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पूरा पैसा वसूल हो गया. जमकर चौके-छक्के लगे. एक से एक झक्कास लंतरानियां, बिंदास बोल. जुबान साफ  करने वाले खुद लजा गए कि क्या बोल गए हम! कहने के मतलब ने इस बार सरे बाजार कई सूरमाओं के कपड़े उतार लिए, सारी अक्ल आ गई ठिकाने.

लोकतंत्र का महापर्व संपन्न हो गया दादा, बधाई स्वीकारो, मैंने पान की दुकान पर खड़े भइया लाल से पूरे आदर के साथ निवेदन किया.

छौंको कम, बघारो ज्यादा. पहले पान का एक बीड़ा बतौर भेंट चढ़ाओ मुन्ना, खाली हाथ तो लोग सरकारी दफ्तर भी नहीं जाते, भइया लाल ने अपना पहला घातक तीर चलाया.

क्यों नहीं दादा, कहकर मैं झुम्मन पनवाड़ी से मुखातिब हुआ, मेरी लाज अब झुम्मन चाचू आपके हाथ, दादा को भोग लगाओ.

झुम्मन ने तुरंत एक बीड़ा दादा के हाथों में समर्पित करते हुए अर्ज किया, पनवा तो हम पहले से हाजिर रक्खे थे, बस तोहरे जैसन ‘भगत’ की ‘परतीक्षा’ थी.

मैंने पांच रुपये का सिक्का झुम्मन के हवाले किया, फिर भइया लाल को निहारा, और कोई सेवा?

सेवा तो कर दी पुत्तर देश की जनता ने, बहुत ठोंक-बजाकर. इशारा यह कि 2024 तक अपने पैजामे का नाड़ा पकड़ कर बैठे रहो चुपचाप, भइया लाल पूरा जोर लगाकर हंसे.

सही बात, मजा खूब आया इस बार, मैंने बात आगे बढ़ाई.

हां-हां, क्यों नहीं? पूरा पैसा वसूल हो गया. जमकर चौके-छक्के लगे. एक से एक झक्कास लंतरानियां, बिंदास बोल. कई बार तो जुबान साफ  करने वाले खुद लजा गए कि अरे, क्या बोल गए हम! भइया लाल ने पहली पीक मुंह से बाहर करते हुए कहा.

लेकिन, उनके कहने का मतलब वह नहीं था, जो समझा गया, मैंने छेड़ा.

स्वीट हार्ट, हमारे देश की जनता यूं ही ‘पब्लिक’ नहीं कहलाती, वह सब जानती है कि आप कहना क्या चाहते थे और आपने कहा क्या, भइया लाल ने तड़ से जवाब फेंका.

कुछ भी हो, अपुन का फायदा हो गया, डिक्शनरी मजबूत हो गई. क्या अजब-गजब शब्द गूंजे फिजां में, मगरूर, मक्कार, मसखरा, जल्लाद, कायर, चोर, नीच, दुर्योधन, औरंगजेब, जुमलेबाज, नाटकबाज… मैंने मजे लेते हुए कहा, विशुद्ध वेजिटेरियन स्तुति गान.

अहमक आइटम हो यार तुम, ऐसी खुराफातों से तुम्हारा फायदा होता है, तुम्हारा ज्ञान बढ़ता है! भइया लाल एकदम से फायर हो गए.

अरे नहीं दादा, दिल पर मत लीजिए. मेरे कहने का मतलब वह नहीं था, जो आपने समझ लिया, मैं उन्हें मनाने की गरज से बोला.

कहने के मतलब ने ही इस बार सरे बाजार कई सूरमाओं के कपड़े उतार लिए. किसी को अदालत में घुटने टेकने पड़े, तो किसी के सिर पर सैंडिल मार्च हो गया, अक्ल आ गई ठिकाने, भइया लाल फिर बिफरे.

नाराज मत होइए दादा, अगर आप मुझे गलत मान बैठे हैं, तो माफ कर दीजिए. कहावत भी है, क्षमा बडऩ को चाहिए, छोटन को उत्पात…मैंने उन्हें फिर साधने की कोशिश की.

अच्छा चलो माफ किया. बबुआ, तुम पढ़े-लिखे हो, स्कूल-कॉलेज गए हो, इसलिए जब भी बोलो, सोच-समझ कर बोलो, भइया लाल के तेवर कुछ ढीले पड़े.

नतीजे पर आपकी क्या राय है दादा? मैंने बात का रुख मोड़ा.

यही कि प्यार तो होना ही था, भइया लाल ने जोश में आकर तान छेड़ी.

बाकियों का क्या होगा, वे देश को मुंह कै से दिखाएंगे?

डियर, संत जन बहुत पहले कह गए हैं, बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होय…! खैर, जो हुआ, सो हुआ. तुम बताओ कि तुम्हारे मन में कितने बताशे फूटे हैं? भइया लाल ने आंख नचाते हुए पूछा.

क्या कहूं दादा, गिनती नहीं कर पा रहा बताशों की. बस इतना समझिए कि अनगिनत यानी दिल भगवा-भगवा हो गया.

गुड, यह लो अपनी सच बयानी पर मेरा आशीर्वाद, कहते हुए भइया लाल ने मुझे दस रुपये का नोट पकड़ा दिया.