जयललिता के निधन के बाद से ही तमिल राजनीति और एआईएडीएमके को करीब से जानने वाले इस बात के कयास लगा रहे थे कि पार्टी की कमान उनकी करीबी सलाहकार शशिकला को सौंपी जा सकती है। पार्टी प्रवक्ता सी पोनय्यन ने गुरुवार को इसकी पुष्टि कर दी कि चिनम्मा (छोटी मां, शशिकला को पार्टी में इसी नाम से पुकारा जाता है) ही पार्टी की अगली महासचिव होंगी। हालांकि अभी इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है मगर जल्द ही इसका ऐलान कर दिया जाएगा। मालूम हो कि अन्नाद्रमुक के सांगठनिक ढांचे में महासचिव का पद ही सर्वोच्च होता है।

जयललिता ने अपने रहते हुए पार्टी में दूसरी पंक्ति के बहुत कम नेता बनाए हैं। यही वजह थी कि एआईडीएमके की कमान किसके हाथों में होगी इस पर संशय बना हुआ था। मगर अब इस पर से परदा उठ गया है। एआईडीएमके के प्रवक्ता ने कहा कि पूरी पार्टी, कार्यकर्ता और जनता चाहती है कि शशिकला को कमान मिले। गौरतलब है कि पांच दिसंबर को लंबी बीमारी के बाद तमिलनाडु की मुख्यमंत्री और एआईडीएमके की महासचिव जयललिता का निधन हो गया था।

शशिकला नटराजन जयललिता की खास राजनीतिक सलाहकार रही हैं। पिछले तीस सालों से भी ज्यादा समय से शशिकला जयललिता के साथ रहीं लेकिन कभी न पार्टी में और न ही सरकार में कोई पद लिया। हालांकि जयललिता के बाद पार्टी में उन्हीं की तूती बोलती है। राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री और जयललिता के भरोसेमंद पनीरसेल्वम भी शशिकला के शागिर्द हैं। शशिकला को इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि अम्मा उनकी सलाह पर ही काफी काम करती थी। कहा जाता है कि अगर पन्नीरसेल्वम को दो बार सीएम बनने का मौका मिला तो इसमें शशिकला का ही हाथ था।

जयललिता के पार्थिव शरीर के पास शोकाकुल शशिकला
जयललिता के पार्थिव शरीर के पास शोकाकुल शशिकला

यह बहुत स्पष्ट है कि जो पार्टी का महासचिव होगा वही तमिलनाडु की राजनीति में अन्नाद्रमुक का असली चेहरा होगा, भले मुख्यमंत्री के पद पर कोई और क्यों न हो।इसका अंदाजा तो उसी दिन लग गया था जब जयललिता के अंतिम संस्कार के बाद शशिकला राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात करने में लगी रहीं और मुख्यमंत्री पनीरसेल्वम समेत कई दिग्गज मंत्रियों से भी मिलीं। जयललिता के अंतिम संस्कार के ठीक अगले ही दिन शशिकला के पति समेत परिवार के कई अन्य सदस्य पोएस गार्डन स्थित आवास में वापस पहुंच गए। जयललिता की मौत के बाद शशिकला लगातार सुदूर क्षेत्रों से आ रहे अन्नाद्रमुक कार्यकर्ताओं से मिलती रही हैं और उनसे संबंधित सूचनाएं अन्नाद्रमुक के ट्विटर अकाउंट के जरिये भी दी जा रही है जो पार्टी पर उनकी पकड़ को दर्शाता है।

अन्नाद्रमुक के महासचिव पद के लिए जयललिता की भतीजी दीपा जयकुमार को भी प्रबल दावेदार के रूप में मीडिया के एक वर्ग द्वारा देखा जा रहा था। हालांकि उनकी भतीजी को जयललिता के बीमार रहते न उनसे मिलने दिया गया और न ही उनकी मौत के बाद उन्हें प्रत्यक्ष तौर पर श्रद्धांजलि देने का मौका मिला। वहीं दीपा के भाई दीपक राजाजी हॉल में शशिकला के साथ नजर आये थे जहां अम्मा का पार्थिव शरीर रखा गया था। मगर अब दीपा की दावेदारी लगभग खत्म हो गई है। इस वक्त राज्य की 234 विधानसभा सीटों में एआईडीएमके के पास 136, डीएमके के पास 89 और कांग्रेस के पास 8 सीटे हैं। लोकसभा में भाजपा और कांग्रेस के बाद एआईडीएमके तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। इसके 37 सांसद हैं।

जयललिता तक कैसे पहुंची शशिकला

शशिकला से जयललिता की मुलाकात 1980 के दशक में हुई थी। तब वो पार्टी की प्रचार सचिव थीं। पार्टी के संस्थापक एमजी रामाचंद्रन ने 1977 में आईएएस अधिकारी वीएस चंद्रलेखा को तमिलनाडु की पहली महिला जिलाधिकारी नियुक्त किया और उन्हें कुड्डुर जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई। चंद्रलेखा को जल्दी आगे बढ़ने की ललक थी। वो स्थानीय मीडिया में अपनी गतिविधियों को छपते देखना चाहती थीं और इसी वजह से उन्होंने एक पीआरओ की नियुक्ति की। ये पीआरओ थे एम नटराजन यानी शशिकला के पति। एम नटराजन ने स्थानीय अखबारों के पत्रकारों के जरिये चंद्रलेखा को जल्द ही स्टार बना दिया और उनके चर्चे मुख्यमंत्री एमजीआर तक पहुंचने लगे। एमजीआर से चंद्रलेखा की नजदिकियां बढ़ीं और उन्हें मदुरई ट्रांसफर कर दिया गया। चंद्रलेखा के साथ ही नटराजन और उनकी पत्नी शशिकला भी मदुरई पहुंच गए।

1981 में एमजीआर तमिलनाडु की राजनीति में फिल्म एक्ट्रेस जयललिता को लेकर आए और उन्हें पार्टी का प्रचार सचिव नियुक्त किया। 1982 में एमजीआर ने जयललिता को राज्यसभा भेजा। तब तक पार्टी में यह संदेश जा चुका था कि वो जयललिता को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रहे हैं। जयललिता रैलियां करने लगीं। ऐसी ही एक रैली का आयोजन मदुरई में किया गया। यह महिला रैली थी और इसी दौरान एमजीआर ने शशिकला से कहा कि वो जयललिता का ख्याल रखें और यह भी कि रैली सफल हो। इसी रैली में जयललिता को महिला अधिकारों की योद्धा के रूप में प्रचारित किया गया। यह रैली बेहद सफल रही और साथ ही शशिकला का जयललिता के जीवन में सफल प्रवेश हुआ।