नई दिल्ली।
नौ हजार करोड़ रुपये के लोन डिफॉल्ट केस में विजय माल्या की लंदन में गिरफ्तारी और थोड़ी देर बाद जमानत के नाटकीय घटनाक्रम का पटाक्षेप भी नहीं हुआ था कि माल्या ने ट्वीट कर भारतीय मीडिया पर निशाना साध दिया। सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठाने लगे कि क्या माल्या को सरकार भारत ला पाएगी। सरकार की ओर से कहा गया कि किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा। प्रक्रिया तो पूरी होने दीजिए। माल्या को लाना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं।
ब्रिटेन के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि है। मंगलवार के मामले से माल्या के खिलाफ प्रत्यर्पण की कार्रवाई की शुरुआत हो गई है, लेकिन ये प्रत्यर्पण के 9 चरणों से पहला चरण ही है। माल्या को अपील करने के 3 मौके मिलेंगे।
भारत और ब्रिटेन के बीच 1993 में प्रत्यर्पण संधि हुई थी। इसके तहत दोनों देशों के बीच वांछित लोगों को प्रत्यर्पित करने का प्रावधान किया गया। माल्या के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग, लोन डिफॉल्ट समेत कई मामले चल रहे हैं। भारत सरकार ने ब्रिटिश उच्चायोग के जरिये माल्या के प्रत्यर्पण का अनुरोध भेजा था।
कैसे होगा प्रत्यर्पण पर फैसला?
ब्रिटिश सरकार के मुताबिक बहुराष्ट्रीय कनवेंशन और द्विपक्षीय संधियों के तहत ब्रिटेन दुनिया के करीब 100 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि रखता है। इनमें भारत कैटेगरी 2 के टाइप बी वाले देशों में शामिल है। भारत जिस श्रेणी में है, उसमें शामिल देशों से आने वाले आग्रह पर फैसला ब्रिटेन का विदेश मंत्रालय और अदालतें दोनों करते हैं।
विदेश मंत्री से आग्रह किया जाएगा, जो इस बात का फ़ैसला करता है कि इसे सर्टिफाई किया जाए या नहीं। जज निर्णय करता है कि गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी किया जाए या नहीं। इसके बाद शुरुआती सुनवाई होगी। फिर बारी आएगी प्रत्यर्पण सुनवाई की। फिर विदेश मंत्रालय फैसला करता है कि प्रत्यर्पण का आदेश दिया जाए या नहीं।
आग्रह करने वाले देश को क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस को आग्रह का शुरुआती मसौदा सौंपने के लिए कहा जाता है, ताकि बाद में कोई दिक्कत पेश न आए। पहले ब्रिटिश गृह मंत्रालय की इंटरनेशनल क्रिमिनलिटी यूनिट इस आग्रह पर विचार करती है। अगर दुरुस्त पाया जाता है, तो इसे आग्रह अदालत को बढ़ा दिया जाता है।
अगर अदालत सहमत होती है कि पर्याप्त जानकारी उपलब्ध कराई गई है, तो गिरफ्तारी वारंट जारी किया जाएगा। इसमें व्यक्ति विशेष से जुड़ी सारी जानकारी होती है। गिरफ़्तारी के बाद शुरुआती सुनवाई और प्रत्यर्पण सुनवाई होती है। सुनवाई पूरी होने के बाद जज संतुष्ट होता है तो मामले को विदेश मंत्रालय को बढ़ा दिया जाता है।
इसके बावजूद जिसके प्रत्यर्पण पर बातचीत हो रही है, वह शख्स मामला विदेश मंत्रालय को भेजने के जज के फैसले पर अपील कर सकता है। मामले पर विचार के बाद विदेश मंत्रालय फैसला लेता है। तीन सूरत ऐसी है, जिनके होने पर प्रत्यर्पण नहीं किया जा सकेगा। अगर प्रत्यर्पण के बाद व्यक्ति के खिलाफ सज़ा-ए-मौत का फैसला आने का डर हो। अगर आग्रह करने वाले देश के साथ कोई विशेष इंतजाम हो। अगर व्यक्ति को किसी तीसरे मुल्क़ से ब्रिटेन में प्रत्यर्पित किया गया हो।
विदेश मंत्रालय को मामला भेजने के दो महीने के भीतर फैसला करना होता है। ऐसा न होने पर व्यक्ति रिहा करने के लिए आवेदन कर सकता है। हालांकि विदेश मंत्री अदालत से फैसला देने की तारीख आगे बढ़वा सकता है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी व्यक्ति के पास हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का अधिकार रहता है। कुल मिलाकर माल्या के भारत लौटने का रास्ता काफी जटिल और लंबा है।