बिहार

उपेंद्र कुशवाहा को महागठबंधन ने पांच सीटें दी थीं. वह खुद दो सीटों से चुनाव लड़ रहे थे. दोनों जगह हार गए. पूर्वी चंपारण से उन्होंने कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य अखिलेश प्रसाद सिंह के पुत्र आकाश सिंह को टिकट दिया था. वह भी हार गए. चर्चा थी कि पहले यह सीट किसी और को दी जानी थी, लेकिन ऐन मौके पर उपेंद्र कुशवाहा ने आकाश सिंह को टिकट दे दिया. यह खबर भी गर्म रही कि इस सीट के लिए सौदेबाजी हुई थी. गौरतलब है कि यह सीट पहले राजद के खाते में रहती थी. 1990 के बाद यहां से राजद के टिकट पर रमा देवी और अखिलेश प्रसाद सिंह चुनाव जीत भी चुके थे. फिर ऐसी क्या कहानी हुई कि तेजस्वी यादव ने यह सीट रालोसपा को देने का फैसला कर लिया? बिहार लोकसभा चुनाव की यह छोटी सी कहानी बताती है कि महागठबंधन ने इस बार लोकसभा चुनाव की रणनीति बनाने में क्या-क्या गलतियां कीं? तेजस्वी ने सोचा होगा कि माय समीकरण, कुशवाहा एवं वीआईपी की वजह से मल्लाह वोट और जीतन राम मांझी की वजह से महादलित वोट उन्हें मिल जाएगा, जिससे वह आसानी से एनडीए को टक्कर दे सकेंगे. लेकिन नतीजा क्या निकला? यही कि महागठबंधन के सारे जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए.

सबसे दिलचस्प बात यह कि बिहार विधानसभा की 243 में से 225 सीटों पर एनडीए आगे रहा. महागठबंधन के बड़े नेताओं को उनके दबदबे वाले इलाकों में भी एनडीए की तुलना में कम वोट मिले. राजद को 2015 के विधानसभा चुनाव में कुल 81 सीटें मिली थीं. लेकिन, ताजे परिणाम बता रहे हैं कि उसे महज आठ विधानसभा क्षेत्रों में एनडीए उम्मीदवारों से अधिक वोट मिले. खुद तेजस्वी यादव के विधानसभा क्षेत्र राघोपुर के मतदाताओं ने राजद के उम्मीदवार को एनडीए के उम्मीदवार से महज 242 वोटों की बढ़त देकर उनकी लाज बचाई. वहीं तेज प्रताप यादव के विधानसभा क्षेत्र महुआ में एनडीए के उम्मीदवार को अधिक वोट मिले. दरभंगा से लोकसभा के उम्मीदवार एवं अली नगर के विधायक अब्दुल बारी सिद्दीकी अपने ही विधानसभा क्षेत्र में एनडीए के उम्मीदवार से अधिक वोट नहीं पा सके. यही स्थिति सारण लोकसभा क्षेत्र में रही. राजद के उम्मीदवार चंद्रिका राय को परसा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के उम्मीदवार राजीव प्रताप रूड़ी से कम वोट मिले. हाजीपुर से राजद के उम्मीदवार एवं राजापाकर के विधायक शिवचंद्र राम भी अपने विधानसभा क्षेत्र में लोजपा के उम्मीदवार पशुपति कुमार पारस के सामने नहीं टिक सके.