सतीश सिंह।

डिजिटल लेनदेन में साइबर सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने वाले अधिकांश उपायों को सूचना प्रौद्योगिकी कानून के दायरे में रखा गया है, जिसके कारण डिजिटल लेनदेन के दौरान भुगतान नहीं मिलने पर उपभोक्ताओं को कानूनी सुरक्षा नहीं मिल पाती है। डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि भुगतान में होने वाली चूक से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए देश में ठोस कानून की व्यवस्था हो। आमतौर पर रिजर्व बैंक देश में बैंकों के लिए सुरक्षा और निजता संबंधी मानक बनाता है, लेकिन पेटीएम, फ्रीचार्ज और मोवि क्विक जैसे डिजिटल वॉलेट गैर बैंकिंग वित्तीय निगम की श्रेणी में आते हैं, जिसे रिजर्व बैंक के विवेकाधिकार से बाहर रखा गया है। यह जानना जरूरी है कि वित्त क्षेत्र से जुड़ी तकनीकी कंपनियों को फिनटेक कहा जाता है और ये सूचना प्रौद्योगिकी कानून की धारा 43 ए के दायरे में आती हैं, जिसके कारण डिजिटल भुगतान के दौरान उपभोक्ताओं को नुकसान होने पर उन्हें किसी प्रकार का कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाता है। आज मोबाइल वॉलेट सेवा प्रदाता और उपभोक्ता के बीच महज एक संविदात्मक करार होता है, जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है।

एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी की घोषणा के बाद से उपभोक्ताओं ने पेटीएम, फ्रीचार्ज जैसी डिजिटल वॉलेट कंपनियों के जरिये 3.5 करोड़ लेनदेन किए हैं। इनमें सामान और सेवाओं की खरीदारी और एक खाते से दूसरे खाते में पैसे भेजना शामिल है। डिजिटल लेनदेन में जिस तरह से इजाफा हो रहा है, उससे भारत में डिजिटल भुगतान के क्रम में चूक होने पर उपभोक्ताओं को कानूनी संरक्षण देने की जरूरत है। ऐसा होने पर न केवल उपभोक्ताओं के पैसों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि इससे कंपनियां भी वित्तीय नुकसान से बच सकेंगी। फिनटेक कंपनियों के लिए सुरक्षा मानक बनाये रखने की जिम्मेदारी आईटी कानून के तहत डेटा संरक्षण कानून के अंतर्गत आती है और इसे अमलीजामा पहनाने के दौरान विविध तंत्रों के बीच समन्वय का अभाव देखा जाता है। बेंगलुरु की थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी (सीआईएस) के शोध के मुताबिक देश की कुछ बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों में से कई आईटी कानून की धारा 43 ए का पालन नहीं करती हैं। देश के आईटी कानून में डेटा संरक्षण से जुड़े जो नियम फिनटेक कंपनियों पर लागू होते हैं, उनका इंटरनेट सेवा प्रदाता एवं दूरसंचार कंपनियां पालन नहीं करती हैं।

डिजिटल भुगतान में सुरक्षा के मूलभूत कानूनों के अभाव में ऐसी सेवाओं के इस्तेमाल की जिम्मेदारी पूरी तरह से उपभोक्ता पर आ जाती है। हालांकि, सरकार समस्या से पूरी तरह से वाकिफ है, लेकिन मामले में आमूलचूल परिवर्तन लाना इतना आसान नहीं है। इधर, डिजिटल भुगतान सेवाओं में वर्चुअल सेंडबॉक्स बनाने जैसे प्रस्तावों पर भी सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसलिए रिजर्व बैंक ने हर उपभोक्ता के लिए अधिकतम जमा राशि की सीमा दस हजार रुपये रखी थी, लेकिन नोटबंदी के कारण इसे 23 नवंबर से बढ़ाकर बीस हजार रुपये किया गया है। वैसे इसके अपवाद भी हैं, जैसे डिजिटल वॉलेट कंपनी पेटीएम ने उपभोक्ताओं को केवाईसी की जांच के बाद अपने वॉलेट में अधिकतम एक लाख रुपये तक रखने का विकल्प दिया है। जमा राशि की सीमा को कम रखने के प्रति रिजर्व बैंक का उद्देश्य है कि उपभोक्ताओं को कम से कम नुकसान हो।

भले ही सरकार डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है, लेकिन हाल ही में एटीएम-डेबिट कार्ड के डेटा को हैक करके 19 बैकों के 641 ग्राहकों को साइबर अपराधियों द्वारा 1.3 करोड रुपये का चूना लगाने से उपभोक्ताओं का डिजिटल लेनदेन पर भरोसा कम हुआ है। कहा जा रहा है कि एटीएम नेटवर्क प्रोसेसिंग का प्रबंधन करने वाली हिताची की अनुषंगी हिताची पेमेंट सर्विसेज की गलती के कारण ऐसा हुआ। यह भी कहा गया कि मालवेयर नामक वायरस के कारण इतनी बड़ी सेंघमारी को अंजाम दिया जा सका। जो भी हो, नुकसान तो अंतत: उपभोक्ताओं को ही हुआ।

वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक मनी से जुड़ी धोखाधड़ी के वारदातों की निरंतरता को देखते हुए भारत में हुई इस घटना को सामान्य माना जा सकता है। अमेरिका से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘द निल्सन रिपोर्ट’ जो केवल प्लास्टिक मनी से जुड़े धोखाधड़ी के मामलों को ही कवर करती है, के अक्टूबर 2016 के अंक के मुताबिक एटीएम-डेबिट, क्रेडिट एवं प्री-पेड भुगतान कार्ड, जिसमें मास्टर एवं वीजा दोनों शामिल हैं, से जुड़े धोखाधड़ी की वारदातों में फंसी राशि 21.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर तक पहुंच चुकी है। के्रडिट स्कोरिंग एवं एनालिटिक फर्म एफआईसीओ (फिको) के मुताबिक अमेरिका में डेबिट कार्ड का डेटा चुराकर फ्रॉड करने की घटनाओं में दिन-प्रति-दिन इजाफा हो रहा है। बावजूद इसके अमेरिका समेत विश्व के दूसरे देशों में धोखाधड़ी का शिकार होने पर ग्राहकों को हर्जाना देने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। आमतौर पर विश्व के अधिकांश वित्तीय संस्थानों के प्लास्टिक मनी से जुड़ी शर्तों में धोखाधड़ी का शिकार होने पर मुआवजा देने की व्यवस्था नहीं होती है।

हालांकि भारत में स्थिति इतनी बुरी नहीं है। यहां के केंद्रीय बैंक ने 11 अगस्त 2016 को जारी एक सर्कुलर में साफ कहा है कि किसी बैंक की सूचना एवं प्रोद्योगिकी की कमजोर सुरक्षा प्रणाली की वजह से यदि कोई आॅनलाइन फ्रॉड होता है तो उसकी जबावदेही ग्राहक की न होकर संबंधित बैंक की होगी और फ्रॉड की राशि का हर्जाना बैंक को पीड़ित ग्राहक को देना होगा। हां, इस तरह के आॅनलाइन फ्रॉड की सूचना ग्राहक को तीन दिनों के अंदर बैंक को देनी होगी।

भारत में ग्राहकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बैंकिंग लोकपाल, उपभोक्ता फोरम, अदालत आदि फोरम हैं। भारत में भी प्लास्टिक मनी से या डिजिटल लेनदेन के दौरान भुगतान नहीं मिलने या इससे जुड़ी धोखाधड़ी की वारदातें एक लंबे अरसे से बड़े पैमाने पर की जाती रही हैं। अत: ग्राहकों के हितों की सुरक्षा के लिए ऐसे फोरम में ग्राहकों की शिकायतों की सुनवाई की जाती है। बानगी के तौर पर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़ और हरियाणा के तीन जिलों के पंचकूला, अंबाला और यमुना नगर में बैंकिंग लोकायुक्त के पास सबसे ज्यादा शिकायतें एटीएम-डेबिट कार्ड से संबंधित ही आती हैं। एटीएम मशीन से पैसे नहीं निकलने, लेकिन कार्ड की क्लोनिंग होने, एटीएम-डेबिट कार्ड के पास में ही होने लेकिन पैसे की निकासी हो जाने जैसी शिकायतें सबसे अधिक हैं। चंडीगढ़ लोकायुक्त के पास वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान इस तरह की 3955 शिकायतें दर्ज कराई गर्इं, जो वित्त वर्ष 2011-12 में 3521 थीं। डिजिटल लेनदेन से जुड़े तमाम तरह के नकारात्मक तथ्यों के साथ-साथ इस संबंध में अच्छी बात यह है कि ऐसे कई अस्थाई तरीके भी देश में मौजूद हैं, जिनसे डिजिटल भुगतान की साइबर सुरक्षा में सुधार हो सकता है। आईटी कानून की धारा 43 ए के प्रावधानों में इस उद्योग को कंसोरटियम बनाने की अनुमति दी गई है, जिसके तहत आपसी सहमति से सुरक्षा मानक बनाये जा सकते हैं। सभी कंपनियों को आपसी सहमति से इन मानकों को मानने के लिए बाध्य एवं किसी विवाद को निपटाने के लिए अदालत की शरण में जाने के लिए भी तैयार किया जा सकता है। अमूमन सरकार के पास किसी खास उद्योग के लिए विशेष कानून बनाने के लिए विशेषज्ञों की कमी होती है, लेकिन निजी स्तर पर विकसित विशेषज्ञता एवं आपसी समन्वय से सभी लाभान्वित हो सकते हैं।

इसमें दो राय नहीं है कि मौजूदा समय में डिजिटल भुगतान से जुड़े विवाद से निपटने के लिए हमारे देश में कोई स्पष्ट कानूनी व्यवस्था नहीं है। प्लास्टिक मनी का डेटा हैक होने, दुरुपयोग होने या फिर तकनीकी गड़बड़ी के कारण नुकसान होने पर भी उपभोक्ताओं को कोई कानूनी सुरक्षा नहीं मिल पाती है, जबकि डेटा हैक करना आज बहुत ही आसान हो गया है। वहीं कुछ अपवादों को छोड़कर ठगी के शिकार ग्राहकों को भी पाक-साफ नहीं माना जा सकता है। ग्राहकों का भी दायित्व है कि वे बैंकिंग क्षेत्र में आये दिन आ रहे तकनीकी बदलावों से अपने को अपडेट रखें तथा बैंक द्वारा बताई सावधानियों का भी अनुपालन करें। सावधानी बरतने से डिजिटल लेनदेन में होने वाले नुकसान से बहुत हद तक बचा जा सकता है। 