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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक समीकरण बदलने वाला है. ‘दीदी’ का किला तोडऩे के लिए भाजपा तो कोशिश कर ही रही है, लेकिन किले की दीवार के कुछ पत्थर भी बाहर निकल कर भगवा इमारत को मजबूत करने में जुटे हैं, जिससे ‘दीदी’ की परेशानी बढऩे वाली है. कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे भाटपारा के विधायक एवं गैर बांग्लाभाषी लोगों के नेता अर्जुन सिंह ने टीएमसी का साथ छोडक़र भाजपा का दामन थाम लिया है. गैर बांग्लाभाषियों के बीच खासे लोकप्रिय अर्जुन सिंह के भाजपा में शामिल होने के बाद कोलकाता, हावड़ा, जलपाईगुड़ी, उत्तर एवं दक्षिण चौबीस परगना आदि क्षेत्रों में ममता की मुश्किलें बढऩे वाली हैं.

जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गृह राज्य में भाजपा एक बड़ी जीत की तैयारी में लगी हुई है. हालांकि, भाजपा को अभी तक कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई है, लेकिन इस बार वह यहां परचम लहराने की तैयारी कर रही है. एक ओर भाजपा इस राज्य में जहां अपना आधार मजबूत करने में लगी है, तो वहीं तृणमूल कांग्रेस के कुछ नेता भी भाजपा की राह आसान करने में लगे हैं. वैसे तो चुनाव के समय नेताओं द्वारा अपनी पुरानी पार्टी छोडक़र दूसरी पार्टी में जाना कोई नई बात नहीं है, लेकिन कुछ नेताओं का बड़ा प्रभाव पड़ता है. पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी और उनमें से कुछ भाजपा में शामिल हुए, जिनमें दो सांसद एवं एक विधायक भी हैं. बोलपुर के सांसद अनुपम हजारे एवं विष्णुपुर के सांसद सौमित्र खान के साथ-साथ भाटपारा के विधायक अर्जुन सिंह द्वारा टीएमसी छोडक़र भाजपा में शामिल होना ममता बनर्जी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. सबसे अधिक चर्चा अर्जुन सिंह की है. चार बार से भाटपारा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अर्जुन सिंह को भाजपा ने टीएमसी के दिनेश त्रिवेदी के खिलाफ बैरकपुर से उम्मीदवार बनाया है. बैरकपुर लोकसभा सीट पर भाजपा की जीत की उम्मीदें बढ़ती नजर आ रही हैं. इसके अलावा आस-पास की कई दूसरी लोकसभा सीटों पर भी अर्जुन सिंह का अच्छा-खासा प्रभाव बताया जाता है. ममता बनर्जी के निकटतम सहयोगी रहे अर्जुन सिंह ने खुद को बैरकपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाने की मांग की थी, जिस पर कोई ध्यान न देते हुए निवर्तमान सांसद दिनेश त्रिवेदी को उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. इसके बाद अर्जुन सिंह ने टीएमसी के खिलाफ मोर्चा खोलने की ठान ली. हालांकि, ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी में बनाए रखने के लिए काफी कोशिश की और झारखंड का प्रभारी भी नियुक्त कर दिया, लेकिन वह इससे संतुष्ट नहीं हुए. आखिरकार उन्होंने ममता बनर्जी का साथ छोडऩे का मन बना लिया. पार्टी छोडऩे के कुछ दिनों बाद ही वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए.

गौरतलब है कि जमीनी स्तर पर सक्रिय अर्जुन सिंह की छवि एक कर्मठ नेता की रही है. उन्होंने साल 1995 में कांग्रेस के टिकट पर वार्ड चुनाव लडऩे के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी, लेकिन जब ममता बनर्जी ने साल 1998 में तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की, तो वह भी उनके साथ चले गए. साल 2001 में उन्होंने टीएमसी के टिकट पर भाटपारा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कराई. उसके बाद तो उन्होंने हर विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की. साल 2004 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने उन्हें बैरकपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ाया, लेकिन वह हार गए. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी से दिनेश त्रिवेदी को इस सीट से उम्मीदवार बनाया. त्रिवेदी ने साल 2009 और 2014 में यहां से जीत दर्ज की, जिसके पीछे अर्जुन सिंह का बड़ा योगदान माना जाता है. जूट मिलों में काम करने वाले मजदूरों पर अर्जुन सिंह का अच्छा प्रभाव है. वह इस बड़े जनाधार का इस्तेमाल हर चुनाव में करते रहे हैं. अपनी लोकप्रियता एवं मजबूत स्थिति के चलते ही वह ममता बनर्जी के करीब पहुंचे और तृणमूल कांग्रेस में उनका कद बढ़ता चला गया. धीरे-धीरे वह पश्चिम बंगाल में रहने वाले गैर बांग्लाभाषी लोगों के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे. टीएमसी ने उन्हें बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पंजाब प्रकोष्ठ का अध्यक्ष बना दिया. राज्य में गैर बांग्लाभाषी लोगों की आबादी करीब 15 प्रतिशत है. कोलकाता के कई क्षेत्रों के अलावा नदिया, हावड़ा, हुगली, जलपाईगुड़ी, उत्तर चौबीस परगना में गैर बांग्लाभाषी लोगों की अच्छी-खासी आबादी है. साल 2011 की भाषाई जनगणना के मुताबिक, कोलकाता में 22 और जलपाईगुड़ी में 20 प्रतिशत हिंदीभाषी लोग रहते हैं. इसके अलावा हावड़ा में करीब 12 प्रतिशत, हुगली में 8 प्रतिशत, उत्तर चौबीस परगना में 8 प्रतिशत, बर्धमान में 12 प्रतिशत, दार्जिलिंग में 17 प्रतिशत, उत्तर दिनाजपुर में 17 प्रतिशत हिंदीभाषी लोग रहते हैं. हिंदीभाषी लोगों के बीच अर्जुन सिंह की पहचान एक कद्दावर नेता के रूप में है. टीएमसी के गैर बांग्लाभाषी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष के तौर पर काम करते हुए उन्होंने अपनी अच्छी पहचान बना ली है.

अर्जुन सिंह अब भाजपा में हैं, तो उनकी इस साख का फायदा तो चुनाव में मिलना तय है. इन क्षेत्रों के टीएमसी के नेता-कार्यकर्ता अब अर्जुन सिंह के साथ भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. जिन क्षेत्रों में भाजपा को प्रचार के लिए कार्यकर्ता नहीं मिल पा रहे थे, वहां आज उसकी रैलियों और रोड शो में लोगों का हुजूम उमड़ रहा है. भाजपा ने पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से 23 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. स्थानीय चुनाव में भाजपा के वोट शेयर में काफी इजाफा हुआ था. पार्टी का आधार पहले की अपेक्षा काफी बढ़ा है. पिछले चुनाव में भाजपा ने करीब 17 प्रतिशत वोटों के साथ दो सीटें जीती थीं, लेकिन असम में मिली सफलता और पश्चिम बंगाल के स्थानीय चुनाव में पार्टी की बढ़ती लोकप्रियता ने भाजपा का भरोसा बढ़ाया, जिसके बाद उसने राज्य में बेहतर प्रदर्शन करने का लक्ष्य निर्धारित किया. भाजपा की इसी बढ़ती लोकप्रियता के कारण टीएमसी से नाराज नेताओं एवं कार्यकर्ताओं ने उसका दामन थामा है. अर्जुन सिंह टीएमसी और ममता बनर्जी की नीतियों से नाराज थे, लेकिन कोई दूसरा विकल्प न होने के कारण वह पार्टी के साथ खड़े रहे. जैसे ही उन्हें विकल्प मिला, उन्होंने पुरानी पार्टी से संबंध तोड़ कर भाजपा का दामन थाम लिया. अर्जुन सिंह न केवल अपने क्षेत्र में टीएमसी को पटखनी देने वाले हैं, बल्कि कोलकाता, हावड़ा, नदिया, जलपाईगुड़ी आदि अन्य क्षेत्रों में भी वह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करेंगे. लोकसभा चुनाव के साथ-साथ पश्चिम बंगाल के आगामी विधानसभा चुनाव में भी अर्जुन सिंह का भरपूर फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिलने वाला है.