राहुल गांधी के लिए कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी कांटों भरे ताज के समान होगी। लगातार चुनावी शिकस्त झेल रही कांग्रेस को क्या राहुल मजबूत कर पाएंगे? इन्हीं तमाम मुद्दों पर जेएनयू की रिटायर्ड प्रो. जोया हसन से अभिषेक रंजन सिंह की बातचीत।

बुरे दौर गुजर रही कांग्रेस को बतौर अध्यक्ष राहुल गांधी कितना मजबूत कर पाएंगे?
कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के समक्ष बेशुमार चुनौतियां होंगी। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की हार तय है और गुजरात में वापसी संभव नहीं है। वैसे राहुल गांधी गुजरात में काफी मेहनत कर रहे हैं। इस बार उनके अंदाज भी बदले-बदले से हैं। अगर गुजरात में कांग्रेस पिछली बार से अधिक सीटें जीतती है तो इसका श्रेय राहुल को मिलेगा। अगर पार्टी को पिछले चुनाव से कम सीटें मिलती हैं तो हार की जिम्मेदारी पार्टी के गुजरात प्रभारी अशोक गहलोत के माथे मढ़ दी जाएगी। यह कांग्रेस की परंपरा रही है। लोकसभा चुनाव होने में दो साल का समय है। उससे पहले अगले साल राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इन राज्यों में कांग्रेस काफी कमजोर है। इन राज्यों के नतीजे अगर कांग्रेस के पक्ष में नहीं आए तो इसकी पूरी जिम्मेदारी राहुल गांधी पर आएगी। कांग्रेस और राहुल के लिए असल चुनौती तो 2019 के लोकसभा चुनावों में पेश आएगी। 2014 के चुनाव में कांग्रेस को अब तक की सबसे बुरी हार का सामना करना पड़ा। यह गौर करना जरूरी है कि अब जितने भी चुनाव होंगे वे सभी राहुल गांधी के नेतृत्व में होंगे। ऐसे में अगर कांग्रेस चुनाव हारती है तो उसकी सारी जिम्मेदारी राहुल गांधी पर होगी।

राहुल गांधी के बरक्स पार्टी में कई और नेता हैं जिन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा सकता था। आखिर कांग्रेस नेहरू-गांधी परिवार का मोह क्यों नहीं त्याग रही है?
शायद कांग्रेस को लगता है कि गांधी परिवार के हाथों में ही पार्टी का भविष्य सुरक्षित है। ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे कई युवा नेता हैं पार्टी में। ये दोनों राहुल गांधी के करीबी नेताओं में से हैं। कांग्रेस का मतलब नेहरू-गांधी परिवार है और यह आज से नहीं है। उसी रास्ते पर पार्टी आगे बढ़ रही है। इतने वर्षों में देश की राजनीति में व्यापक बदलाव आ चुके हैं। लोगों की सोच में फर्क आ चुका है। लेकिन कांग्रेस में कोई परिवर्तन नहीं आया है। बस पार्टी की कमान एक हाथ से दूसरे हाथ में चली गई है। मोतीलाल नेहरू से जवाहरलाल नेहरू उसके बाद इंदिरा गांधी फिर राजीव गांधी उसके बाद सोनिया गांधी और अब राहुल गांधी। परिवारवाद का यही कल्चर कई क्षेत्रीय पार्टियों ने अपना लिया। जैसा कि मैंने पहले भी कहा है अगर राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस आगामी लोकसभा चुनाव हारती है तो उनके ऊपर सवालों की बौछार होने लगेगी। राहुल गांधी के लिए पार्टी की कमान संभालना एक बड़ी चुनौती है। सबसे पुरानी और लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस महज कुछ राज्यों में सिमट चुकी है। उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों से कांग्रेस का सफाया हो चुका है। इन राज्यों में वापसी तो दूर पार्टी सांगठनिक रूप से भी जर्जर हो चुकी है। वहीं कांग्रेस के मुकाबले भाजपा ज्यादा सशक्त है। एक उसकी सांगठनिक क्षमता और दूसरा आरएसएस का मार्गदर्शन। कांग्रेस को इस तरह का कोई बैक सपोर्ट नहीं है। इसलिए राहुल गांधी को बतौर अध्यक्ष न सिर्फ चुनावी जीत हासिल करना चुनौती है बल्कि सांगठनिक रूप से पार्टी को मजबूत भी करना होगा।

कहा जाता है कि कांग्रेस में सोनिया और राहुल दो पॉवर सेंटर हैं! राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस में कितना बदलाव देखने को मिलेगा?
यह दुरुस्त बात है कि कांग्रेस में सोनिया और राहुल दो पॉवर सेंटर हैं। लेकिन राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद ऐसी स्थिति नहीं होगी। जहां तक कांग्रेस में बदलाव की बातें हैं तो वह राहुल गांधी पर निर्भर करता है। पहले उन पर आरोप लगता था कि वह कार्यकर्ताओं से कम मिलते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की सलाह भी नहीं मानते वगैरह-वगैरह। लेकिन अगर गुजरात चुनाव में उनके कैंपेन को देखें तो आपको राहुल गांधी काफी बदले-बदले से दिखेंगे। कार्यकर्ताओं से मिलना, उनके बीच जाना और संवाद करना आदि कई रूप दिखेंगे। उनकी भाषण शैली में भी काफी बदलाव आए हैं। इतना तक तो ठीक है लेकिन बात अंतत: चुनावों में कामयाबी पर आती है। किसी भी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौसला चुनावी जीत हासिल होने से बढ़ता है। कांग्रेस के नेता-कार्यकर्ता पार्टी को लगातार मिल रही असफलताओं से हताश हैं। अगर पंजाब को छोड़ दें तो हालिया चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसलिए मेरा मानना है कि राहुल गांधी का यश और कांग्रेस की बेहतरी तभी संभव है जब चुनावों में उसे कामयाबी मिलेगी। देश में आधे से ज्यादा राज्यों में भाजपा का शासन है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वजह से भाजपा इस स्थिति में पहुंची है।

गुजरात चुनाव के बीच में राहुल को कांग्रेस की कमान सौंपने की क्या वजह हो सकती है?
यह कांग्रेस की रणनीति है। गुजरात में राहुल गांधी जिस तरीके से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। साथ ही जीएसटी को लेकर वहां के कारोबारियों में रोष पैदा हुआ। इसके अलावा हार्दिक पटेल की अगुवाई में जारी पाटीदार आरक्षण आंदोलन और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस को यकीन है कि गुजरात चुनाव में पार्टी बेहतर प्रदर्शन करेगी। वैसे गुजरात का चुनाव जीत पाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है। क्योंकि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहराज्य है। कोई लाख दावा करे लेकिन मोदी के गढ़ में सेंध लगाना बेहद मुश्किल है। अगर कांग्रेस को पिछली मर्तबा से ज्यादा सीटें मिलती हैं तो यह कांग्रेस के लिए किसी जीत से कम नहीं होगा। यही वजह है कि गुजरात चुनाव के बीच में ही राहुल गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा रहा है।