संकट में भारतीय बासमती

ओपिनियन पोस्ट ब्यूरो

सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने के प्रयास में लगी है तो यूरोपियन संघ के एक निर्णय ने बासमती धान उत्पादक किसानों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। भारतीय बासमती चावल पर यूरोपियन संघ ने पहली जनवरी से रोक लगा दी है। उसका तर्क है कि चावल में फफूंदनाशक की मात्रा ज्यादा है जिससे उसे खाने वाले को कैंसर होने का खतरा है। अब यदि यह रोक जारी रहती है तो बासमती से प्रति क्विंटल औसतन 3500 रुपये तक कमाने वाले किसान को इसका आधा दाम भी मिलना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि इस धान का भाव निर्यात पर निर्भर करता है। इस रोक के बाद अब यूरोप में पाकिस्तान के चावल की दखल बढ़ सकती है। भारत बासमती चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है। विश्व की 70 प्रतिशत बासमती चावल की उपज भारत में ही होती है। भारत के बाद पाकिस्तान का नंबर आता है। भारतीय चावल पर यदि रोक लगती है तो सीधा लाभ पाकिस्तान को मिलेगा। 2015-16 में भारत ने 22,727 करोड़ रुपये के 40.05 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया जिसमें से 1,930 करोड़ रुपये (तीन अरब डॉलर) के 3.8 लाख टन यूरोपीय संघ के देशों में गया।

रोक की वजह
बासमती में ब्लाइट बीमारी की रोकथाम के लिए ‘ट्राइसाइक्लाजोल’ नामक फफूंदनाशक (फंगीसाइड) का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। उसे अमेरिकी कंपनी ‘डॉव केमिकल्स’ बनाती है। यह दवा सस्ती, इस्तेमाल में सरल और बहुत कारगर मानी जाती है। दिक्कत यह है कि दवा चावल के दानों में भी चली जाती है। नियम यह था कि दानों में दवा की मात्रा 1.0 पीपीएम (पार्टिकल पर मिलियन/ प्रति 10 लाख पर 1 कण) से अधिक नहीं होना चाहिए। यूरोपीय संघ का कहना है कि भारतीय चावल में दवा की मात्रा तय सीमा से ज्यादा है। यदि इस चावल को देर तक खाया जाए तो इससे कैंसर होने का खतरा रहता है।

आ सकती है भारी दिक्कत
किसान : हरियाणा और पंजाब में 60 फीसदी जमीन में बासमती की खेती होती है। बासमती धान मिलर्स खरीदते हैं, जिसका चावल बना कर निर्यात किया जाता है। 70 फीसदी चावल निर्यात होता है। अब यदि बासमती चावल के निर्यात में दिक्कत आती है तो किसान मोटे धान की खेती करेंगे। इसमें खर्च भी ज्यादा आता है। बासमती के मुकाबले इससे कमाई भी कम होती है।
मिलर्स : पंजाब व हरियाणा में प्राइवेट मिलिंग में 70 फीसदी काम बासमती चावल का हो रहा है। यदि निर्यात पर असर पड़ेगा तो इनका धंधा भी मंदा होने के आसार बन जाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो चावल उद्योग तबाह हो सकता है। दिक्कत यह है कि घरेलू बाजार में बासमती चावल की मांग तो है लेकिन इसके रेट अंतरराष्ट्रीय बाजार से ही तय होते हैं। निर्यात बंद होने से घरेलू बाजार में दाम बहुत कम हो सकते हैं।

क्यों है दिक्कत
बासमती चावल के बड़े उत्पादक अमृतसर के किसान हरबंस सिंह ने बताया कि अभी तक किसानों को यही नहीं समझाया गया कि दवा का स्प्रे करना कैसे है। इसके लिए उन्हें क्या सुरक्षा इंतजाम करने हैं, जिससे चावल में दवा न जाए। कई बार तो जरूरत न होने पर भी दवा स्प्रे कर देते हैं। हमें संघ को कोसने की बजाय अपने किसानों को इसके लिए तैयार करना चाहिए। किसानों के विशेष प्रशिक्षण होने चाहिए जहां उन्हें सिखाया जाए कि कैसे वे ठीक प्रकार से स्प्रे कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिकों को भी इसके लिए आगे आना चाहिए। 

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