तंगहाली से संघर्ष कर आगे बढ़े थे ओमपुरी

अंबाला। ओमपुरी अनेक समस्याओं का सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे पर कभी हार नहीं मानी और अपनी मंजिल तक पहुंच ही गए। अंबाला अभिनेता ओमपुरी की जन्मभूमि है। यहां रहने के दौरान उन्होंने पहले एक ढाबे पर नौकरी की,  जहां से चोरी का इल्जाम लगाकर उन्‍हें निकाल दिया गया। उन्होंने एक वकील के यहां भी काम किया था। पर वहां भी ज्यादा दिन नहीं टिक सके। पिता की शराब की लत परिवार के बिखरने की वजह बनी थी।

ओमपुरी का शुक्रवार को 66 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। उनका जन्म 18 अक्टूबर 1950 को हरियाणा के अंबाला में हुआ था। पिता रेलवे में नौकरी करते थे,  इसके बावजूद परिवार का गुजारा बामुश्किल चल रहा था। ओमपुरी का परिवार जिस मकान में रहता था, उसके पास एक रेलवे यार्ड भी था। ओमपुरी को ट्रेनों से काफी लगाव था।

रात के वक्त वह अक्सर घर से निकलकर रेलवे यार्ड में जाकर किसी भी ट्रेन में सोने चले जाते थे। यही वह वक्त था, जब ओमपुरी सोचते थे कि में बड़ा होकर एक रेलवे ड्राइवर बनूंगा। बताया जाता है कि उनके पिता शराब पीने के आदी थे,  जिसकी वजह से इनकी मां इन्हें लेकर पटियाला जिले में स्थित अपने मायके सन्नौर चली गई थीं।

इस तरह मिल गई तीसरी

उनका रुझान अभिनय की ओर हो गया और वे सिनेमा जगत के लिए जागरूक होने लगे और धीरे-धीरे नाटकों में हिस्सा लेने लगे। फिर खालसा कॉलेज में दाखिला लिया। नाटक में भाग लेने की वजह से वह वकील के यहां काम पर नहीं गए और इसी के चलते वकील ने उन्हें काम से निकाल दिया। जब इस बात का पता कॉलेज के प्राचार्य को चला तो उन्होंने ओमपुरी को कैमिस्ट्री लैब में सहायक की नौकरी दे दी। ओमपुरी कॉलेज में आयोजित होने वाले नाटकों में भी हिस्सा लेते रहे।

रंगकर्मी हरपाल टिवाना ने बदली राह

यहां उनकी मुलाकात हरपाल और नीना टिवाना से हुई, जिनके सहयोग से वह पंजाब कला मंच नामक नाट्य संस्था से जुड़ गए। इसी तरह ओमपुरी ने दिल्ली में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला भी लिया। अभिनेता बनने का सपना लेकर पुणे फिल्म संस्थान में दाखिला लिया।

1976 में पुणे फिल्म संस्थान से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद इसी सत्र में अपने सिनेमा करियर की शुरुआत फिल्म “घासीराम कोतवाल” से की। लगभग डेढ़ वर्ष तक एक स्टूडियो में लोगों को अभिनय करने की शिक्षा भी दी।

मिले कई फिल्म अवार्ड

गोधूलि, भूमिका, भूख, शायद, सांच को आंच नहीं जैसी अनेक फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं मिला, पर 1980 में रिलीज फिल्म “आक्रोश” इनके सिनेमा करियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई।

ओमपुरी को अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म “अर्धसत्य” एक ऐसी फिल्म थी, जो ओमपुरी के सिनेमा करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में गिनी जाती है। फिल्म में ओमपुरी ने एक पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका निभाई थी। हिंदी फिल्मों के अलावा ओमपुरी ने पंजाबी और दूसरी भाषाओं की फिल्मों में भी अपनी कला को दिखाया व एक अच्छे अभिनेता के रूप में अभिनय किया है।

नव्बे के दशक में ओमपुरी ने छोटे पर्दे की ओर भी रुझान दिखाया। सिनेमा जगत में अपना एक बहुत ही अच्छा योगदान देने के कारण 1990 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 4 दशक लंबे सिनेमा करियर में लगभग 200  फिल्मों में अभिनय किया।

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