प्रियदर्शी रंजन/पी के मिश्र।

राष्ट्रीय जनता दल के बाहुबली नेता और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन 11 साल बाद जेल से बाहर आ गए हैं। कोर्ट ने जमानत दी है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी भी नहीं कर सकता है। लेकिन विपक्ष के नेता सुशील कुमार मोदी यह आरोप जरूर लगात हैं कि नीतीश सरकार ने शहाबुद्दीन की रिहाई की जमीन तैयार की है। उनके मुताबिक सरकार ने ढंग से केस नहीं लड़ा जिसकी वजह से सीवान के डॉन को जमानत मिल गई। विपक्ष राजद सुप्रीमो लालू यादव पर खासकर निशाना साध रहा है कि उनके ही इशारे पर पुलिस अनुसंधान में ढील दी गई जिसके आधार पर शहबुद्दीन की रिहाई हुई। रिहाई से पहले भी यह आरोप लग रहा था कि लालू के सत्ता में आने के बाद शहाबुद्दीन की बेल का रास्ता आससान किया जा रहा है।

शहाबुद्दीन पर हत्या और अपहरण के 39 केस हैं। इनमें से 38 में जमानत उन्हें पहले ही मिल चुकी है। 39वां केस राजीव रौशन की हत्या का है जो अपने दो सगे भाईयों की हत्या का चश्मदीद गवाह था। तेजाब कांड से मशहूर घटना में दो सगे भाईयों को तेजाब से नहला कर मारने के आरोप में बाहुबली नेता के खिलाफ राजीव की गवाही के बाद ही मामला दर्ज हुआ था। गवाही देने के बाद भी राजीवज्यादा दिनों तक जिंदा नहीं रहा। उसकी भी हत्या जून 2014 में गोली मार कर दी गई। इस हत्या का आरोप भी शहाबुद्दीन और उनके बेटे ओसामा पर है। ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में राजीव के पिता चंदा बाबू का भी मानना है कि सरकार शहाबुद्दीन को बचा रही है। लालू के कारनामे से ही उसकी बेल हुई है। अपने तीन-तीन जवान बेटों को खोने के बाद अब उन्हें न्यायालय से भी कोई उममीद नहीं है। वे मौजूदा सरकार पर मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहते हैं कि उन्हें अपने और अपने परिवार की चिंता सताने लगी है। उनके पास अब इतना पैसा नहीं है कि वे सुप्रीम कोर्ट तक जा सकें।

हालांकि देश के जानेमाने वकील प्रशांत भूषण ने घोषणा की है कि वे शहाबुद्दीन की जमानत के निचली अदालत के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। उनका मानना है कि ऐसे संगीन मामले में जमानत नहीं मिलनी चाहिए थी।

साहेब सरकार की होगी वापसी
11 साल पहले की तस्वीर सीवान के लोगों के जेहन में अभी भी अच्छी तरह से मौजूद है जब 39 संगीन मामलों में आरोपित शहाबुद्दीन को जेल भेजा जा रहा था। उनके हजारों समर्थकों ने उन्हें कंधे पर उठाकर पुलिस वैन में बिठाया था। 10 सितंबर को शहाबुद्दीन भागलपुर जेल से बाहर आए तो एक बार फिर उसी तरह का नजारा था। जेल के बाहर उनके हजारों समर्थकों का हुजूम था। पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या में नाम आने के बाद उन्हें सीवान से भागलपुर जेल शिफ्ट कर दिया गया था। पूर्व सांसद का काफिला भागलपुर से सीवान के लिए 370 किलोमीटर की दूरी तय करने निकला तो 1300 से अधिक गाड़ियां काफिले में शामिल थीं। इनमें राजद के कई विधायक और अन्य रसूखदार लोग भी थे। अपने समर्थकों के बीच साहेब के नाम से जाने जाने वाले शहाबुद्दीन के स्वागत में रास्ते में हजारों तोरण द्वार लगाए गए थे। काफिला जहां से भी गुजरा समर्थकों ने उनका जोरदार स्वागत किया।

जाहिर है शहाबुद्दीन जैसे थे, जेल से वैसे ही रिटर्न हुए हैं। समर्थकों की संख्या अब भी बरकार है तो शहाबुद्दीन का तेवर भी। सांसद रहते बिहार की सियासत में उनकी जो अहियमत थी आज भी है। उनके राजनीतिक दुश्मन और समर्थक भी पहले जैसे ही हैं। लालू यादव उनके नेता हैं तो नीतीश कुमार राजनीतिक दुश्मन नंबर एक। जेल से बाहर आने के बाद पत्रकारों के पूछे गए एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा कि नेचर और सिग्नेचर नहीं बदलता। 26 साल तक जनता ने उन्हें जिस रूप में पसंद किया वे उसे बरकार रखेंगे। शहाबुद्दीन के इस बयान का सीवान में कई अर्थ लगाया जा रहा है। सीवान के स्थानीय पत्रकार ब्रजेश मिश्रा इसका अर्थ इस रूप में लगाते हैं कि कि सीवान में फिर से साहेब राज होगा। उनकी अपनी सरकार होगी, अपनी अदालत और दंड देने के लिए गुर्गे भी। जैसा सीवान में 11 साल पहले हुआ करता था।

नीतीश परिस्थितियों के मुख्यमंत्री
शहाबुद्दीन का आपराधिक चेहरा एक दशक पहले नीतीश के लिए बिहार में सत्ता परिवर्तन के लिए मुद्दा हुआ करता था। उनकी जेल यात्रा में नीतीश कुमार का बड़ा रोल रहा। शहाबुद्दीन ने जेल से निकलते ही नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बता कर अपनी अहमियत साबित बताने की कोशिश की है। बकौल शहाबुद्दीन, ‘वे 27 वर्षों से लालू को अपना नेता मानते आ रहे हैं और वे ही उनके नेता बने रहेंगे। नीतीश कुमार परिस्थितियों के मुख्यमंत्री हैं। नीतीश को मैं नहीं मानता। वे अकेले चुनाव लडें तो 20 सीटें भी नहीं मिलेंगी।’ नीतीश कुमार को परिस्थितियों के नेता कहे जाने के बाद महागठबंधन के दो प्रमुख दल राजद और जदयू आमने-सामने हैं तो कई मामलों में शहबुद्दीन से भेद करने वाली भाजपा साथ खड़ी है। नीतीश को परिस्थितियों का नेता बताए जाने के बाद यह सवाल भी गहरा गया है कि पहले से ही नीतीश विरोधी अपने नेताओं को कंट्रोल करने में नाकाम रही राजद शहाबुद्दीन को किस तरह काबू कर पाएगी।

हालांकि जदयू ने भी अपने नेता पर वार किए जाने के बाद आक्रामक रुख अपनाया है। जदयू प्रवक्ता संजय सिंह ने ओपिनियन पोस्ट से बातचीत में कहा,‘हम शहाबुद्दीन के बयान को तव्वजो नहीं देते। यह राजद का आधिकारिक बयान नहीं है। जहां तक नीतीश कुमार का सवाल है तो वे कल भी नेता थे, आज भी हैं और आगे भी रहेंगे। शहाबुद्दीन को अगर कोई गलतफहमी है तो उन्हें लालू यादव ही बता सकते हैं कि आखिर उन्होंने किस परिस्थिति में नीतीश कुमार को नेता माना।’ वहीं राजनीतिक जानकार देवांशु शेखर के मुताबिक सीवान के पूर्व सांसद के बाहर आने की वजह से महागठबंधन में टूट का खतरा बढ़ गया है।

लालू का लाडला
बिहार में शहाबुद्दीन की जो छवि है उसे गढ़ने में जितना खून-पसीना शहाबुद्दीन ने बहाया है उतना ही सहयोग उन्हें सूबे की उस राजनीति से मिला है जो सांप्रदायिकता की बैसाखी पर तन कर खड़ी होती है। वे बिहार में मुस्लिम वोट की धुरी अरसे से रहें हैं। यही कारण है कि अपराध और दबंगई के मामले में बार-बार नाम उछलने के बाद भी राजद ने शहाबुद्दीन को प्रासंगिक बनाए रखा है। शहाबुद्दीन की हैसियत का अंदाजा इसी बात से लागाया जा सकता है कि महागठबंधन की सरकार बनने के बाद जेल में लगने वाले उनके दरबार में राजद विधायक समेत बिहार सरकार के मंत्री तक शामिल होते थे। मामले ने तूल पकड़ा तो पार्टी की ओर से कार्रवाई करने की बजाय उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारणी में शामिल कर लिया गया।

शहाबुद्दीन की रिहाई के बाद एक बार फिर लालू-शहाबुद्दीन प्रेम चर्चा में है। राजनीतिक जानकारदेवांशु शेखर बताते हैं कि दरअसल, लालू के लाडलों की सूची में सीवान के पूर्व बाहुबली सांसद का नाम पहले पायदान पर पिछले दो दशकों से है। यूं तो बिहार में कई अल्पसंख्यक चेहरे लालू के खेमे में मौजूद हैं मगर लालू को उन पर ज्यादा ऐतबार नहीं है। तकरीबन हर बड़ा मुस्लिम चेहरा पाला बदल चुका है या फिर राजद से बगावत कर चुका है। मगर शहाबुद्दीन ने तमाम झंझावतों को झेलते हुए कभी राजद या लालू का साथ नहीं छोड़ा। यही वजह है कि लालू सत्ता में रहते अपने इस भरोसेमंद मुस्लिम नेता को फिर से स्थापित करने की जुगाड़ में हैं। राजद के एक नेता बताते हैं कि इसी रणनीति के तहत वे शहाबुद्दीन की पत्नी हिना साहेब को राज्यसभा में भेजना चाहते थे। लेकिन उसी समय पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या में शहाबुद्दीन का नाम आने के बाद लालू को यह फैसला बदलना पड़ा और हिना की जगह राम जेठमलानी को राजद की ओर से राज्यसभा में भेजा गया।