अजय विद्युत

ब्लैकमनी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रहार को रोकने या कुंद करने की कोशिशें अभी भी थमने का नाम नहीं ले रही हैं। नोटबंदी के प्रहार को रोक पाने में नाकाम ताकतें अब देशभर में पूरी तत्परता से इस जुगत में जुट गई हैं कि प्रधानमंत्री की कैशलेस को बढ़ावा देने की मुहिम कहीं कामयाब न हो जाए। असंगठित अर्थव्यवस्था का हिमायती यह वर्ग सियासत के दरबार से लेकर छोटे बड़े बेहिसाबी कारोबार तक फैला है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ लड़ाई को जनता का अभूतपूर्व समर्थन भी मिला है। लेकिन चौंकने की नौबत तब आई जब दिल्ली के सबसे पॉश कनाट प्लेस बाजार में जहां बड़ी संख्या में दुकानों पर कैश की बजाय कार्ड से पेमेंट करने के बोर्ड लगे हैं वहीं कुछ जगह लिखा है- ‘हम केवल कैश में ही पेमेंट लेते हैं।’

CASHये वे लोग हैं जो बड़े कारोबार के बावजूद संगठित अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनने को राजी नहीं हैं। ये लोग लेनदेन का हिसाब किताब रखने और सरकार को टैक्स देने से बचना चाहते हैं। इस तरह काली अर्थव्यवस्था फिर पैदा हो जाती है।

कनॉट प्लेस में रीगल सिनेमा के बाद सड़क पार कर सीधे जाने पर एक दुकान है मद्रास कॉफी हाउस। बहुत ही पुरानी दुकान। इसके अंदर जाने पर आपको लिखा दिखेगा- वी एक्सेप्ट कैश पेमेंट ओनली। यानी हम केवल नकद में ही भुगतान लेते हैं।

कैशलेस की ओर बढ़ते कदम में दिल्ली के बड़े बाजार में किसी दुकान पर ऐसी सूचना चौंकाती है। दुकानदार से इसका कारण पूछने पर उसने बताया कि हमारे पास स्वाइप मशीन नहीं है। स्वाइप मशीन लेने में क्या परेशानी है तो वह बिफर पड़ा- ‘मुझे नहीं लेनी। अस्सी साल से सब ऐसा ही चल रहा है। चालीस साल से तो मैं खुद देख रहा हूं। अब डेढ़ महीने में ऐसी क्या आफत आ पड़ी कि हम नोट में पेमेंट न लें और कार्ड से भुगतान लें।’ उसने साफ कहा कि वह नकद में ही पेमेंट लेना जारी रखेगा और स्वाइप मशीन या कैशलेस पेमेंट का कोई अन्य माध्यम अपनाने के पक्ष में नहीं है।

लेकिन इसके पीछे पेंच कुछ और था। हम दो लोग थे। एक सौ बीस रुपये का एक डोसा और साठ रुपये की एक कॉफी। बिल आया तीन सौ साठ रुपये का। यह रकम एक छोटी सी कागज की पर्ची पर हाथ से लिखी थी। यानी उचित बिल दुकानदार नहीं दे रहा था। यह साफ साफ सर्विस टैक्स से लेकर सेल्स टैक्स की चोरी तो थी ही, बड़ी बात यह कि यह सारा धन असंगठित अर्थव्यवस्था में जा रहा था।

चूंकि कैशलेस में हिसाब किताब पारदर्शी हो जाता। इससे बचने के लिए मद्रास कॉफी हाउस का मालिक टैक्स चोरी की अस्सी साल पुरानी आदत को आज भी जारी रखने के पक्ष में था।

वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी ने बताया, ‘आज तो ठेले पर सब्जी बेचने वाले तक पेटीएम जैसे कैशलेस माध्यमों से भुगतान ले रहे हैं। हालांकि कुछ जगहों पर कार्ड से पेमेंट लेना टाला भी जा रहा है पर ऐसा कहीं कहीं ही है। लेकिन दिल्ली के कनाट प्लेस जैसे बाजार में किसी बड़ी दुकान पर नकद में कारोबार करना और उसका वाजिब बिल न देना साफ करता है कि ये लोग टैक्स चोरी के लिए ऐसा कर रहे हैं। सरकार को इस पर कड़ाई से ध्यान देने की जरूरत है।’