निशा शर्मा।
हिन्दी सिनेमा में एक ऐसी अभिनेत्री रही है जिसकी जिद्द ने उसे ऊंचाईयों तक ही नहीं पहुंचाया बल्कि कॉमेडी को नए आयाम भी दिये। इसी अभिनेत्री ने महिलाओं को कॉमेडी की राह दिखाई। यह और कोई अभिनेत्री टुनटुन हैं। टुन-टुन नाम में ही शरारत, हंसी छिपी है, और इनका किरदार भी हंसी के इर्द गिर्द ही रहा है। टुन टुन को यह नाम भी मुंबई ने ही दिया था, इनका वास्तविक नाम उमा देवी था। इनके बारे में यह बात जग जाहिर रही कि वह अपनी जिद्द की पक्की थीं। कहते हैं कि सिनेमा के प्रति उनमें इतनी ललक थी कि वह अपने घर से भाग कर मुंबई में पहुंची थी। उस समय उनकी उम्र करीब तेईस साल रही होगी। उमा ने मुंबई पहुंचते ही पहली दस्तक जाने माने संगीतकार नौशाद के घर पर दी थी। पहली ही मुलाकात में उन्होंने नौशाद साहब के सामने एक शर्त भी रख दी थी कि नौशाद साहब उनका एक गाना सुनें वरना वह समुद्र में डुबकी लगा लेंगी। नौशाद लड़की के खुदकुशी करने की बात से डर गए। कहते हैं नौशाद साहब ने उमा देवी की आवाज़ सुनने के एक दम बाद उन्हें अपने एक गाने के लिए साइन कर लिया था। फिर क्या था अपनी शर्तों पर अपनी जिन्दगी को जीने वाली टुनटुन ने अपने करियर की शुरुआत गायिका के तौर पर की। उसके बाद क्या था। उमा देवी संगीत की दुनिया में नाम हो गई। उन्होंने उस समय अपनी पहचान बनाई जब संगीत की दुनिया में नूरजहां, सुरैया, राजकुमारी, जौहराबाई अंबालेवाली का दबदबा होता था।
उमादेवी को पहचान मिली थी 1947 में आई फिल्म दर्द के गीत अफसाना लिख रहीं हूं…गीत से-
https://www.youtube.com/watch?v=J9X1i-qCQWM
जब यह गाना लोगों के बीच आया तो संगीत प्रेमियों ने खासा पसंद किया उसके बाद क्या था उमादेवी का सितार चमक उठा। लोग उनके गानों की फरमाइशें भेजने लगे। यह गीत उमा देवी की जिन्दगी में कई मोड़ लेकर आया। इसी गीत की वह सुरीली आवाज़ ही थी जो एक शख्स को दिल्ली से मुंबई खींच लाई जो बाद में उमा देवी का जीवनसाथी बना।
फिल्म दर्द के इस गीत के बाद उमा देवी को बड़े बड़े ऑफर आने लगे। उसमें मुख्य थे फिल्मकार महबूब खान। महबूब खान की फिल्म अनोखी अदा के गीत ‘काहे जिया डोले’ और ‘दिल को लगा के हमने कुछ भी ना पाया’ जैसे गीतों ने उमा देवी को सफलता की ऊंचाईयों पर बिठा दिया। लेकिन ऊमा की किस्मत के सितारे उन्हे गायकी से कहीं ओर ऊपर ले जाना चाहते थे।
यह वह दौर था जब उमा देवी की टक्कर में कई बड़ी प्रतिभाओं का नाम उभरने लगा। इन प्रतिभाओं में लता मंगेशकर, आशा भोंसले जैसे नाम भी थे। अपने गायकी के अंदाज में कोई बदलाव ना करने और गाने की एक ही रिदम को पकड़ने की वजह से उमा देवी गायकी की दौड़ में पिछड़ने लगीं थी।
इस बदलाव को उमा देवी के करीबी रहे संगीतकार नौशाद अच्छी तरह से समझ रहे थे। नौशाद साहब उमा की कॉमेडी और उनकी कॉमिक टाइमिंग से भली भांति परिचित थे वह जानते थे कि उमा में कॉमेडी एक कला के तौर पर भरी पड़ी थी। लेकिन उमा खुद भी इस बात से बेखबर थीं। नौशाद ने मौका पाते ही उमा को फिल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया। लेकिन उमा कहां मानने वालीं थी, उन्होंने नौशाद साहब के सामने फिर एक शर्त रख दी कि वह तभी फिल्मों में काम करेंगी जब अभिनेता दिलीप कुमार फिल्म के हीरो होंगे। उनकी यह शर्त कहिये या जिद्द ने उन्हे दिलीप साहब से मिला ही दिया। नौशाद साहब ने अपने दोस्त अभिनेता दिलीप कुमार से इस बात की चर्चा की। दिलीप कुमार उस समय फिल्म ‘बाबुल’ करने जा रहे थे उन्होंने उमा देवी को फिल्म में काम करने का मौका दिया। जिसे उमा देवी ने स्वीकार कर लिया। इस फिल्म में नर्गिस मुख्य अभिनेत्री थीं। यही वह फिल्म थी जिसने उमा की जिन्दगी बदल के रख दी। इस फिल्म के बाद कॉमेडी की दुनिया में कोई अन्या अभिनेत्री उनकी प्रतिस्पर्धा में कभी खड़ी नहीं हो पाई। जिसने कॉमेडी में किसी महिला का नाम लिया वह उमा देवी ही थी। इसी फिल्म के बाद दिलीप कुमार ने उमा देवी को एक नया नाम दिया और वह था टुन-टुन। यह नाम उमा देवी के साथ ताउम्र रहा। यह वही नाम है जो हिन्दी सिनेमा की पहली कॉमेडिन का था। बड़े पर्दे पर टुनटुन ने करीब पांच दशकों तक अपनी प्रतिभा से लोगों को गुदगुदाया ही नहीं बल्कि दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों के साथ काम भी किया।