नई दिल्ली।

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति यानी एमपीसी (मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी) ने बृहस्‍पतिवार को रिवर्स रेपो रेट में 0.25 प्‍वाइंट की बढ़ोतरी करते हुए उसे 5.75 फीसदी से बढ़ाकर 6 फीसदी कर दिया है। वहीं रेपो रेट को 6.25 पर यथावत रखा गया है। दरअसल, आरबीआई की एक परेशानी महंगाई दर में बढ़ोत्तरी होना है।

थोक महंगाई दर 39 महीने के उच्चतम स्तर पर है। यह फरवरी में 6.55 फीसदी पर थी, जबकि खुदरा भी 3.65% पर पहुंच गई है। गर्मी में यह और भी बढ़ सकती है। आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल का कहना है कि महंगाई के मद्देनजर एमपीसी ने पॉलिसी को लेकर न्यूट्रल नजरिया रखने का फैसला किया है।

नोटबंदी के बाद बैंकों में सरप्‍लस कैश पहुंचा है, जिसका प्रभाव बैंकिंग सिस्‍टम पर पड़ा है। मॉनेटरी पॉलिसी में बदलाव न होने का फायदा देश के रियल एस्‍टेट सेक्‍टर को मिलेगा। पॉलिसी का असर शेयर बाजार पर भी दिखा। निफ्टी और एनएसई में लिस्‍टेट बैंकों के शेयर के दामों में बढ़ोतरी देखी गई।

मॉनेटरी पॉलिसी की घोषणा के बाद आयोजित प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में आरबीआई की तरफ से बताया गया कि अर्थव्‍यवस्‍था के आधार पर अगले कदम तय किए जाएंगे। साथ ही यह भी बताया गया कि फरवरी के बाद से बैंकों में आई नकदी को काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है।

आरबीआई का मानना है कि अगली 3 से 4 तिमाही में नकदी को पूरी तरह से कंट्रोल कर लिया जाएगा। केंद्रीय बैंक को अंदेशा है कि अप्रैल से सितंबर 2017 के बीच सरकारी खर्च बढ़ सकता है। कर्ज माफी से नाखुश होते हुए कहा गया कि इससे ईमानदार करदाता हतोत्‍साहित होते हैं और नैतिक खतरा भी बढ़ता है। इसलिए कर्ज माफी को रोकना चाहिए।

केंद्रीय बैंक को आशंका है कि कमजोर मानसून और जीएसटी से बाजार पर जो प्रभाव पड़ेगा उससे महंगाई बढ़ सकती है। आरबीआई जल्‍द ही फाइनेंशियल लिट्रेसी प्रोजेक्‍ट भी शुरू करने जा रहा है। कुल मिलाकर मॉनेटरी पॉलिसी को बाजार में सकारात्‍मक लिया गया है और उम्‍मीद जताई जा रही है कि इसका अच्‍छा प्रभाव देखने को मिलेगा।

वैसे, जानकारों ने बुधवार को ही अंदेशा जताया था कि महंगाई बढ़ने के कारण चालू वित्त वर्ष 2017-18 की पहली दोमाही समीक्षा में केंद्रीय बैंक नीतिगत दर (रेपो रेट) को यथावत रखेगा। 8 फरवरी की मौद्रिक नीति की समीक्षा में भी आरबीआई ने दरों में कोई बदलाव नहीं किया था। फिलहाल रेपो रेट (वह दर जिस पर बैंक आरबीआई से कम अवधि के कर्ज लेते हैं) 6.25 फीसद है।

रेपो रेट : रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है। बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं। रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे। मसलन, गृह ऋण, वाहन ऋण आदि।

रिवर्स रेपो रेट : यह वह दर होती है जिस पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी की तरलता को नियंत्रित करने में काम आती है।