अरुणाचल में सरकार गठन का रास्ता साफ

नई दिल्ली। राजनीतिक संकट से जूझ रहे अरुणाचल प्रदेश में नई सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बहाल रखने का 17 फरवरी का आदेश 18 फरवरी को वापस लेते हुए सरकार बनाने की मंजूरी दे दी। सर्वोच्च अदालत का यह फैसला कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा झटका है।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को अरुणाचल प्रदेश से राष्ट्रपति शासन हटाने की सिफारिश की थी। सोमवार को कांग्रेस के बागी विधायक कलिको पुल के नेतृत्व में 31 विधायकों ने राज्यपाल से मुलाकात की थी और राज्य में अगली सरकार बनाने का दावा पेश किया था। उनके साथ कांग्रेस के 19 बागी विधायक और भाजपा के 11 विधायक और दो निर्दलीय सदस्य शामिल थे।

राज्य में संकट
अरुणाचल प्रदेश में वैधानिक संकट की शुरुआत बीते साल तब हुई जब 60 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस सरकार के 47 विधायकों में से 21 (इनमें दो निर्दलीय) विधायकों ने अपनी ही पार्टी और मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी। मामला नाबाम टुकी और उनके कट्टर प्रतिद्वंदी कलिको पुल के बीच है। विपक्षी भाजपा के समर्थन से बागी विधायकों ने टुकी को मुख्यमंत्री पद से हटाने का प्रस्ताव पास करा लिया। 15 दिसबंर 2015 को कांग्रेस ने दावा किया था कि पूर्व विधानसभा स्पीकर नाबाम रेबिया ने 14 विधायकों को अयोग्य करार दिया था। पार्टी के बागियों ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इसके बाद राज्यपाल जेपी राजखोवा की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार ने 26 जनवरी 2016 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।

कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि राज्यपाल ने भाजपा के एजेंट के तौर पर काम किया और एक चुनी हुई बहुमत सरकार को गिराने में मदद की। पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट से यथास्थिति बरकरार रखने की अपील की थी।

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