जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन के टूटने का राज्य पर क्या असर पड़ेगा?
इस प्रश्न के उत्तर के दो हिस्से हैं। पहला उस वर्ग से संबंधित है जो शासन या प्रशासन से जुड़ा है। जम्मू-कश्मीर में ऐसे लोगों का एक हित समूह बन गया है और उनके हित विकसित भी हुए हैं। भाजपा-पीडीपी गठबंधन के टूटने से इस वर्ग को तकलीफ होगी। दूसरा हिस्सा जनता से संबंधित है। जनता पर प्रत्यक्ष रूप से राजनीति का असर नहीं पड़ेगा। अब निर्णय राज्यपाल के हाथ में है, जो राष्ट्रहित में होगा। हड़ताल, प्रदर्शन और अशांति पर नियंत्रण होने से जनता को राहत मिलेगी। ऐसे माहौल में पर्यटन का भी विकास होगा, जिसका लाभ जनता को मिलेगा।
गठबंधन की तीन साल की सरकार के दौरान हालात बिगड़े या सुधरे?
हालात में सुधार तो आया, लेकिन कुछ नकारात्मक वातावरण भी बना है। सुधार की बात करें तो हथियारों की उपलब्धता कम हुई, बाहर से आने वाला पैसा कम हुआ, अलगाववादी अप्रासंगिक हो गए। स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जा सके। तीन-चार हजार कश्मीरी पंडित घाटी में वापस गए, क्योंकि वहां उनके लिए सरकारी नौकरी की व्यवस्था की गई। सामाजिक गतिविधियां बढ़ी हैं और विकास के कई कार्य हुए हैं, खासतौर पर नई सड़कें बनाई गई हैं। लेकिन अलगाववादी तत्वों व पाकिस्तान प्रेरित आतंकियों ने हालात बिगाड़ दिया। उसी के तहत पत्थरबाजी का सिलसिला शुरू हुआ, जिसका नकारात्मक संदेश देश और दुनिया में गया। इसका असर यह हुआ कि एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गई। समग्रता में मूल्यांकन किया जाए तो हालात में सुधार ज्यादा दिखेगा।

इस सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि और सबसे बड़ी नाकामी क्या रही?
दो मोर्चों पर इस सरकार की उपलब्धियां सामने आर्इं। पहला विकास और दूसरा राज्य पुलिस की सक्रियता। विकास के संदर्भ में सबसे बड़ी बात यह हुई है कि जम्मू-कश्मीर में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी लागू हो गया है। प्रदेश में कई नए प्रोजेक्ट शुरू हुए हैं। राज्य पुलिस की बात करें तो उसे बेहतर ढंग से प्रशिक्षित किया गया, अच्छे हथियार दिए गए। अब राज्य पुलिस आपरेशन में सीधे भाग लेती है। सुरक्षा बलों के साथ उसका कोआर्डिनेशन बढ़ा है। इसके विपरीत प्रदेश सरकार समाज की अलगाववादी प्रवृत्ति पर नियंत्रण नहीं कर पाई। शिक्षा के स्तर पर काउंसेलिंग की जाती तो माहौल इतना खराब नहीं होता।

आगे क्या हो? सुरक्षा बलों को खुली छूट दी जाए या बातचीत का माहौल तैयार किया जाए?
सख्ती और संवाद दोनों की जरूरत है। इसलिए सुरक्षा बलों को खुली छूट देनी ही होगी। भारतीय सेना की बात करें तो इतना बड़ा मानवीय पहलू दुनिया की किसी भी सेना में नहीं मिलेगा। सेना आतंकियों के परिजनों का पुनर्वास भी करती है। मुठभेड़ के समय भी आतंकियों के परिजनों को बुलाकर अपील कराई जाती है कि अभी भी समर्पण कर दे तो जान बच सकती है। इसलिए ठीक से संवाद स्थापित किया जाए तो कश्मीर के लोगों का दिल जीता जा सकता है।

इस घटना का पाकिस्तान और घाटी में आतंकवादियों और उनके रहनुमाओं पर क्या असर होगा?
घाटी के आतंकी और उनके रहनुमा पहले से ही निराशा में हैं। इस घटना से उनकी निराशा और बढ़ेगी। अब पैसा और हथियार उन्हें मिल नहीं पा रहा है। घुसपैठ लगभग बंद ही हो गई है। आतंकी घटनाओं में फिलहाल जो तेजी आई है, वह उनके फ्रस्ट्रेशन का परिणाम है। सबसे बड़ी बात यह कि अब मुठभेड़ प्रशिक्षित आतंकियों से नहीं होती। यही वजह है कि इन नौसिखिया आतंकियों को सुरक्षा बल के जवान कुछ घंटों के बजाय कुछ मिनटों में ढेर कर देते हैं। अब कड़ाई और बढ़ेगी तो आतंकवाद की कमर टूट जाएगी, जिससे आतंकी अपने रहनुमाओं से कट जाएंगे।

क्या लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में कोई बुनियादी बदलाव ला पाएगी?
शिक्षा के स्तर पर बड़ा बदलाव लाने के गंभीर प्रयास किए जाएंगे, जिससे सकारात्मक माहौल बनेगा। इस माहौल में विकास को गति मिलेगी और आतंकवाद पिछड़ जाएगा। अलगाववादी अप्रासंगिक हो जाएंगे तो आम आदमी राहत की सांस ले सकेगा। उसका तनाव दूर होगा, जीवन सामान्य होगा तो उसकी अगली पीढ़ी की चिंता दूर हो जाएगी। इसके अलावा कानूनी तौर पर भी कुछ बदलाव लाने की जरूरत है।
—एसके. सिंह