जाटों पर निगाह, मनोहर पर दांव

मलिक असगर हाशमी

मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कार्यशैली और कार्यक्षमता को लेकर बार-बार सवाल उठाने वालों को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की जींद रैली झटका दे सकती है। शाह ने रैली में जिस तरह खट्टर की दिल खोलकर तारीफ की और उनके कार्यों को सराहा उससे साफ हो गया कि पार्टी का भरोसा उन पर आज भी पहले जैसा ही कायम है। रैली से ठीक पहले जाट आरक्षण का मुद्दा उठाकर इसमें व्यवधान डालने की कोशिश करने वाले अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के अध्यक्ष यशपाल मलिक ने प्रदेश के वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु, कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला और पार्टी के बागी सांसद राजकुमार सैनी का नाम लेकर खुलासा किया था कि उन्होंने खट्टर को कुर्सी से हटाने के लिए जाट आंदोलन के दौरान साजिश रचकर हरियाणा को जलाने की कोशिश की थी। इसके उनके पास पुख्ता सबूत हैं। ये सबूत उन्होंने मुख्यमंत्री को सौंप भी दिए हैं।
रैली के माध्यम से अमित शाह ने पार्टी के बड़े नेताओं को भी संकेत दे दिया कि खट्टर के खिलाफ खेमेबंदी बंद कर दें क्योंकि अगले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में प्रदेश की कमान मनोहर लाल के ही हाथ में होगी। भाजपा के तरीबन 19 बागी विधायक बिल्डरों को लाभ पहुंचाने के लिए मेट्रो का रूट बदलने और अरावली की तकरीबन चार सौ एकड़ भूमि के स्थानांतरण का मुद्दा उठाकर विधानसभा के अंदर और बाहर मुख्यमंत्री को घेरते रहे हैं। अमित शाह ने जींद रैली में मनोहर सरकार को भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार मुक्त का तमगा देकर खट्टर को एक तरह से इन आरोपों से बरी कर दिया।
अमित शाह की युवा हुंकार रैली 15 फरवरी को जींद शहर से तकरीबन दो किलोमीटर दूर पांडु-पिंडरा में आयोजित की गई थी। यह इलाका विशुद्ध रूप से जाटलैंड माना जाता है। जाटलैंड में लोकसभा की तीन सीटें रोहतक, हिसार और सिरसा आती हैं जो भाजपा के कब्जे से बाहर हैं। इन संसदीय क्षेत्रों की अधिकांश विधानसभा सीटें भी गैर भाजपाई दलों के पास हैं। राजनीतिक नजरिये से भाजपा की जींद रैली इसलिए अहमियत रखती है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार का बिगुल नरेंद्र मोदी ने रेवाड़ी से फूंका था। तब इसके पीछे निहितार्थ निकाले गए थे कि भाजपा सूबे में अगली सरकार गैर जाटों की बनाने की मंशा रखती है। बाद में हुआ भी यही। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पंजाबी बिरादरी से आते हैं। इससे पहले सूबे में अधिकांश मुख्यमंत्री जाट समुदाय से ही हुए। खट्टर को सीएम बनाने के बाद पार्टी ने जाट-गैर जाट का संतुलन दिखाने को कई अहम पद जाट नेताओं को सौंपे। मसलन, वित्त और कृषि जैसा अहम मंत्रालय और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का पद जाट नेताओं क्रमश: कैप्टन अभिमन्यु, ओमप्रकाश धनखड़ और सुभाष बराला को सौंपा गया। इसी तरह राज्य से केंद्र सरकार में तीन सांसदों को हिस्सेदारी दी गई जिनमें से एक जाट हैं। इसके बाद भी जाट बिरादरी मानती है कि मौजूदा सरकार उनकी अपनी नहीं है।
जींद में रैली आयोजित कर अमित शाह ने जाटों का यह भ्रम तोड़ने का प्रयास किया। इसके अलावा जाट आरक्षण के बहाने इस बिरादरी के शक्ति प्रदर्शन से भाजपा भी समझ गई है कि इस बार बिना जाटों का समर्थन हासिल किए चुनावी वैतरणी पार करना लगभग असंभव है। रैली के दौरान अमित शाह ने ओमप्रकाश धनखड़ और सुभाष बराला की जिस तरह मुक्तकंठ से प्रशंसा की, इससे भी पार्टी की अगली रणनीति का पता चलता है। यूं तो अमित शाह और मनोहर लाल खट्टर ने रैली में प्रदेश सरकार की कई उपलब्धियां गिनार्इं लेकिन पिछले साढ़े तीन वर्षों में खट्टर सरकार के हिस्से ऐसी बड़ी उपलब्धियों की कोई फेहरिस्त नहीं है जिसे गिनाकर चुनाव में वोट बटोरा जा सके। ऐसे में पार्टी हाईकमान को अहसास है कि अगले चुनाव में किसानों का सहारा लेना आवश्यक होगा। हरियाणा के किसान बेहद प्रभावशाली हैं। खुशहाल किसानों में अधिकतर जाट ही हैं। ऐसे में कृषक वर्ग चुनाव में जिस पर मेहरबान होता है उसकी नैय्या पार होनी निश्चित है। खट्टर राज में यहां के मूल उत्पाद गेहूं, सरसों एवं चावल के उत्पादक अधिक परेशान रहे हैं। चाहे प्राकृतिक आपदा से फसलों की बर्बादी पर मुआवजे का मसला हो या फसल बीमा योजना या आॅनलाइन कृषि उत्पाद की खरीद में आने वाली दुश्वारी, सिंचाई के श्रोतों का सिकुड़ना हो या फिर खाद को लेकर मारामारी, आज भी प्रदेश के कई हिस्से में इन मसलों को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं।
हालांकि बतौर कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ का पिछले साढ़े तीन वर्षों का कार्यकाल सराहनीय रहा है। पेरी अर्बन एग्रीकल्चर के तौर पर कृषि की तस्वीर बदलने को लेकर उनके द्वारा चलाए जा रहे अभियान से पार्टी आलाकमान भी बेहद प्रभावित हैं। जींद रैली में शाह ने ओपी धनखड़ को किसान नेता बताकर प्रशंसा की। धनखड़ का मनसूबा है कि दिल्ली-एनसीआर के बाजार और मांग के अनुरूप हरियाणा में मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन, फूल, फल, सब्जी, दूध और दूध से बने उत्पाद को बढ़ावा देकर हरियाणा की तस्वीर बदली जाए। किसानों को इसके प्रति प्रोत्साहित करने के लिए उनकी पहल पर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। ओमप्रकाश धनखड़ कहते हैं, ‘यदि प्रदेश सरकार अपने मंसूबे में कामयाब रही तो दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले करीबन पांच करोड़ लोगों का करीब 3,600 करोड़ रुपये का सालाना बाजार हरियाणा की गिरफ्त में होगा।’ हरियाणा के किसानों के लिए सरकार का यह मंसूबा बेहद फायदेमंद रहने की उम्मीद है। इसे हरियाणा के किसान और खेती की तस्वीर बदलेगी। धनखड़ अपनी उपलब्धियों पर कहते हैं, ‘प्रदेश सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश 10 हजार रुपये प्रति एकड़ से भी ज्यादा 12 हजार रुपये एकड़ के हिसाब से मुआवजे दिए हैं। किसानों के खाते में सरकार ने 3,034 करोड़ रुपये डलवाए। इसके अलावा भावांतर योजना प्रारंभ की गई ताकि आलू, प्याज, टमाटर जैसे उत्पादों के वाजिब बाजार भाव न मिलने पर इसकी भरपाई सरकार करे।’
अमित शाह ने जींद रैली में कार्यकर्ताओं को भी संकेत दिया कि भाजपा भ्रष्टाचार मुक्त शासन और किसानों को लेकर किए गए वादों के प्रति गंभीर है। उन्होंने कहा, ‘मोदी सरकार की तरह खट्टर सरकार भी समान काम, समान विकास के सिद्धांत पर काम कर रही है। हरियाणा के विकास में केंद्र का बराबर योगदान है। यूपीए सरकार में 13वें वित्त आयोग में हरियाणा को 14,900 करोड़ रुपये मिले थे। मोदी सरकार ने 14वें वित्त आयोग में 42 हजार करोड़ से अधिक धन दिया। अनुदान सहायता और व शहरी स्थानीय निकाय विभाग को दिए गए फंड को मिलाकर अब तक हरियाणा को 34 हजार 400 करोड़ रुपये दिए गए हैं। इस पर भी यूपीए सरकार वाले पूछते हैं कि इतना धन कैसे दे दिया। सच तो यह है कि कांग्रेस वाले अपने चट्टे-बट्टे को पैसा दिया करते थे।’ इस पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा तंज करते हैं, ‘विकास की बात तो छोड़िए, जितना धन रैली के आयोजन पर बहाया गया उतना खर्च एसवाईएल नहर की खुदाई पर किया गया होता तो प्रदेश की जनता को पानी की समस्या से छुटकारा मिल जाता।’ हुड्डा के इस तंज को दरकिनार कर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला कहते हैं कि अमित शाह की रैली से कार्यकर्ता उत्साहित हैं और उनके दिए गुरुमंत्र को जनता तक पहुंचाने की कोशिश शुरू हो गई है।

सत्ता और संगठन में फेर-बदल करा सकती हैं खाली कुर्सियां
‘रैली में जुटी भीड़ अविस्मरणीय है। इसके लिए सुभाष बराला बधाई के पात्र हैं।’ अमित शाह ने युवा हुंकार रैली के मंच से वहां मौजूद भीड़ के संदर्भ में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की तारीफ करते हुए जब यह बात कही तो मीडिया गैलरी में मौजूद पत्रकार एक-दूसरे का मुंह ताकने लगे क्योंकि रैली के आयोजन से पहले रैली को लेकर जो दावे किए गए थे वैसा वहां कुछ नहीं था। कहा गया था कि शाह के स्वागत में एक लाख बाइक के साथ कार्यकर्ता जुटेंगे मगर पहुंचे उम्मीद से बेहद कम। रैली स्थल पर तीस हजार कुर्सियां लगाई गई थीं पर वह भी पूरी तरह नहीं भर पार्इं। इस पर विपक्षी पार्टियां चुटकी ले रही हैं। रोहतक से कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा व्यंग्यात्मक लहजे में कहते हैं, ‘शाह की रैली हरियाणा में अब तक हुई तमाम रैलियों में सबसे फ्लाप और महंगी साबित हुई।’ आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवीन जयहिंद और इंडियन नेशनल लोकदल के वरिष्ठ नेता अभय चौटला ने भी रैली को फ्लाप बताया। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा तो रैली को सुपर फ्लाप बताते हैं।
जींद रैली से दूरी बनाने वाले भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी के मुताबिक, ‘रैली में कम भीड़ देखकर सिर शर्म से झुक गया।’ इससे पहले सैनी ने रैली को लेकर कहा था कि उन्हें न्योता नहीं दिया गया इसलिए बिना न्योता वह नहीं जाएंगे। रैली में कम भीड़ के कारणों को लेकर मंथन शुरू हो गया है। रैली में कम भीड़ जुटने पर लीपापोती के अंदाज में सुभाष बराला ने यह कहने से भी गुरेज नहीं किया कि रैली, दरअसल कार्यकर्ता सम्मेलन था। केवल कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था। यदि ऐसा था तो रैली से पहले पार्टी की ओर से सूबे भर में युवा हुंकार रैली के बैनर व पोस्टर क्यों लगाए गए थे? इसके अलावा यह दावा क्यों किया गया था कि हरियाणा में 17,018 बूथ हैं। कार्यकर्ताओं को प्रत्येक बूथ से 10 लोगों को रैली में लेकर आने के निर्देश दिए गए हैं।
जींद के लोग बताते हैं कि पिछले वर्ष नवंबर में भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी ने शाह की रैली स्थल के करीब ही अपने दम पर रैली की थी जिसमें हुंकार रैली से अधिक लोग जुटे थे। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने रैली की खिल्ली उड़ाते हुए भाजपा को चैलेंंज दिया है कि वह अमित शाह की रैली से बड़ी रैली आयोजित कर दिखाएंगे। इन दावों प्रति दावों के बीच जानकार कह रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्तर से कम भीड़ जुटने के कारणों की तलाश शुरू कर दी है। संघ और पार्टी के सूत्रों पर यकीन करें तो कुछ नेता शुरू से रैली से दूरी बनाए हुए थे। इसकी झलक रैली के दिन भी दिखी। रैली में अमित शाह का जब आधा भाषण खत्म हो चुका था तब एक वरिष्ठ मंत्री वहां पहुंचे। इसके अलावा रैली में कई वरिष्ठ नेताओं एवं मंत्रियों को बोलने नहीं दिया गया। दरअसल, रैली में उम्मीद से कम भीड़ जुटना इसका संकेत है कि तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा में खेमेबाजी समाप्त नहीं हुई है।
ऐसे में जल्द ही संगठन और सरकार में बड़ा फेरबदल मुमकिन है। हरियाणा सरकार और भाजपा की ओर से बार-बार समय से पूर्व और लोकसभा चुनाव के साथ विधानासभा चुनाव कराने के संकेत दिए जाते रहे हैं। पार्टी में तटस्थ भूमिका रखने वाले कतिपय नेताओं का कहना है कि अंदरूनी तौर पर खट्टर के मुद्दे पर सरकार और पार्टी दो खेमों में बंटी है। आगामी चुनाव के लिए यह ठीक नहीं है। चुनाव में कामयाबी हासिल करनी है तो इससे पार पाना होगा। पिछले एक वर्ष में इस मसले पर संघ और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कई बार मंथन हो चुका है। 

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