकिस्तान का भी उन्हीं कंपनियों से करेंसी नोट के लिए पेपर व इंक आयात करने का समझौता रहा है। करेंसी की पाइरेसी करने के लिए पेपर और इंक सबसे बड़ा फैक्टर है। जब पाकिस्तान को ये सहज सुलभ हो जाता था तो बाकी सिक्योरिटी फीचर तो सोफ्टवेयर की डिजाइनिंग पर आधारित होते हैं। कुछ समय बाद उनकी नकल करना मुमकिन हो जाता है। यही कारण है कि पाकिस्तान से छपकर आने वाली करेंसी को सामान्य व्यक्ति मुश्किल से पहचान पाता है। इनकी पहचान के लिए 2008 से सभी बैंकों में जाली नोटों की पहचान करने वाली मशीनों का लगाया जाना अनिवार्य किया गया और रिजर्व बैंक को इनकी पहचान के लिए दिशा निर्देशों का प्रचार शुरू करना पड़ा।
पाकिस्तान में करेंसी छपने के बाद उसे भारत पहुंचाने के लिए रूट क्या होता है?
पाकिस्तान से जाली करेंसी आने का सबसे बड़ा गलियारा भारत से लगने वाले सॉफ्ट बॉर्डर रहे हैं। मसलन, वे पड़ोेसी देश जिनमें आवागमन के लिए किसी तरह के पासपोर्ट या वीजा की आवश्यकता नहीं होती। जाली करेंसी की आमद के लिए आईएसआई ने सबसे ज्यादा नेपाल के इसी बॉर्डर का इस्तेमाल किया। नेपाल ऐसा सेफ बार्डर रहा है जहां हर रोज मामूली औपचारिकता के साथ सैकड़ों लोग नेपाल से भारत आते हैं। नेपाल के अलावा बांग्लादेश का बॉर्डर भी सॉफ्ट बार्डर रहा है। यहां से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी लोगों का पश्चिम बंगाल, असम, बिहार व पूर्वोत्तर के राज्यों में आवागममन होता है।
भारत में प्रचलित नकली करेंसी का 92 फीसदी पाकिस्तान से नेपाल व बांग्लादेश में भेजकर इन्हीं सेफ बार्डर से भारत के बाजार तक पहुंचाया जाता रहा है। इसके अलावा दूसरा तरीका है बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान की सीमा से घुसपैठ कर भारत आने वाले लश्करे तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, जैश ए मोहम्मद जैसे आतंकवादियों के जरिये नकली करेंसी भेजना। आतंकवादियों के जरिये जो करेंसी पाकिस्तान भेजता है वह सीधे तौर पर आतंकवादी अपनी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रयोग में लाते रहे हैं। जबकि सेफ बॉर्डर से छोटे-मोटे तस्कर व स्थानीय नागरिक के जरिए भेजी जाने वाली नकली नोटों की खेप भेजने के तरीके अलग अलग रहे हैं। गुजरात, जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, असम, राजस्थान, पंजाब और यूपी व उत्तरांचल की सीमाएं नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान से सटी हैं। इन सीमाओं से नशा तस्करों के अलावा जाली करेंसी के धंधे में लगे एजेंट व तस्कर भी अपने एजेंटों की कई तरह की तिकड़मों से घुसपैठ कराकर नकली करेंसी को अपने सब एजेंटों के जरिये भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रचलित करा देते हैं।
पाकिस्तान में छपने वाली भारतीय करेंसी के अलावा भी क्या नकली करेंसी का कोई दूसरा स्रोत हो सकता है?
जैसा कि मैंने बताया, आईएसआई नकली नोट बनाने का सॉफ्टवेयर तैयार करके भारत में कुछ तस्करों को भी मुहैय्या कराती रही है। तीन साल पहले हमारी एजेंसियों को इनपुट मिले थे कि बांग्लादेश की राजधानी ढाका के फकीरपुर में भी नकली करेंसी छापने वाली कोई छोटी प्रिंटिंग यूनिट काम करती है। इसके अलावा मेघालय, असम के कुछ माओवाद प्रभावित इलाके में भी नकली करेंसी छापने वाली यूनिटों के लगे होने की सूचना सामने आ चुकी है मगर उन्हें आज तक पकड़ा नहीं जा सका।
भारतीय सीमा क्षेत्र में आने के बाद नकली करेंसी के प्रसार के क्या खास तरीके अपनाए जाते हैं?
पुलिस व सुरक्षा बलों के साथ खुफिया एजेंसियों की जांच में अब तक दो खास तरीके सामने आए हैं, जिनके जरिये सीमा क्षेत्रों से देश के दूसरे हिस्सों तक जाली करेंसी पहुंचाई जाती रही है। पहला तरीका सीमा क्षेत्रों से माल लादकर लाने वाले ट्रक में भरे सामान के बीच रखकर और दूसरा तरीका रहा है नकली नोटों की खेप को शहरों व कस्बों तक पहुंचाने के लिए महिला कैरियरों का इस्तेमाल। जाली करेंसी की तस्करी व अपराधी गिरोह आमतौर पर इसी नेटवर्क का इस्तेमाल करते हैं।
नोटबंदी के बाद कितनी उम्मीद है कि जाली करेंसी प्रचलन से बाहर हो जाएगी?
ब्लैकमनी और बिना हिसाब किताब वाली जमा हुई करेंसी भले ही थोड़ी बहुत काली से सफेद हो जाए, लेकिन अब तक प्रचलन में रही बडेÞ नोटों के रूप में पुरानी करेंसी के बंद होने के बाद नकली करेंसी सौ फीसदी चलन से बाहर हो जाएगी। क्योंकि इस करेंसी को जमा करने का एकमात्र जरिया बैंकिंग सिस्टम है। वहां तक इसे पहुंचाने की जुर्रत कोई भी नकली करेंसीधारक नहीं करेगा। अगर रिजर्व बैंक ने नई करेंसी में प्रयुक्त करेंसी पेपर और इंक का स्रोत अपने तक सीमित रखा तो निश्चित तौर पर लंबे समय तक भारत की अर्थव्यवस्था जाली करेंसी से मुक्त रह सकती है।
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