रुड़की के समीप पीरान कलियर शरीफ में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के बैनर तले 5-6 मई को आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मजलिस में वक्ताओं ने सांप्रदायिक सौहार्द की बात की और शिक्षा, रोजगार व देश के विकास में बढ़चढ़ कर आगे आने का संकल्प दोहराया। पेश है वहां जाकर लौटे मोहन सिंह की रिपोर्ट।
भारत में केंद्र में नरेंद्र मोदी और खासकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद भारतीय मुस्लिम समाज का एक बड़ा तबका हिंदुस्तानी जमीं की खुशबू और ठंडी हवा के झोंके महसूस करने के लिए बेताब दिख रहा है। खासकर ऐसे माहौल में जबकि भारतीय राजनीति में एक लंबे अरसे से धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुस्लिम समाज में खौफ और नफरत की दीवार खड़ी करने की मुहिम चल रही है। रुड़की के समीप पीरान कलियर शरीफ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के बैनर तले 5-6 मई को हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मजलिस में ये बातें उभर कर सामने आर्इं। इस राष्ट्रीय मंच के संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता इंद्रेश कुमार हैं। इस मजलिस में 22 प्रांतों से छह सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने शिरकत की। मंच ने अपने प्रस्ताव में मुस्लिमों के तीन तलाक समेत कुल पांच प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव में भारतीय मुस्लिम समाज से अपील की गई है कि आगामी रमजान के महीने में रोजे के दौरान मुस्लिम समाज चीनी (चीन में बने) वस्तुओं का बहिष्कार करेगा, ताकि बार-बार भारत के मामले में चीन के रवैये को चुनौती दी जा सके। चीनी सामानों का बहिष्कार आर्थिक रणनीति का हिस्सा होगा। दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि भारतीय मुस्लिम समाज रमजान के दौरान गोवंश की कुर्बानी की बजाय ‘काऊ मिल्क पार्टी’ का आयोजन कर भाईचारा और सौहार्द का संदेश देने की कोशिश करेगा। मुस्लिम समाज में तालिम-हुनर (स्किल) को विकसित करने के लिए सरकारी योजनाओं के अमल पर मिलजुल कर प्रयास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम समाज में व्याप्त बेरोजगारी को दूर किया जा सके। ‘स्किल डेवलपमेंट’ प्रोग्राम के तहत मुस्लिमों के बुनियादी ‘हुनर’ को तराश कर उसकी बाजार तक पहुंच आसान बनाने के प्रति मंच प्रयास करेगा। इस मुहिम से मुस्लिम समाज में व्याप्त बेरोजगारी-अपराधीकरण से निजात मिलेगी।
बता दें कि बुनकरी, जरदोजी जैसी बुनियादी तालिम वाले काम में मुस्लिमों की बड़ी आबादी लगी है। मंदिरों में चढ़ने वाली चुनरी और सगुन की साड़ी की कसीदाकारी महज चढ़ावे और पहनावे की चीज न रहें, बल्कि आपसी भाईचारे की मिसाल बनें, इस दिशा में इस प्रयास के जरिये सार्थक पहल हो सकती है। तीन तलाक के मुद्दे पर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच अब तक हस्ताक्षर अभियान के जरिये अभियान चलाने में लगा रहा। अब एक नई पहल यह होने जा रही है कि मंच केंद्र और राज्य सरकारों से ऐसी पीड़ित महिलाओं के पुनर्वास और प्रशिक्षण के जिला स्तर पर केंद्र स्थापित करने की मांग करेगा, ताकि ऐसी पीड़ित महिलाओं को मुसीबत के वक्त किसी की सरपरस्ती का मोहताज न होना पड़े। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का दावा है कि आगामी कुछ सालों में तलाक से पीड़ित लगभग छह करोड़ मुस्लिम महिलाओं को राहत दिलवाने की कोशिश की जाएगी। प्रबंधशास्त्री और कई निजी विश्वविद्यालयों के चांसलर रहे और शैक्षणिक सलाहकार डॉ. शमीम अहमद बताते हैं कि ‘मुस्लिम मंच की इन योजनाओं के फलीभूत होने के बाद मुस्लिम राजनीति के दावेदारों और सरपरस्तों के परखचे उड़ जाएंगे।’ बता दें कि डॉ. शमीम अहमद बीएचयू से प्रबंधशास्त्र में पीएचडी हैं और शैक्षिक प्रबंधशास्त्र के ‘एक्सपर्ट’ हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के संरक्षक इंद्रेश कुमार का भाषण सुनने के बाद एक बातचीत में डॉ. शमीम अहमद ने बताया कि ‘इंद्रेश कुमार जी ने अपने भाषण में इस्लाम के बाबत जिन बातों का जिक्र कर रहे थे, दरअसल वही इस्लाम की रूह हैं। भारत के मुस्लिम समाज की अस्सी फीसद बातें जो लागू हैं, वह दरअसल इस्लाम की मनमानी व्याख्या हैं।’
हिंद ही बुनियाद है उसकी न फारस है न शाम
बह्दत की लय सुनी थी दुनिया ने जिस मकान से
मीर-ए-अरब को आई ठंडी हवा जहां से
मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है (-अल्लामा इकबाल)
संरक्षक इंद्रेश कुमार ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के जलसे में आए मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं, दिल जीत लिया। साथ ही मुस्लिम मंच के कार्यकर्ताओं को हिदायत दी कि ‘इस सम्मेलन के बाद कार्यक्रम के बैनर और पोस्टरों पर उनका फोटो नहीं लगेगा और उनके नाम से नारे नहीं लगाए जाएंगे।’ इस सम्मेलन में बड़े पैमाने पर उनके होर्डिंग और बैनर लगाए गए थे। नारे के तौर पर ‘मादरे वतन हिंदुस्तान, भारत माता की जय और वंदे मातरम’ के नारे लगाए जाएंगे। इससे जाहिर है कि अब मंच के हर जलसे के दूल्हे इंद्रेश कुमार नहीं होंगे, बल्कि स्थानीय कार्यकर्ताओं को तबज्जो दी जाएगी। इंद्रेश कुमार ने सम्मेलन में आए प्रतिनिधियों को साफ तौर पर संदेश दिया कि ‘भारत के मुसलमानों को समझना चाहिए कि गोरी-गजनी-बाबर-मीर तकी उनके रिश्तेदार नहीं हैं।’
मुस्लिम बुद्धिजीवी मंच को तीन तलाक, गाय का मुद्दा और राम जन्मभूमि का मुद्दा अपने समाज में चर्चा के लिए ले जाना चाहिए और उसमें सहमति के प्रयास करने चाहिए। अब तक मुस्लिम मंच ‘मादरे वतन, इंसानियत जगाओ व तीन तलाक’ जैसे मुद्दे पर समाज के बीच एक अरसे से बहस चलाता रहा है। अपने वजूद के पंद्रहवें साल में मंच के कार्यकर्ता अब मुखर तौर पर इन मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं। राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद अफजाल, राष्ट्रीय संगठक गिरीश जुआल के नेतृत्व में मंच के पूरे देश में लगभग तीन सौ बीस जिलों और बाइस प्रांतों में संगठन खड़े हो चुके हैं। यह संगठन स्व. संघचालक कु. सी सुदर्शन की प्रेरणा से 24 दिसंबर 2002 को दिल्ली के चाणक्यपुरी में मौलाना वहीदुद्दीन, मौलाना जमील अहमद, हसन सानी निजामी की मौजूदगी में गठित हुआ। अपने शुरुआती दिनों से ही मंच का नारा रहा कि ‘आधी रोटी खाएंगे/बच्चों को जरूर पढ़ाएंगे।’ तालिम के साथ मंच का इस बात पर भी ज्यादा जोर है कि ‘तालिम जिंदगी के लिए जिंदगी वतन के लिए।’
इसके अलावा मंच ने निश्चय किया है कि मंच पूरे देश में पाकिस्तान की करतूतों के बारे में जागरूक करेंगे। मुस्लिम मंच के लोग शिद्दत से यह महसूस करते हैं कि जिंदगी में कट्टरता है तो गुस्से और फिरकापरस्ती की घटनाएं होंगी। इंसानियत और तहजीब से ही बात बन सकती है। कुरान और हदीस के मुताबिक तलाक को मंच जायज करार दे सकता है पर उसकी हिदायतों को नजरअंदाज कर किसी भी तरह तलाक, हलाला को गैर-इस्लामिक, अनैतिक और अमानवीय मानता है।मंच इस बात से वाकिफ है कि तलाक के मुद्दे पर राजनीति जरूर गरमाएगी। इस बाबत इंद्रेश कुमार फरमाते हैं कि ‘सुधारवाद दखल नहीं होता। यह एक तरह से रोशनी और खुशबू है। खुदाई जलवा है। सियासी जलसा नहीं।’ मंच के राष्ट्रीय संयोजक मो. अफजाल ने कहा कि ‘मक्का और मदीना में मस्जिद है। वहां चर्च और मंदिर नहीं बन सकता है। वेटिकन सिटी में चर्च ही बन सकता है, मंदिर और मस्जिद नहीं, जबकि आज भी अयोध्या में कई मस्जिदें न सिर्फ जिंदा हैं, बल्कि चल भी रही हैं। यह सिर्फ हिंदुस्तान में संभव है।’
उन्होंने सवाल किया कि हमारी मस्जिद अयोध्या में रहे और हिंदुओं के आस्था के प्रतीक राम का मंदिर वहां नहीं बन सकता, यह कैसे हो सकता है? पूरे मुस्लिम समाज को इस सवाल पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। बहरहाल, राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के मुद्दों, तकरीरों और गोलबंदी से एक बात साफ होती जा रही है कि भारत में मुस्लिम राजनीति, तीन तलाक, गाय के संरक्षण जैसे मुद्दे पर किसी भी मंच पर एकतरफा बहस और फैसले नहीं हो सकते। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच इस तैयारी में भी है कि राजपूत से मुसलमान बने लोगों को पुन: हिंदू धर्म में वापस लाया जाए। इस मुद्दे पर मंच राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अभियान चलाने जा रहा है।