अभिषेक रंजन सिंह, नई दिल्ली।

आपने पाकिस्तान के कायद-ए- आजम मुहम्मद अली जिन्ना का नाम तो जरूर सुना होगा। पाकिस्तान में उनकी याद में तमाम स्मारक और शैक्षणिक संस्थान हैं। जरा सोचिए, क्या भारत में उनके नाम पर कोई स्मारक या सड़क का नाम हो सकता है? आइये हम आपको ले चलते हैं आंध्र प्रदेश के गुंटूर शहर में। जिला कलेक्ट्रेट से थोड़ी ही दूर एक व्यस्त चौराहे पर सफेद रंग ऊंची एक मीनार है, जिसका नाम ‘जिन्ना टावर’ है। जी हां पाकिस्तान के बाबा-ए-कौम  (राष्ट्रपिता) मुहम्मद अली जिन्ना। इस टावर का निर्माण 60 साल पहले लालजन बाशा ने कराया था, जो टीडीपी के पूर्व सांसद एस.एम लालजन बाशा के दादा थे। जिन लोगों की नजर पहली मर्तबा इस टावर पर पड़ती है, वह यही सवाल करते हैं कि जिन्ना के नाम पर यह खूबसूरत मीनार यहां क्यों हैं? इस बाबत गुंटूर यूनिवर्सिटी के रिटायर रजिस्ट्रार समशिवा राव ने बताया कि आजादी से पहले करीब 1939 में मुहम्मद अली जिन्ना कुछ दिनों के लिए गुंटूर आए थे। जिन्ना टावर के ठीक सामने कई एकड़ में फैले एक मैदान की ओर इशारा करते हुए उन्होंने बताया कि यहां जिन्ना साहब ने एक बड़ी जनसभा को संबोधित किया था। हालांकि, यह मैदान अब गांधी मैदान कहलाता है। जिन्ना के उस ऐतिहासिक भाषण सुनने वाले कई लोग आज भी जीवित हैं।

आज गांधी मैदान का इलाका काफी बदल चुका है, लेकिन उस मैदान में इमली का एक पेड़ आज भी मौजूद है, जिसके नीचे बैठकर मुहम्मद अली जिन्ना ने पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की थी। श्रीधर रेड्डी गुंटूर के काफी पुराने शहरी हैं और यहां के इतिहास से काफी बावस्ता भी। वह जिन्ना को भारत बंटवारे का एकमात्र दोषी नहीं मानते हैं। वह बताते हैं, “ उन दिनों महात्मा गांधी के बाद अगर कोई कद्दावर नेता थे, तो वह मुहम्मद अली जिन्ना थे। नेहरू को जिन्ना की लोकप्रियता से भयभीत रहते थे, क्योंकि जिन्ना जिन शहरों में जाते थे, लोगों की भीड़ उन्हें सुनने के लिए उमड़ पड़ती थी। भारत विभाजन का सारा दोष मुहम्मद अली जिन्ना पर मढ़ना ठीक नही है। “

आज भारत और पाकिस्तान दो अलग मुल्क बन चुके हैं। जिस तरह महात्मा गांधी भारत में राष्ट्रपिता कहलाए उसी तरह पाकिस्तान की अवाम ने मुहम्मद अली जिन्ना को कायद-ए-आजम का दर्जा मिला। बेशक, पंडित जवाहरलाल नेहरू आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, लेकिन जिन्ना के बरअक्स वह बड़े नेता नहीं बन पाए। छह खंभों की मदद से बना यह टावर आंध्र प्रदेश पुरातत्व सर्वेक्षण के उचित संरक्षण और देखरेख की वजह से अच्छी हालत में है। जिन्ना के जन्मदिन की पुण्यतिथि के मौके पर यहां उन्हें श्रद्धांजलि देने तो कोई नहीं आता, लेकिन उस दिन यहां से गुजरने वाले लोग एक बार जिन्ना टावर को श्रद्धा की नजर से जरूर देखते हैं। हालांकि, आंध्र प्रदेश के कई संगठन जिन्ना टावर को ध्वस्त करने की मांग भी सरकार के समक्ष रखी थी, जिसे आंध्र प्रदेश सरकार ने खारिज कर दिया। शेख नजरूल इस्लाम गुंटूर में किताब की दुकान चलाते हैं। इतिहास की किताबें पढ़ना उनका शौक है। उनके मुताबिक, भारत और पाकिस्तान भले ही दो मुल्क हो गए हैं, लेकिन जिन्होंने कभी साथ मिलकर इस मुल्क में आजादी की लड़ाई लड़ी, ऐसे नेताओं और क्रांतिकारियों को अलग करके नहीं देखना चाहिए। वह बताते हैं, “ इसे भारत की गंगा-जमुनी तहजीब ही कहा जाएगा कि गुंटूर शहर में जिन्ना टावर आज भी महफूज है। भगत सिंह के नाम पर लाहौर में कोई स्मारक नहीं होने से उन्हें काफी दुख है। उनके मुताबिक, भारत और पाकिस्तान न सिर्फ साझी विरासत वाला मुल्क है, बल्कि यहां की रवायतें भी एक-दूसरे से मिलती जुलती है।

गौरतलब है कि देश के कई शहरों में अन्य देशों की बड़ी शख्सियतों की मूर्तियां लगी हैं। ऐसे में गुंटूर स्थित जिन्ना टावर पर मुहम्मद अली जिन्ना की मूर्ति स्थापित होनी चाहिए, ऐसा वहां के कुछ लोगों का कहना है। खैर, भारत में जिन्ना के नाम पर शायद यह इकलौता स्मारक है, जो न सिर्फ अच्छी स्थिति में है, बल्कि गुटूंर के लोगों को इस पर नाज भी है। पाकिस्तान में मौजूद मुहम्मद अली जिन्ना के परिजनों और वहां के राजनेताओं को यहां एक बार जरूर आना चाहिए और देखना चाहिए कि उनके कायद-ए-आजम को गुंटूर के लोग कितना सम्मान देते हैं।