अजय विद्युत

चारों युग, तमाम देवी-देवता, गणेश जी का कटा सिर, भगवान शिव की पानी से भीगी जटाएं और पूरे ब्रह्मांड का विहंगम दृश्य… काल भैरव की जीभ और कब होगा कलियुग का अंत… पाताल भुवनेश्वर में अटपटी, फिसलनभरी और पानी से नहाती बयासी सीढ़ियां उतरने के बाद यह सब आप देख सकते हैं। आॅक्सीजन की थोड़ी कमी है इसलिए गुफा में प्रवेश के पहले ही हिदायत लिखी है कि आप सांस, ब्लडप्रेशर, हृदय के रोगी हैं तो कृपया प्रवेश न करें। साथ ही यह भी कि आप गाइड के साथ ही नीचे जाएंगे, अकेले जाने पर कोई हादसा हो जाए तो मंदिर प्रशासन जिम्मेदार नहीं। गुफा विशालकाय पहाड़ी के करीब 90 फीट अंदर है।

स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना, लोगों की गहरी आस्था का केंद्र और आस-पास हर तरफ प्राकृतिक सौंदर्य… मानो साक्षात् शिव का प्राकट्य स्वरूप। हमारे गाइड थे नीलम भंडारी। वह पुजारी हैं और पाताल भुवनेश्वर मंदिर कमेटी के अध्यक्ष भी। जैसे ही सीढ़ियों से नीचे उतरे मद्धिम रोशनी में कुछ दूर चले भंडारी जी की आवाज की गूंज पूरी गुफा से प्रतिध्वनित होती सुनाई दी- ‘आप शेष नाग के शरीर की रीढ़ की हड्डियों पर खड़े हैं और आपके सिर के ऊपर शेष नाग का फन है। रोमांच तब होता है जब ऊपर देखने पर वास्तव में अनुभव होता है कि प्राकृतिक रूप से तराशे गए पत्थरों में नाग फन फैलाये आंखों के सामने हैं। स्कन्द पुराण के अनुसार इस पवित्र गुफा की खोज त्रेता युग में राजा ऋतुपर्ण ने की थी जो राजा भागीरथ के सातवीं पीढ़ी में आते हैं। कलियुग में काफी समय तक इस गुफा के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी।

आदि शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की थी और भगवान शिव के शिवलिंग को कीलित किया था। यहां एक हवन कुंड है जिसके बारे में कहा जाता है कि अपने पिता परीक्षित को श्रापमुक्त करने के लिए जनमेजय ने सारे नाग यहां जलाकर मार डाले। लेकिन तक्षक नामक नाग बच निकला जिसने बदला लेते हुए परीक्षित को मौत के घाट उतारा। नागयज्ञ के कुंड के ऊपर इसी नाग का चित्र है। इसके अलावा यहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों की पिंडिया हैं जिन पर प्रकृति बारी बारी जलाभिषेक करती है। यह क्रम सदा से जारी और कभी भंग नहीं होगा- ऐसा नीलम भंडारी बताते हैं।

ये दुनिया कब तक
गुफा में चारों युगों सत्युग, त्रेता, द्वापर और कलियुग के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। कलियुग का प्रतीक पत्थर सबसे ऊंचा है। पहले तीन युगों के पत्थरों में कोई परिवर्तन नहीं होता लेकिन माना जाता है कि कलियुग का पत्थर धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। भंडारी जी बताते हैं कि धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर छत से लटक रही पिंडी से टकरा जाएगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा और महाप्रलय आ जाएगी। हालांकि उन्होंने कहा कि अभी कलियुग को पांच हजार एक वर्ष ही हुए हैं और उसका प्रथम चरण चल रहा है। इसलिए जल्दी दुनिया समाप्त होने की जो भविष्यवाणियां की जा रही हैं वे निराधार हैं।

यहीं पर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ भी शामिल हैं। यहां बद्रनाथ, केदारनाथ, और अमरनाथ तक जाने की गुफाएं भी हैं जिनका मुंह बंद कर दिया गया है। गाइड ने बताया कि कोई सिद्धपुरुष सूक्ष्म शरीर से ही इसके रास्ते वहां तक पहुंच सकता है। यह सामान्य मनुष्य के बस की बात नहीं है।

काल भैरव की जीभ
शेष नाग के शरीर की हड्डियों पर चल कर ही हम उस जगह पहुंचते हैं जहां शिव ने गणेश का सिर काट कर रख दिया था। एक स्थान पर भगवान शंकर की विशाल जटाएं इन पत्थरों पर नजर आती हैं। शिव जी की तपस्या के कमण्डल, खाल सब नजर आते हैं। कालभैरव की जीभ के पास जाकर भंडारी जी ने कहा कि साक्षात दिख रही जीभ के भीतर जाकर अगर आगे पूंछ से रास्ते निकल जाएं तो ऐसी मान्यता है कि मोक्ष प्राप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं इस जीभ के अंदर गया और गले तक पहुंचा। उसके आगे रास्ता बहुत कठिन है।

कई रहस्य और समाए हैं गुफा में। जाहिर है काफी बातें छूट गई हैं। स्कन्दपुराण के मानस खंड में जब व्यासजी के समक्ष ऋषिगण जिज्ञासा करते हैं- ‘महाराज! वह कौन सा क्षेत्र है जहां देवगण भगवान शंकर की उपासना हेतु निवास करते हैं? तथा विद्याधर, गंधर्व, अप्सरागण, मुनिजन, दैत्य, दानव, राक्षस एवं पातालवासी नाग आदि किस क्षेत्र में रहकर महेश्वर का पूजन करते हैं। दुर्लभ मुक्ति कहां प्राप्त की जा सकती है? इस अखंड भूमंडल में सर्वप्रधान क्षेत्र को आप बतलाएं?

तब व्यासजी बोले- ‘मुनिवरों, आप सावधानी से सुनें। मैं ऐसे क्षेत्र का वर्णन करता हूं जिसका स्मरण और स्पर्श करने से ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं। पूजन करने के संबंध में तो कहना ही क्या है? सरयू-रामगंगा के मध्य ‘पाताल भुवनेश्वर’ है। वे नृत्यशील नागकन्याओं, बसिष्ठादि ब्रह्मर्षियों तथा अन्य देवर्षियों द्वारा सेवित हैं। सभी देवता उनका पूजन करते हैं।’

वापसी में ऐसा लगता है जैसे अभी किसी और दुनिया में थे। क्या इतना कुछ मनुष्य का बनाया हुआ हो सकता है? वरिष्ठ पत्रकार और अब जम्मू में प्रोफेसर गोविंद सिंह ने कहा, ‘पाताल भुवनेश्वर की गुफा में जो कुछ भी बना है वह सब का सब प्राकृतिक है। उसमें बाद में बनाया गया जैसा कुछ भी नहीं है।’