संविधान और कानून से ऊपर नहीं हैं केजरीवाल

लाभ के पद मामले में चुनाव आयोग की अनुशंसा के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिया है। आम आदमी पार्टी के विधायकों के खिलाफ याचिका दायर करने वाले वकील प्रशांत पटेल से अभिषेक रंजन सिंह की खास बातचीत।

आपको कब महसूस हुआ कि इस मामले में केजरीवाल सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के विरूद्ध काम किया है?
जून 2015 में दिल्ली विधानसभा और लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा की एक किताब ‘दिल्ली सरकार : शक्तियां और सीमाएं’ का लोकार्पण हुआ था। उस किताब का मैंने समग्र अध्ययन किया। उसके बाद मुझे पता चला कि दिल्ली सरकार द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति गैर संवैधानिक है। अगर कोई इन नियुक्तियों को चुनौती दे तो यह रद्द हो सकता है। उसके बाद मैंने 19 जून, 2015 को राष्ट्रपति सचिवालय में याचिका लगाई। संविधान के मुताबिक आॅफिस आॅफ प्रॉफिट के मामले में कोई याचिका आती है तो राष्ट्रपति सचिवालय उसे चुनाव आयोग को भेजता है। 10 नवंबर, 2015 को राष्ट्रपति सचिवालय ने मेरी याचिका को चुनाव आयोग भेजा। मार्च 2016 में चुनाव आयोग ने 21 विधायकों को नोटिस भेजा और जबाव दाखिल करने का कहा। हालांकि आम आदमी पार्टी के एक विधायक जरनैल सिंह पहले ही इस्तीफा दे चुके थे। मई 2016 में सभी बीस विधायकों ने चुनाव आयोग को अपना जबाव दाखिल किया। विधायकों ने आयोग से आग्रह किया कि उन्हें सुनवाई का मौका दिया जाए। उसके बाद 14 जुलाई, 2016 से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। 14 जुलाई, 2016 से 27 मार्च, 2017 तक इस मामले में विस्तृत सुनवाई हुई। इसी बीच 20 सितंबर, 2016 को दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने चुनाव आयोग के निर्देश पर एक विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जिसमें बताया गया कि इन विधायकों को कई तरह की सुविधाएं मुहैया कराई गई थी। सरकार की तरफ से ग्यारह लाख रुपये इन विधायकों पर दिल्ली विधानसभा में खर्च किए गए। चार लाख रुपये दिल्ली सचिवालय में इनके ऊपर खर्च किए गए। इतना ही नहीं, ये सभी सभी विधायक केजरीवाल सरकार की कैबिनेट की बैठकों में हिस्सा लेते थे। इन विधायकों ने दिल्ली सरकार के मंत्रियों के साथ मिलकर कई निजी कंपनियों को गलत तरीके से फायदा भी पहुंचाया।

आम आदमी पार्टी के नेताओं का आरोप है कि उनके विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के पीछे भाजपा का हाथ है। परोक्ष रूप से चुनाव आयोग और राष्ट्रपति के फैसले पर भी उन्होंने सवाल उठाए। उनकी दलील है कि चुनाव आयोग ने विधायकों का पक्ष नहीं सुना। इसमें कितनी सच्चाई है?
इसमें कोई संदेह नहीं कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं। वह भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं। जाहिर है संविधान का उन्होंने अध्ययन किया होगा। लेकिन दिल्ली में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने के बाद उनका अहंकार बढ़ गया और वह स्वयं को देश के संविधान और कानून से ऊपर मानने लगे। यह मामला पूरी तरह गैर राजनीतिक है। आॅफिस आॅफ प्रॉफिट का मामला चुनाव आयोग और राष्ट्रपति तय करते हैं। इसमें न तो कोर्ट और न ही कोई तीसरा पक्ष दखल देता है। इसलिए यह कहना गलत है कि यह भाजपा की साजिश है और चुनाव आयोग उसके इशारे पर काम कर रहा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके नेताओं का यह दुष्प्रचार है अपनी गलतियां छिपाने का। आम आदमी पार्टी के नेता बयान दे रहे हैं कि चुनाव आयोग ने उनका पक्ष नहीं सुना। यह बेकार की बातें हैं। इसकी सच्चाई मैं बताता हूं। आॅफिस आॅफ प्रॉफिट के मामले में ग्यारह सुनवाई होने के बाद चुनाव आयोग ने 28 सितंबर, 2017 और 2 नवंबर, 2017 को इन विधायकों को नोटिस भेजा कि आपके खिलाफ दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव ने जो साक्ष्य दिए हैं उस पर अपना पक्ष रखें। लेकिन कोई विधायक दिसंबर 2017 तक अपना पक्ष रखने चुनाव आयोग नहीं गया क्योंकि वे जानते थे कि सारे सबूत उनके खिलाफ हैं। उसके बाद चुनाव आयोग ने 19 जनवरी, 2018 को राष्ट्रपति के पास 20 विधायकों को अयोग्य करार देने की सिफारिश की। 21 जनवरी, 2018 को राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग की सिफारिश को मंजूर कर 20 विधायकों को अयोग्य ठहराया। इसलिए आम आदमी पार्टी का यह कहना सरासर गलत है कि उनके विधायकों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला जबकि दो साल तक यह मामला चला।

इस मामले में आम आदमी पार्टी की याचिका दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दी। अब उनके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प है। क्या आपको लगता है कि शीर्ष अदालत से अयोग्य विधायकों को कोई राहत मिलेगी?
आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी लेकिन अदालत ने उसे खारिज कर दिया। अब वे राष्ट्रपति के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं लेकिन कोई फायदा नहीं है। हाई कोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी याचिका खारिज होनी तय है। संविधान के अनुच्छेद 102,191 और एनसीटी (नेशनल कैपिटल टेरिटरी) एक्ट की धारा 15 के तहत आॅफिस आॅफ प्रॉफिट मामले में राष्ट्रपति का निर्णय अंतिम होता है। इसलिए इस मामले में देश की शीर्ष अदालत से भी अयोग्य करार दिए गए विधायकों को किसी प्रकार की राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। आॅफिस आॅफ प्रॉफिट के मामलों में विधायकों और सांसदों को अयोग्य ठहराने का अधिकार सिर्फ राष्ट्रपति के पास होता है।

आम आदमी पार्टी के कुछ और विधायकों पर आॅफिस आॅफ प्रॉफिट का मामला चुनाव आयोग में लंबित है। क्या है इसकी कहानी?
हां, इस मामले में एक व्यक्ति ने चुनाव आयोग में याचिका दायर की है। दरअसल, आम आदमी पार्टी की सरकार ने अपने कुछ विधायकों को रोगी कल्याण समिति में चेयरमैन बनाया था। यह मामला चुनाव आयोग में लंबित है। मेरे ख्याल से यह मामला भी आॅफिस आॅफ प्रॉफिट की श्रेणी में आ सकता है। अगर रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन बनाए गए विधायकों के खिलाफ ठोस साक्ष्य मिलते हैं तो उन्हें भी अयोग्य ठहराया जा सकता है।

आम आदमी पार्टी का कहना है कि छत्तीसगढ़, गुजरात, पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने भी इस प्रकार की नियुक्तियां की हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। क्या वाकई इस मामले में पक्षपात हो रहा है?
बेशक इन राज्यों की सरकारों ने ऐसी नियुक्तियां की हैं लेकिन उन राज्यों के कानून के तहत ऐसी नियुक्तियां आॅफिस आॅफ प्रॉफिट के तहत नहीं आती हैं। आम आदमी पार्टी के नेताओं को यह समझना चाहिए कि जिन राज्य सरकारों पर वे आरोप लगा रहे हैं वे सभी पूर्ण राज्य हैं। उन राज्यों ने ऐसी नियुक्तियां करने से पहले विधानसभा में कानून बनाया और उसके बाद नियुक्तियां कीं। लेकिन दिल्ली सरकार ने पहले नियुक्तियां की उसके बाद कानून बनाने की कोशिश की जिसमें वो असफल रही। जब 19 जून, 2015 को मैंने आम आदमी पार्टी के विधायकों के खिलाफ राष्ट्रपति सचिवालय में याचिका दायर की उसके बाद 24 जून, 2015 को दिल्ली सरकार ने इस बाबत विधेयक पास कराया लेकिन राष्ट्रपति ने उसे खारिज कर दिया। इसलिए चुनाव आयोग पर यह आरोप लगाना कि वह कोई पक्षपात कर रहा है गलत है। आम आदमी पार्टी को चुनाव आयोग जैसे स्वतंत्र, निष्पक्ष और संवैधानिक संस्था पर आधारहीन आरोप लगाने से बचना चाहिए।

इस मामले के बाद आपकी चर्चा सियासी गलियारों में काफी हो रही है। दिल्ली पुलिस से भी आपने अपनी सुरक्षा की मांग की है। क्या किसी प्रकार की धमकियां आपको मिल रही हैं?
हां, यह सही है कि दिल्ली पुलिस से मैंने अपनी सुरक्षा की मांग की है लेकिन अभी तक उनका कोई जबाव नहीं आया है। आम आदमी पार्टी का दावा है कि वह अन्य पार्टियों से अलग है लेकिन अपने नेताओं को आघात पहुंचाने का उनका इतिहास रहा है। मेरी याचिका से जिन बीस विधायकों को अयोग्य ठहराया गया है जाहिर है वे काफी गुस्से में होंगे और मेरे खिलाफ कोई कातिलाना साजिश कर सकते हैं। इसलिए मैंने अपनी सुरक्षा की मांग की है।

आपके इस कदम से भाजपा और कांग्रेस में खुशी है। क्या इन दलों की ओर से आपको पार्टी में शामिल होने का कोई प्रस्ताव मिला है। अगर ऐसा प्रस्ताव आता है तो आपकी पसंद भाजपा होगी या कांग्रेस?
मैं एक सामान्य व्यक्ति हूं और दिल्ली हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में पिछले तीन वर्षों से प्रैक्टिस कर रहा हूं। आम आदमी पार्टी से मेरी कोई निजी लड़ाई नहीं है। चूंकि मैं एक वकील हूं और मैंने पाया कि दिल्ली सरकार ने संविधान और कानून के खिलाफ ये नियुक्तियां की हैं। फिलहाल राजनीति में आने का मेरा कोई इरादा नहीं है। मैं वकालत के पेशे से संतुष्ट हूं। यह सही है कि कांग्रेस और भाजपा के नेताओं से मेरी बातचीत होती है। आम आदमी पार्टी से निकालेगए कपिल मिश्रा और पार्टी से असंतुष्ट कुमार विश्वास से भी मेरी बातचीत होती है। किसी राजनीतिक पार्टी ने मुझे दल में शामिल होने का कोई प्रस्ताव नहीं दिया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *