santhal paragna

संथाल परगना की तीनों लोकसभा सीटों दुमका, गोड्डा एवं राजमहल पर इस बार भाजपा का महागठबंधन से कड़ा मुकाबला होना तय है. इन तीनों सीटों पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं. भाजपा, झामुमो एवं झाविमो ने अपने-अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिए हैं. दुमका से झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन स्वयं चुनाव लड़ रहे हैं, यह उनकी परंपरागत सीट है. उनके खिलाफ भाजपा ने सुनील सोरेन को तीसरी बार उम्मीदवार बनाया है, वह 2009 एवं 2014 में शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर दे चुके हैं. गोड्डा से भाजपा ने लगातार दो बार जीत दर्ज करा चुके निशिकांत दूबे को फिर उम्मीदवार बनाया है, उन्होंने दोनों बार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता फुरकान अंसारी को हराया था. निशिकांत के खिलाफ महागठबंधन से झाविमो के प्रधान महासचिव सह पूर्व सांसद प्रदीप यादव को उम्मीदवार बनाया गया है. तीसरी सीट राजमहल के लिए महागठबंधन के उम्मीदवार झामुमो के वर्तमान सांसद विजय हांसदा हैं, जिन्हें घेरने के लिए भाजपा ने फिर हेम लाल मुर्मु को मैदान में उतारा है. बसपा, तृणमूल कांग्रेस एवं भाकपा के भी उम्मीदवार मैदान में हैं.

उम्मीदवारों की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर गौर करें, तो दुमका के वर्तमान सांसद झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन पिछले तीन बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं. शिबू सोरेन झामुमो के टिकट पर पहली बार 1980 में चुनाव जीते थे. 1985 में वह कांग्रेस के पृथ्वी चंद किस्कू के हाथों पराजित हुए. 1989 में शिबू ने किस्कू को पराजित कर दिया.1991 में हुए मध्यावधि चुनाव में शिबू सोरेन कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार थे और उनका मुकाबला पहली बार भाजपा के टिकट पर उतरे बाबू लाल मरांडी से हुआ था, जिसमें जीत सोरेन के हाथ लगी. 1996 में भी शिबू सोरेन एवं बाबू लाल आमने-सामने थेे, जीत फिर शिबू सोरेन की हुई. 2004, २००९ एवं 2014 में भी जीत शिबू सोरेन के कदम चूूमती रही. कयास यह लगाए जा रहे हैं कि इस बार क्या होगा? ऐसा भी नहीं है कि शिबू सोरेन अपराजेय हैं. 2009 में शिबू सोरेन मात्र 18 हजार 812 वोटों से जीते थे, जबकि 2014 में उन्होंने भाजपा के सुनील सोरेन को 39 हजार 30 वोटों से हराया था. यह अंतर लोकसभा चुनाव में कोई मायने नहीं रखता. दुमका लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा क्षेत्रों में से तीन यानी दुमका, जामा एवं शिकारीपाड़ा अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हंै. जबकि सारठ, जामताड़ा एवं नाला अन्य जातियों के लिए. दुमका दलित वोटरों का गढ़ है, जहां लोग शिबू पर अटूट विश्वास करते हैं. अब देखना यह है कि पिछले दो बार से शिबू सोरेन को कड़ी टक्कर देने वाले सुनील सोरेन केंद्र एवं राज्य सरकार की उपलब्धियों को लेकर जनता के बीच कितनी पैठ बना पाते हैं. दुमका लोकसभा सीट के लिए आगामी 19 मई को कुल 13 लाख 63 हजार 506 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे.

गोड्डा लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा के खिलाफ झाविमो है. फुरकान अंसारी की उम्मीदवारी को लेकर लगातार चली खींचतान के बाद महागठबंधन ने झाविमो के प्रदीप यादव को मैदान में उतार दिया. जातीय समीकरणों पर गौर करें, तो ढाई लाख मुस्लिम वोटरों के अलावा डेढ़ लाख से अधिक यादव वोटरों के सहारे महागठबंधन अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहा है. प्रदीप यादव 2004 में दूसरे और 2009 एवं 2014 में तीसरे स्थान पर रहे थे. गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में निशिकांत दूबे द्वारा कराए गए विकास कार्यों की चर्चा बिहार-झारखंड के राजनीतिक गलियारों में अक्सर होती रही है. 2009 में निशिकांत दूबे कांग्रेस के फुरकान अंसारी को मात्र 6,407 वोटों से हराकर पहली बार संसद पहुंचे थे और 2014 में उन्होंने दोबारा फुरकान अंसारी को 60 हजार 682 वोटों से हराया. अब देखना यह है कि गोड्डा के जातीय समीकरण में पिछड़ रहे निशिकांत को सवर्णों, गैर यादव पिछड़ों, दलितों एवं अति पिछड़ों का कितना समर्थन मिल पाता है. दूसरी ओर महागठबंधन के पक्ष में यादव एवं मुस्लिम वोटर एकजुट दिख रहे हैं.

राजमहल सीट पर विजय हांसदा को लेकर अधिक परेशानी नहीं दिख रही है, लेकिन इस बार उन्हें भाजपा की ओर से कड़ी चुनौती मिलेगी, यह तय है. राजमहल कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. विजय हांसदा के पिता थॉमस हांसदा दिग्गज कांग्रेसी थे. लेकिन, बदली राजनीतिक परिस्थितियों के चलते पिछली बार विजय हांसदा ने झामुमो के टिकट पर चुनाव लड़ा और सांसद चुने गए. राजमहल सीट पर भाजपा एवं झामुमो के बीच कड़ा मुकाबला होता रहा है. 2009 में यहां भाजपा के देवीधन बेसरा ने झामुमो के हेम लाल मुर्मु को मात्र 8,983 वोटों से हराया था, जबकि 2014 में बतौर भाजपा उम्मीदवार हेम लाल मुर्मु 41 हजार 337 वोटों से झामुमो उम्मीदवार विजय हांसदा के हाथों पराजित हुए. इस फिर हांसदा और मुर्मु आमने-सामने हैं. मुर्मु पुराने कद्दावर आदिवासी नेता हैं, जिनका क्षेत्र में व्यापक जनाधार है. साहिबगंज, राजमहल एवं बड़हरवा जैसे शहरी इलाकों में भाजपा समर्थकों की संख्या बढ़ी है, जिसका फायदा हेम लाल मुर्मु को मिलेगा. राजमहल के विधायक अनंत ओझा भी पूरी ताकत से जुटे हुए हैं. दूसरी ओर आदिवासी एवं मुस्लिम वोटरों के बीच झामुमो की पकड़ हमेशा से मजबूत रही है, इसलिए वह अपनी जीत के प्रति आश्वस्त है. 19 मई को क्षेत्र के 14 लाख 34 हजार 506 वोटर अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगेे.