PBPNM03भाद्रपद कृष्ण अमावस्या 9 सितंबर को है। इसी अमावस्या को कुशग्रहणी या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है। सनातन धर्म के अनुयायी यह अच्छी तरह से जानते हैं कि बिना कुशा के की गई हर पूजा निष्फल मानी जाती है-

पूजाकाले सर्वदैव कुशहस्तो भवेच्छुचि:। कुशेन रहिता पूजा विफला कथिता मया॥

पूजा के अवसर पर इसीलिए विद्वान पंडित हमें अनामिका उंगली में कुश की बनी पैंती पहनाते हैं। बाएं हाथ में तीन कुश और दाएं हाथ में दो कुशों की बनी हुई पवित्री- पैंती इस मंत्र के साथ पहननी चाहिए-

ओम पवित्रे स्थो वैष्णव्यौ सवितुर्व: प्रसव उत्पुनाम्यच्छिद्रेण पवित्रेण सूर्यस्य रश्मिभि:।

तस्य ते पवित्रपते पवित्रपूतस्य यत्काम: पुने तच्छकेयम्॥

पुरोहित हमेशा कुशा से गंगा जल मिश्रित जल सभी उपस्थित जनों पर छिड़कते हैं। पूरे वर्ष की पूजा आदि के लिए इसी दिन कुश एकत्र किया जाता है-

कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:। गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सवल्वजा:॥ 

कुश दस प्रकार के होते हैं। जो मिले,  उसी को ग्रहण करना चाहिए। माना गया है कि जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो,  सात पत्ती हों,  अग्रभाग कटा न हो और हरा हो,  वह देव और पितृ दोनों कार्यों में उपयोग करने वाला होता है। जहां कुश उपलब्ध हो,  वहां पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए और दाहिने हाथ से इस मंत्र का उच्चारण कर- विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज। नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव॥ हूं फट्। कुशा को उखाड़ना चाहिए। ध्यान रखें,  जरूरत भर ही कुशा तोड़ें।

जिनकी जन्मराशि वृष और कन्या है,  उन पर शनि की ढैया और जिनकी वृश्चिक,  धनु और मकर राशि है,  उन्हें शनि की साढ़ेसाती से जूझना पड़ रहा है। साथ ही जिनको पितृ दोष से संतान आदि न होने का भय सता रहा है,  उन्हें इस अमावस्या को पूजा-पाठ,  दान अवश्य करना चाहिए। जन्म कुंडली में जिन्हें शनि, राहु और केतु परेशान कर रहे हैं,  उन्हें तो हर अमावस्या पर पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने पितरों को भोग और तर्पण अर्पित करना चाहिए।

बुजुर्गों की प्रसन्नता के लिए उनकी इच्छाएं पूरी करनी चाहिए। कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थस्नान,  जप और व्रत आदि में जो संभव हो,  अवश्य करना चाहिए। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। सर्वप्रथम गणेश की पूजा करने के बाद नारायण और शिव या अपने इष्टदेव की आराधना विधि-विधान से करनी चाहिए। हां,  अपने जीवित बुजुर्गों की सेवा जरूर करते रहें।