रमेश कुमार ‘रिपु’

गणतंत्र दिवस से दो दिन पहले 24 जनवरी को नक्सली जिला नारायणपुर से इरपानार के लिए एसटीएफ के सौ जवान निकले थे। बाद में वे 50-50 की दो टुकड़ी में बंट गए। इरपानार और गुमटेर के बीच नक्सली कमांडर शोभी की अगुवाई में माओवादियों ने एसटीएफ की एक टुकड़ी को घेर कर फायरिंग कर दी। एसटीएफ के जवानों ने जब माओवादियों को दौड़ा कर मारना चाहा तो माओवादी महिला नक्सलियों को आगे करके चारों तरफ से गोलियां बरसाने लगे। महिलाएं गोलियां दागने के साथ ही चिल्लाते हुए कमांड भी कर रही थीं। नक्सलियों ने जवानों पर मोर्टार से बम भी दागे। करीब दो घंटे चली इस मुठभेड़ में एसटीएफ व डीआरजी के चार जवान शहीद हो गए। अस्पताल में भर्ती घायल जवान रोहित बसेरा के अनुसार, ‘यदि ओरछा थाने से निकली दूसरी टीम मौके पर न पहुंची होती तो और भी जवानों को जान गंवानी पड़ती। कई माओवादी पेड़ों पर थे। वे वहां से फायरिंग कर रहे थे। इस हमले में करीब सवा सौ महिला नक्सली शामिल थीं।’

दरअसल, माओवादियों को घेरने के लिए पुलिस ने कड़ेनार कैंप और ओरछा थाना से आॅपरेशन लॉन्च किया था ताकि माओवादियों को दोनों तरफ से घेरकर मारा जा सके। लेकिन माओवादियों को पुलिस की योजना की भनक लग गई थी। उन्होंने जवानों की एक टीम को एबुंश में ही फांस लिया। जवानों ने यूबीजीएल (अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर) का इस्तेमाल किया। यह अत्याधुनिक हथियार है। इसकी मारक क्षमता 200 मीटर तक होती है। इसमें दूर से धमाका करना आसान है। जिस जगह विस्फोट होता है वहां 20 से 25 मीटर तक कोई नहीं बच सकता। यदि एसटीएफ के जवानों के पास अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर नहीं होता तो माओवादी हमले में और भी जानें जा सकती थीं। इस घटना से छह दिन पहले माड़ के इसी इलाके में मालेवाही में पुलिस ने कैंप खोला था। 18 जनवरी को इस कैंप पर माओवादियों ने फायरिंग भी की थी।

जनअदालत में फांसी
बीजापुर मुख्यालय से 13 किलोमीटर दूर ककेकोरमा गांव के युवक बुधराम ताटी को 11 जनवरी को शाम पांच बजे माओवादी जबरिया उठा ले गए। बुधराम के भाई सुकली ने बताया कि पदेड़ा के हिर्रालपारा में पहले माओवादियों ने उसके भाई को गांव वालों के सामने खूब मारा फिर जन अदालत लगाकर उसे फांसी दे दी। हत्या के बाद माओवादियों ने परिजनों को धमकाते हुए पुलिस से शिकायत न करने को कहा और शव दफना दिया। घटना के तीन दिन बाद परिजनों ने बीजापुर कोतवाली पहुंच कर पुलिस से संरक्षण की मांग की। 13 जनवरी को पुलिस गांव पहुंची और युवक का शव निकाला। पोस्टमार्टम कराने के बाद शव को परिजनों को सौंप दिया गया। दंतेवाड़ा में माओवादियों ने कुआकोंडा थाना के तहत आत्मसमर्पित माओवादी हिंगा मंडावी की एके 47 से 9 फरवरी को गोली मारकर हत्या कर दी। हिंगा तीन दिन पहले अपनी मां की मौत पर क्रिया कर्म के लिए गांव आया हुआ था। वर्दी में बड़ी संख्या में नक्सली गांव पहुंचे और वारदात को अंजाम देकर भाग गए। नक्सली दहशत एक बार फिर बस्तर में खौफनाक हो गई है। माओवादी हिंसा की संख्या बढ़ाने में लग गए हैं। सरकार के पास ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे खून खराबा रुक सके। बस्तर के नक्सल प्रभावित जिलों में मौत की बढ़ती संख्या और दहशत से सवाल उठने लगे हैं कि आखिर माओवादी किस हद तक जा सकते हैं। इसलिए कि नक्सलियों के पास वारदात करने के लिए अभी पूरे चार माह हैं। बारिश में ही उनकी हिंसक वारदात रुकेंगी।

दहशत में थमे पहिये
माओवादी नक्सल प्रभावित इलाकों में अपनी समानांतर सरकार चला रहे हैं। उन्होंने 5 फरवरी को दंडकारण्य बंद का आह्वान किया। इससे पहले 4 फरवरी को बचेली में एनएमडीसी के कर्मियों को रात भर बंधक बना कर रखा। माओवादियों की दहशत की वजह से नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले के अंदरूनी इलाकों में बसें नहीं चलीं। बंद के दौरान बीजापुर जिले में नक्सलियों ने जमकर तांडव मचाया। नक्सलियों ने दंतेवाड़ा जिले के कटेककल्याण के तहत ग्राम गाटम में एक ग्रामीण की गोली मार कर हत्या कर दी। जबकि मोटरसाइकिल से बीजापुरलौट रहे सहायक आरक्षक सीताराम बाकड़े का अपहरण कर पत्थर से कुचल कर उसकी हत्या कर दी। दहशत फैलाने के लिए नारायणपुर मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर ओरछा मार्ग पर निर्माण कार्य में लगी मिक्सचर मशीन को उन्होंने आग के हवाले कर दिया और पेड़ काटकर ओरछा मार्ग बाधित किया। बारसुर के आगे चित्रकोट, जगदलपुर, दंतेवाड़ा से फरसपाल होते हुए बीजापुर मार्ग पूरी तरह बंद रहा। विशाखापटनम जाने वाली बस दंतेवाड़ा में खड़ी रही।

यही नहीं, माओवादियों ने केके लाइन पर सौ मीटर की पटरी उखाड़ दी। इससे लौह अयस्क से भरी मालगाड़ी के इंजन समेत चार बोगी पुल से नीचे गिर गए। माओवादी ट्रेन के ड्राइवर और गार्ड से दो वॉकी टॉकी भी छीनकर ले गए। इस वारदात को अंजाम देने में 50-60 नक्सलियों के साथ बड़ी संख्या में महिला नक्सली भी थीं।

बारूद की जमीन बना बस्तर
माओवादियों ने बस्तर को बारूद की जमीन बना दिया है। पता ही नहीं चलता कि कहां टिफिन बम है और कहां प्रेशर बम लगा रखे हैं। 11 फरवरी को बीजापुर के तिमापुरम कैंप से तड़के रोड ओपनिंग पार्टी रवाना हुई। नक्सलियों के लगाए प्रेशर बम पर जवान सोनधर हेमला का पैर पड़ते ही ब्लास्ट हो गया। सुकमा जिले के भेज्जी इलाके के एलममडगु गांव में 11 फरवरी को माओवादियों ने मुंशी अनिल कुमार की हत्या करने के बाद सड़क निर्माण में लगे 12 से अधिक वाहनों को फूंक दिया। गौरतलब है कि इंजरम से चिंतागुफा तक जवानों की देख रेख में सड़क निर्माण कराया जा रहा है जिसका माओवादी काफी दिनों से विरोध कर रहे हैं। मुठभेड़ में दो सहायक आरक्षक मडकम हंदा एवं मुकेश कड़ती मौके पर ही शहीद हो गए जबकि छह अन्य जवान घायल हो गए। उन्हें इलाज के लिए रायपुर भेजा गया।

नक्सली जिलों में हाई अलर्ट
नक्सली अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई को देखते हुए जंगल से निकल कर अब बाहर आ गए हैं। बस्तर में कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर लगातार हिंसक धमक से वे अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं। नक्सलियों की अचानक बढ़ी हिंसा को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय के खुफिया विभाग ने अलर्ट जारी किया है। ये अलर्ट सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि ओडिशा, झारखंड और आंध्र प्रदेश के लिए भी जारी हुए हैं। विभागीय सूत्रों की मानें तो नक्सली अपने खिलाफ हो रही कार्रवाई के खिलाफ एक बड़ी जवाबी कार्रवाई के लिए रणनीति तैयार कर रहे हैं। माना जा रहा है कि गर्मी के शुरुआती दौर में नक्सली दक्षिण बस्तर में एक बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में हैं। दक्षिण बस्तर के क्षेत्रों में माओवादियों के जमावड़े की खबरें हैं। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार हाई अलर्ट में सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर जिलों को रखा गया है। गौरतलब है कि बीते दिनों उत्तर बस्तर में सक्रिय हिड़मा के साथ टेक रमन्ना के सीधे कनेक्शन होने की जानकारी भी खुफिया विभाग को मिली है।

लाल आतंक कब तक
छत्तीसगढ़ में माओवादियों की हुकूमत कब तक रहेगी? यह सवाल बस्तर की हर दहशतजदा सांस हुक्मरानों से पूछ रही है। 17 साल हो गए छत्तीसगढ़ राज्य बने। पिछले 14 साल से भाजपा की यहां सरकार है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यह सवाल केवल सवाल नहीं बल्कि मुद्दा है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि यदि कांग्रेस ने बस्तर में विकास किया होता तो नक्सली समस्या न होती। रमन सरकार का दावा है कि उसने बस्तर को बदल दिया है। विकास की नई कहानियां गढ़ दी है। फिर सवाल यह है कि लाल गलियारे का लावा रह-रह कर धधक क्यों उठता है? पिछले दो माह में लाल आतंक ने अपनी हरकतों से सरकार की चूलें क्यों हिला दी है? मुख्यमंत्री ने बस्तर में लगातार हो रही माओवादी घटनाओं को लेकर 5 फरवरी को पुलिस अफसरों से बैठक में पूछा कि बस्तर में हो क्या रहा है? हमेशा की तरह पुलिस अधिकारियों ने एक ही जवाब दिया, ‘अब माओवादियों की उलटी गिनती शुरू हो गई है। सरगुजा की तरह बस्तर में भी जल्द ही माओवादियों का सफाया हो जाएगा। सुरक्षा बलों के आॅपरेशन से माओवादी बौखला गए हैं।’ इस जवाब पर सवाल यह उठता है कि माओवादी तो पिछले डेढ़ दशक से बौखलाए हुए हैं लेकिन इससे नुकसान किसका हो रहा है?

इस समय बस्तर डिवीजन में माओवादियों की दो बटालियन है। पहला दक्षिण बस्तर में कोटा इलाके में सक्रिय है। अधिकांश बड़ी घटनाओं में इसी बटालियन का हाथ अब तक रहा है। दूसरा पूर्वी बस्तर के माड इलाके में सक्रिय है। दोनों ही बटालियन में 300-300 लड़ाके हैं। सरकार और पुलिस यह कहकर खुश हो सकती है कि माओवादी अब केवल चार हजार वर्ग किलोमीटर तक ही हैं। लेकिन उनकी वारदात कम हो गई हैं ऐसा नहीं है। खुफिया एजेंसी के अनुसार माओवादी किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की फिराक में हैं तो फिर तैयारी दोगुनी क्यों नहीं की जाती। माओवादियों के गढ़ कोण्डागांव में पुलिस ने नागरिकों को जागरूक करने के लिए लाखों के इनामी माओवादियों के पोस्टर लगा दिए हैं ताकि ग्रामीण उन्हें पहचान सकें और पुलिस को सूचित कर सकें। एसपी डॉ. अभिषेक पल्लवा कहते हैं कि ग्रामीण इलाके में माओवादी घूमते रहते हैं जिन्हें ग्रामीण पहचान नहीं पाते। उनकी पहचान के लिए होर्डिंग्स लगाए गए हैं। इनमें 50 हजार से लेकर पांच-दस लाख रुपये तक के इनामी नक्सली हैं। ऐसे में सवाल यह है कि पुलिस को पता है कि हार्डकोर नक्सली अधिक खौफनाक होते हैं। ग्रामीणों को किसी तरह की सुरक्षा की गारंटी पुलिस की ओर से नहीं मिलती है। ऐसे में कोई अपनी जान जोखिम में क्यों डालेगा।

नक्सलियों ने बनाया नया ठिकाना
एक ओर पुलिस के आला अफसर दावा करते हैं कि उनके आॅपरेशन की वजह से नक्सलियों के हौसले पस्त हुए हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि सूरनार से लेकर बैलाडिला की तराई तक माओवादियों की हलचल इस बात के संकेत हंै कि वे कमजोर नहीं हुए हैं। पिछले दो माह में जितनी भी वारदात हुई हैं वे खुफिया तंत्र पर सवाल खड़े कर रही हैं। केशापुर में हुई आगजनी में माओवादियों ने 700 से अधिक मजदूरों को मैदान में एकत्र कर एक दर्जन से अधिक लोगों को बुरी तरह पीटा। जिंदल कंपनी के काम में लगे एक दर्जन से अधिक मजदूर गांव के बताए जा रहे हैं लेकिन पुलिस को माओवादियों की मौजूदगी की सूचना तक नहीं मिली। जाहिर है कि अंदरूनी इलाके में पुलिस का खुफिया तंत्र फेल है। अब तो साप्ताहिक बाजारों में भी माओवादी बेखौफ आ जा रहे हैं। तुमनार बाजार में विस्फोट माओवादियों के आवागमन की तस्दीक करता है। इतना ही नहीं, अब तो मुख्यमंत्री के गृह जिला कवर्धा में माओवादी अपनी पैठ जमाने में लगे हैं। वहीं एंटी नक्सल से जुड़े पुलिस अफसर कहते हंै कि राजनांदगांव के खुज्जी, मानपुर-मोहला, बाघ नदी, पाटेकोहरा, बोरतालाब, धारा और कवर्धा में नक्सली सक्रिय हैं। इनके कॉरीडोर को रोकने के लिए स्पेशल टीम तैनात होगी। इस टीम में छत्तीसगढ़ के साथ महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के करीब 100 जवान होंगे। स्पेशल टीम में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव, कवर्धा के साथ ही मध्य प्रदेश के बालाघाट और महाराष्ट्र के गोंदिया जिले के पुलिस जवानों को शामिल किया गया है। ये संयुक्त रूप से सीमांत इलाकों में गश्त करेंगे।

नक्सली वारदात नहीं बढ़ीं : पैकरा
प्रदेश के गृह मंत्री रामसेवक पैकरा कहते हैं, ‘नक्सली वारदात में बढ़ोतरी नहीं हुई है बल्कि नक्सलियों का प्रभाव घटा है। 2016 में 211 मुठभेड़ में 150 नक्सली मारे गए। 2017 में 150 मुठभेड़ में 75 से ज्यादा माओवादी मारे गए। इस साल भी अब तक 30 से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी हैं जिनमें दर्जनों नक्सली मारे गए हैं। हमें विरासत में नक्सलवाद मिला है।’ वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं, ‘राज्य में बढ़ते माओवादी हमलों के लिए पुलिस में बढ़ती गुटबाजी जिम्मेदार है। देश ने कई लड़ाइयां लड़ीं लेकिन कभी भी एक दिन में 76 जवान शहीद नहीं हुए। लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा हुआ है। दुनिया में कई राजनीतिक हत्याएं हुर्इं लेकिन एक साथ नेताओं का नरसंहार इतना कहीं नहीं हुआ जितना छत्तीसगढ़ में हुआ है।’ जाहिर है कि नक्सलियों की बढ़ती वारदात इस बात का संकेत दे रही हैं कि नरम उपाय से नक्सलवाद खत्म नहीं होगा। माओवादियों के खिलाफ दोतरफा आक्रमण की रणनीति को अंजाम देना होगा। ऐसे कदम उठाए जाएं ताकि नक्सली हिंसा थम सके।