मास्टर जी को पुजारी बनाने पर बवाल

ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

एक पत्र क्या-क्या नहीं कर सकता। तरीका भले पुराना हो मगर खतोखितावत भी मुद्दा बन सकते हैं। कम से कम हरियाणा में तो ऐसे ही एक पत्र के जवाब में आजकल पूरी सरकार भगवाकरण के आरोपों से दो चार हो रही है। पूरी सरकार इस पत्र पर उठाए जा रहे सवालों का जवाब देने में लगी है। यह विवाद तब खड़ा हुआ जब हरियाणा के यमुनानगर जिले के बिलासपुर ब्लॉक के एसडीएम ने 29 अक्टूबर को एक सरकारी पत्र जारी कर उन शिक्षकों से स्पष्टीकरण मांग लिया जो मेला कपाल मोचन के लिए पुजारी का काम करने वाले प्रशिक्षिण शिविर में नहीं आए। बस फिर क्या था, किसी शिक्षक ने यह पत्र वायरल कर दिया और शुरू हो गया विवाद। विपक्ष ने इसे हाथों हाथ लिया, सरकार पर ताबड़तोड़ हमला बोल दिया। आरोपों से परेशान सरकार के रणनीतिकार पहले तो कुछ समझ नहीं पाए, जब समझे तो देर हो गई थी।
कांग्रेस विधायक व पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल ने सरकार पर आरोप लगाया, ‘यह शिक्षा के भगवाकरण की कोशिश है जिसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। शिक्षक पढ़ाएंगे या पूजा कराएंगे। हम ऐसा नहीं होने देगे। इस व्यवस्था का हर मंच पर विरोध किया जाएगा।’ पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा ने कहा, ‘यह सरकार अजीबोगरीब तरीके से व्यवहार कर रही है। यह निर्णय एकदम गलत है। कांग्रेस इसका विरोध करेगी।’

शिक्षकों को पुजारी बनाने की जरूरत क्यों पड़ी
दरअसल, हरियाणा सरकार ने यमुनानगर जिले के कपाल मोचन तीर्थ स्थल को अपने अंदर ले लिया है और यहां श्राइन बोर्ड बना दिया है। यह काम हुड्‌डा सरकार में हुआ था। तब से लेकर अभी तक यहां के स्थानीय पुजारी और प्रशासन के बीच टकराव चल रहा है। हर साल नवंबर में यहां बड़ा स्नान होता है। इसमें पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली और यूपी से 20-25 लाख श्रद्धालु आते हैं। यहां वे तीन दिन तक रहते हैं। सिखों के लिए यह मेला आस्था का केंद्र है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सिखों के पहले गुरू गुरूनानक देव यहां आए थे। बाद में श्रीगुरु गोबिंद सिंह भी इस स्थल पर आए थे। ऐसे में पंजाब के सिख अनुयायी और विदेश मे बसे सिख भी यहां आते हैं। श्राइन बोर्ड बनने के बाद अब यहां न तो पुजारी हैं न सिख धर्म के अनुसार पूजा कराने वाले। इसलिए सरकार ने यह काम शिक्षकों को सौंप रखा है। इस बार शिक्षक इस काम के लिए तैयार नहीं हुए। इसके चलते प्रशासन और शिक्षकों के बीच टकराव चल रहा है।
ओापिनियन पोस्ट ने जब इस व्यवस्था की पड़ताल की तो पाया कि यह व्यवस्था नई तो कतई नहीं है। यह तो कांग्रेस सरकार के समय से ही होता आया है। इस बार बस अंतर यह आया कि शिक्षकों को पुजारी का काम करने के लिए दिए जाने वाले प्रशिक्षण को लेकर थोड़ी सख्ती बरती गई। बस यही सख्ती शिक्षकों को रास नहीं आई। कांग्रेस ने वर्ष 2010 में आदि बद्री श्राइन बोर्ड का गठन इस मेले के संचालन के लिए किया था। मेला आयोजन के लिए विभिन्न विभागों के कर्मचारी, अधिकारियों की ड्यूटी लगाई जाती है। खुद कांग्रेस शासन में वर्ष 2013 में 130 शिक्षकों की ड्यूटी लगाई गई थी। भाजपा शासन के दौरान यह संख्या 100 कर दी गई। यमुनानगर के वरिष्ठ पत्रकार ओम गुप्ता ने बताया, ‘यह मेला इस इलाके का सबसे बड़ा मेला है जिसमें लाखों लोग आते हैं। कांग्रेस सरकार से पहले यहां धार्मिक स्थल के पुजारी ही पूजा का काम कराते थे। बाद में सरकार ने इस तीर्थ को अपने अंदर ले लिया। तब से यहां दिक्कत आ रही है। श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं तो बढ़ी नहीं, हर साल कोई न कोई विवाद जरूर इस मेले से जुड़ रहा है। होना तो यह चाहिए कि मेले का व्यपक प्रचार-प्रसार हो क्योंकि यह कल्चर एक्सचेंज का एक बड़ा केंद्र बन सकता है। इसके साथ ही पहाड़ी क्षेत्र के विकास के लिए भी यह मेला जरूरी है। लेकिन विवादों की वजह से मेला अपना महत्व ही खो रहा है। इस पर राजनीति तो कम से कम नहीं होनी चाहिए।’

सख्ती ठीक नहीं
प्रदेश शिक्षक संघ के अध्यक्ष अनुप शर्मा ने कहा, ‘यह सही है कि कई सालों से शिक्षक मेले में पुजारी का काम करते आए हैं। इसमें नया कुछ नहीं है। नया बस यह है कि इस बार प्रशिक्षण को लेकर खासी सख्ती बरती जा रही है। होना यह चाहिए कि शिक्षक अपनी मर्जी से ही आगे आएं। इससे व्यवस्था बनाए रखने में भी मदद मिलगी और इस तरह के विवाद भी सामने नहीं आएंगे। इस बार असली दिक्कत यह आई कि किसी को इस व्यवस्था का पता ही नहीं था। ऐसे में जैसे ही शिक्षकों के खिलाफ कार्यवाही का पत्र वायरल हुआ तो लगा कि यह व्यवस्था पहली बार हो रही है।’ चंडीगढ़ स्थित सोशल स्टडी सेंटर के अध्यक्ष डाक्टर गुरपाल सिंह ने कहा, ‘भाजपा सरकार में दिक्कत यह है कि इनके पास ऐसे लोग ही नहीं हैं जो सरकार के खिलाफ लगने वाले आरोपों का तथ्यात्मक तरीके से जवाब दे सकें। यही वजह है कि कई बार सरकार ऐसे आरोपों में फंस जाती है जिसके लिए वे जिम्मेदार होते भी नहीं। कम से कम पुजारी वाला मसला तो ऐसा ही है।’

कुछ भी बोलना सही नहीं : रामबिलास शर्मा
शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा कि पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल को याददाश्त दुरुस्त करनी चाहिए। कांग्रेसी भगवाकरण से भय खाने लगे हैं और आंखें मूंदकर कुछ भी बोलना चाहें तो भी भगवाकरण पर अटक जाते हैं। कांग्रेसी अपनी परंपरा को भाजपा पर थोपकर अपनी कारगुजारियों से पीछा छुड़ाना चाहती है। कपाल मोचन मेला देशभर में विख्यात है। विभिन्न राज्यों से हर साल लाखों श्रद्धालु बिलासपुर पहुंचते हैं। इसके संचालन के लिए टीचर की ड्यूटी लगती है। यह व्यवस्था कांग्रेस के समय में ही हुई थी। तब गीता भुक्कल ही शिक्षा मंत्री थीं। कपाल मोचन मेला के लिए सरकार की ओर से कोई दिशा-निर्देश जारी नहीं किए जाते बल्कि प्रशासन स्तर पर ही यह तय किया जाता है। शिक्षकों की पूजा कराने की नहीं बल्कि प्रसाद वितरण, कार्यालय संबंधी कामों के लिए ड्यूटी लगाई गई है। चूंकि इस मेले का आयोजन साल में एक बार किया जाता है ऐसे में इसके लिए सरकार स्थायी भर्ती नहीं कर सकती।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *