पंजाब सरकार इन दिनों एक ऐसे घोटाले को खोजने में जुटी है जिसका अभी तक अता पता ही नहीं। जांच इतनी म़ुश्किल है कि अभी तक यही तय नहीं है कि किधर और क्या जांच की जाए। घोटाला भी छोटा मोटा नहीं है। बारह हजार करोड़ रुपये का है। यह राशि अनाज की खरीद पर खर्च होनी थी लेकिन अनाज है कहां? ग्राउंड पर तो कहीं भी अनाज नहीं है। इस बार जब गेहूं खरीद के लिए पंजाब ने केंद्र से 20 हजार करोड़ रुपये का कर्ज मांगा तो बैंकों के समूह ने बताया कि पंजाब के खाते में पहले ही 12 हजार करोड़ रुपये पड़े हैं।

रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) ने अपने लीडिंग बैंक स्टेट बैंक आॅफ इंडिया को 12 हजार करोड़ का अनाज गायब होने पर हुए नुकसान को देखते हुए कोई रणनीति बनाने को कहा जिस पर एसबीआई ने 18 अप्रैल को बोर्ड की मीटिंग बुलाई। मीटिंग में कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि यह नुकसान 20 हजार करोड़ रुपये तक का हो सकता है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब की खरीद एजेंसियां उन्हें पूरा डाटा उपलब्ध नहीं करवा रही हैं। मीटिंग में चर्चा का केंद्र कैग की रिपोर्ट ही रही। 2007 से 2013 तक की कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया कि पंजाब इस मुद्दे पर सहयोग नहीं कर रहा है। कैग ने 3319 ट्रकों के नंबरों की रैंडम चैकिंग की। इसमें से 3232 नंबर तो मिले ही नहीं। 87 सही पाए गए लेकिन ये नंबर मोटर साइकिलों, ट्रैक्टरों के निकले। उन्होंने पूछा, क्या मिसिंग फूड ग्रेन से इनका कोई संबंध है। 2013-14 की एक और कैग रिपोर्ट का हवाला देते  हुए कहा गया कि 16 जिलों में 751 मंडियों का डाटा चैक किया गया जिसमें से सात जिलों के अफसरों ने ट्रकों के नंबर देने से इनकार कर दिया। 1997-98 में भी 805 करोड़ का अनाज गायब होने पर कैग ने सवाल उठाए थे। कैग ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि पंजाब सरकार ने फूड सेक्टर को डेवलप करने के लिए 42 हजार करोड़ रुपये ले रखे हैं? सरकार ने ये पैसा कहां लगाया है और इसे कैसे वापस करेगी?

अचानक सामने आया यह मामला

पंजाब हर साल अनाज खरीद सीजन में केंद्र से कर्ज लेता है। इस पैसे से अनाज खरीद कर केंद्रीय पूल में भेज दिया जाता है। यह कर्ज 16 सरकारी बैंकों का एक समूह देता है। इसमें स्टेट बैंक आॅफ इंडिया लीड करता है। इस बार भी गेहूं की खरीद के लिए जब पैसा मांगा गया तो बैंकों ने पैसा नहीं दिया। इसकी वजह यह रही कि बैंक किंगफिशर के मालिक विजय माल्या की फरारी पर अतिरिक्त सावधानी बरत रहे थे। उन्होंने उन सभी पार्टियों की जांच करनी शुरू कर दी जो मोटा कर्ज बैंकों से ले रहे थे। बस इसी क्रम में पंजाब के अनाज की गड़बड़ी का मामला सामने आ गया। बैंकों ने पैसा देने से मना कर दिया और पहले दिए गए पैसे का हिसाब मांगा। इस पर पंजाब सरकार के हाथ पांव फूल गए क्योंकि मंडियों में गेहूं की आवाक शुरू हो चुकी थी। किसानों को यदि पैसा नहीं मिलेगा तो भुगतान कहां से होगा? अगले साल चुनाव हैं। ऐसे में पंजाब के सीएम प्रकाश सिंह बादल सीधे पीएम नरेंद्र मोदी से मिले। इसके बाद पंजाब को गेहूं खरीद के लिए तो पैसा जारी हो गया। अब सरकार इस दिक्कत में है कि आखिर इस रकम का हिसाब कैसे दिया जाए।

विपक्ष हुआ हमलावर

जैसे ही यह मामला उठा तो बस फिर क्या था, कांग्रेस ने सरकार पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस अनाज के गायब होने की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज की देखरेख में कैग से करवाने की मांग की। उन्होंने कहा कि पंजाब और केंद्र सरकार आश्वस्त करे कि इस घोटाले के चलते मंडियों में आ रही गेहूं की खरीद पर कोई असर नहीं पड़ेगा, सरकार किसानों का दाना दाना खरीदेगी। कांग्रेस का यह भी आरोप है कि पंजाब सरकार ने अपने लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए ही यह घोटाला किया है। इस वजह से मंडियों में किसानों को गेहूं बेचने में भारी दिक्कत आ रही है। किसानों के गेहूं का भुगतान नहीं हो रहा है। केंद्र से मिलने वाले कर्ज में भी इसलिए देर हुई। कुल मिलाकर कांग्रेस इस मसले को पंजाब में मुद्दा बनाने पर तुली हुई है। इसकी काट फिलहाल अकाली दल के पास नजर नहीं आ रही है।

एफसीआई से बैंकों को जा रहा पैसा, सरकार का लेना-देना नहीं

पंजाब, फूड एंड सप्लाई डिपार्टमेंट के डायरेक्टर शिव दुलार सिंह ने बताया कि सभी तरह के खाद्यान सालों से खरीदे जा रहे हैं और उनका दोहरा आॅडिट होता है। बैंकों को पैसा सीधा एफसीआई से दिया जाता है और यह भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर ही दिया जा रहा है। इसका सरकार से कोई लेना-देना नहीं है। एफसीआई जो भी सवाल पूछती है पंजाब सरकार उसका संतोषजनक जवाब उन्हें भेज देती है। जिस तरह रिपोर्ट में कहा गया है कि बारह हजार करोड़ रुपये का गैप है, वह एक्चुअल कॉस्ट और रिबर्समेंट के कारण है जिसमें ब्याज, ट्रांसपोर्टेशन और इंसिडेंटल चार्ज आदि लगे हुए हैं। इसकी फाइनल कॉस्ट शीट एफसीआई द्वारा तैयार की जाती है। यह मामला भारत सरकार के साथ उठाया हुआ है और केंद्र सरकार व पंजाब सरकार की एक संयुक्त टीम इस पर काम कर रही है। उन्होंन बताया कि लंबे समय से यह मामला अटकता आ रहा है। इस वजह से यह रकम बड़ी नजर आ रही है।

यह वास्तव में घोटाला है?

ओपिनियन पोस्ट ने अपने स्तर पर जो छानबीन की उसमें पता चला कि यह दिक्कत नियमों और मानकों व तय मापदंडों की वजह से हुई। उदाहरण के लिए जैसे अनाज की ढुलाई, लदाई और ट्रास्पोर्टेशन के खर्च हैं। यह केंद्र की ओर से फिक्स है। लेकिन जब स्थानीय स्तर पर काम होता है तो खर्च ज्यादा हो जाता है। मसलन मंडी से  सात किलोमीटर दूर तक ही अनाज के भंडारण का पैसा मिलता है। कई बार भंडारण इससे ज्यादा दूर होता है। ऐसे में खर्च बढ़ जाता है। इसी तरह से कई बार अनाज की तुलाई ढुलाई व सफाई का खर्च तय मापदंड से ज्यादा दे दिया जाता है। वास्तव में इसी लेवल पर गड़बड़ी हुई। इसमें किसी स्तर पर अनदेखी भी हुई। इसके साथ ही अनाज के खराब होने से भी अनाज का स्टॉक कम हो जाता है। इसलिए भी कर्ज की रकम व इसके बदले में मिले अनाज में अंतर आ रहा है।

बहरहाल कुछ भी हो लेकिन गेहूं की कटाई के वक्त अचानक सामने आए इस मसले ने पंजाब की राजनीति में खासी हलचल मचा दी है। मंडियों में किसानों को आ रही दिक्कतों को कांग्रेस इसी घोटाले से जोड़ कर पेश कर रही है। उसकी पूरी कोशिश है कि अकाली सरकार पर ज्यादा से ज्यादा वार किए जाएं। सरकार चाह कर भी अपना पक्ष जनता के सामने रख नहीं पा रही है। इसकी वजह यह है कि हर साल की तरह इस साल भी मंडियों में किसानों को खासी परेशानी आ रही है। अनाज बिकने से लेकर उठान तक और फिर भुगतान में भी समस्या आ रही है। इसके चलते किसान मंडियों में परेशान हैं। जब किसान परेशान है तो उन्हें सरकार की बात समझ में कहां आएगी? यह बात सरकार के रणनीतिकार भी अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे में एक ही नीति पर काम हो रहा है देखो और इंतजाम करो।