पश्चिम बंगाल

पश्चिम बंगाल में इस बार ममता बनर्जी का किला कमजोर हो गया. पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम पर पूरे देश की नजरें टिकी हुई थीं, क्योंकि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन के चलते भारतीय जनता पार्टी को होने वाले नुकसान की भरपाई पश्चिम बंगाल और ओडिशा को करनी थी. भाजपा ने पश्चिम बंगाल पर विशेष ध्यान दिया था. पिछले साल राज्य में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा के वोट बढ़े थे, जिससे उसका उत्साह बढ़ा हुआ था. पंचायत चुनाव के समय से ही राज्य में लगातार हिंसक घटनाएं घट रही थीं.

ममता बनर्जी और भाजपा लगातार एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे. यहां भाजपा के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन जो परिणाम आया, वह चौंकाने वाला है. यह चुनाव ममता बनर्जी के लिए तो झटका था ही, लेकिन उससे बड़ा झटका वाम दलों को लगा. वाम दलों को यहां एक भी सीट नहीं मिली और उनका वोट शेयर भी बहुत घट गया. राज्य की 42 सीटों में से 18 पर भाजपा की जीत हुई. पिछली बार 34 सीटें जीतने वाली ममता बनर्जी को इस बार केवल 22 सीटों से संतोष करना पड़ा. हालांकि, टीएमसी को 43.3 प्रतिशत वोट मिले. लेकिन, सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा का वोट शेयर दोगुने से भी अधिक हो गया और उसने 40.3 प्रतिशत वोट हासिल किए. वाम दलों के लिए यह चुनाव काफी खराब रहा और उन्हें केवल सात प्रतिशत वोट मिले. देखा जाए, तो पश्चिम बंगाल में चुनाव ममता के साथ और ममता के खिलाफ के तौर पर हुआ. इसमें ममता बनर्जी को हराने वाली पार्टी को दूसरी पार्टियों का वोट भी चला गया. चूंकि, पश्चिम बंगाल में भाजपा तेजी से उभरी और टीएमसी को लगातार जवाब देती रही, जिसके कारण यहां कांग्रेस और वाम दलों का अच्छा-खासा वोट भाजपा के पास चला गया. यही नहीं, टीएमसी से नाराज कई नेता भी भाजपा में शामिल हुए और उन्होंने जीत भी दर्ज की. पश्चिम बंगाल का चुनाव एक साथ कई संदेश लेकर आया, जिसमें एक ओर वाम दलों का सफाया होता दिखाई पड़ रहा है, तो दूसरी ओर राज्य में भाजपा प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर उभरी है. कांग्रेस की स्थिति लगातार कमजोर होती दिखाई दे रही है और उसका वोट शेयर भी गिर रहा है. कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल में दो सीटें जीतीं और केवल पांच प्रतिशत वोट हासिल किए.