कांग्रेस को नुकसान का मुझे अफसोस रहेगा

अपने बयानों को लेकर अकसर विवादों में रहने वाले मणिशंकर अय्यर ने गुजरात चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस के लिए नई मुसीबत पैदा कर दी। दरअसल, अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का प्रयोग किया। चुनाव के समय ऐसी गलती विपक्षी दल के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं होती। नतीजतन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा ने इस बयान को गुजराती अस्मिता से जोड़ दिया। कांग्रेस ने भी सियासी तकाजा समझते हुए वक्त जाया किए बगैर अपने बड़बोले नेता को उसी दिन (7 दिसंबर) पार्टी से निलंबित कर कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया। उनके निलंबन से कुछ घंटे पहले ही अभिषेक रंजन सिंह ने उनसे बातचीत की थी।

आपने प्रधानमंत्री के लिए अपशब्द का प्रयोग किया, क्या आपको नहीं लगता कि कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा?
अव्वल तो यह कि मैं हिंदी भाषी नहीं हूं और हिंदी बोलने के लिए पहले अंग्रेजी में सोचता हूं। हां, यह सही है कि मैंने प्रधानमंत्री के लिए नीच शब्द का प्रयोग किया लेकिन मैंने यह नहीं कहा कि वह नीच जाति से हैं। हिंदी मेरी भाषा नहीं और काफी मेहनत से मैंने इसे सीखी है। चूंकि मैं मैकाले की औलाद हूं, इसलिए मैंने अंग्रेजी के ‘लो’ शब्द का तर्जुमा ‘नीच’ शब्द में किया। अब अगर नीच का मतलब लो बोर्न भी होता है तो मैं इसके लिए खेद जाहिर करता हूं। इसी तरह का एक और वाकया हुआ था। किसी पत्रकार ने मुझसे प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी साहब के बारे में पूछा था। मैंने कहा कि वह एक लायक आदमी हैं लेकिन नालायक प्रधानमंत्री हैं। फिर क्या था, इसे लेकर तमाशा खड़ा हो गया। मैंने हामिद अंसारी साहब से इसका मतलब पूछा तो मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मेरा यकीन करें प्रधानमंत्री मोदी को नीच जाति का कहने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मेरे इस बयान से गुजरात चुनाव में कांग्रेस को कोई हानि होती है तो इसका मुझे अफसोस रहेगा।

आप ऐसे विवादित बयान चुनाव से ठीक पहले ही क्यों देते हैं? लोकसभा चुनाव से पहले भी नरेंद्र मोदी को चाय वाला कहकर आप कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर चुके हैं?
मैंने प्रधानमंत्री के लिए नीच शब्द का प्रयोग क्यों किया उन वजहों को भी जानना आवश्यक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह कहना कि कांग्रेस डॉ. आंबेडकर के बारे में कुछ नहीं जानती और पार्टी ने हमेशा उनका अपमान किया, यह सरासर गलतबयानी है। आंबेडकर साहब के नाम पर एक भवन बनाया गया है। उसके उद्घाटन में इस प्रकार की बात करना क्या सही है? जब हमारा संविधान बन रहा था उस समय यह प्रस्ताव आया कि इसके मसौदे के लिए डॉ. आंबेडकर को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसे माना। डॉ. भीमराव आंबेडकर ने हमारा पूरा संविधान तैयार किया। उसमें कुछ चर्चा और संशोधनों के पश्चात उसे स्वीकार किया गया। यह हमारे लिए गर्व की बात है कि संविधान निर्माण की शुरुआत तब हुई जब पंडित नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। दूसरी बात, डॉ. आंबेडकर 1942 से हिंदू कोड बिल तैयार कर रहे थे। उनका कहना था कि स्वतंत्र भारत में इसे लागू करना एक बड़ी उपलब्धि होगी। पंडित नेहरू ने उनसे कहा कि हम इसे लागू करने का प्रयास करेंगे। 1952 में यह विधेयक पारित हुआ और कानून बना। लेकिन मोदी जी की पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बुजुर्गों ने उस वक्त (1947 में) यह कहा कि जब हमारे देश में मनुस्मृति है तो संविधान की क्या आवश्यकता है। अब मोदी जी उनके वारिस होने के नाते भवन का उद्घाटन करने जाते हैं तो कहते हैं डॉ.आबेडकर और कांग्रेस के बीच क्या रिश्ता है?

क्या आपको उम्मीद है कि इस बार गुजरात में कांग्रेस के लिए नतीजे बेहतर रहेंगे?
निश्चित रूप से हमें पूरा विश्वास है कि गुजरात में कांग्रेस भाजपा पर हावी होगी और पार्टी की जीत होगी। अगर इत्तेफाकन कांग्रेस की जीत नहीं होती है फिर भी पिछली बार के मुकाबले भाजपा के सीटों में कमी आएगी।

कांग्रेस आज जहां खड़ी है उसका भविष्य क्या है?
कांग्रेस का भविष्य उज्जवल है। जिन मुश्किलात का सामना पार्टी आज कर रही है, वर्ष 1967 से ऐसी चुनौतियों का सामना करती रही है। यह सही है कि 1962 तक जो लोग यह सोचकर वोट डालते थे कि वोट करना है तो कांग्रेस को ही करना है वो जमाना खत्म हो गया है। साल 2004 में सोनिया गांधी ने एक महान व्यक्ति अटल बिहारी वाजपेयी जी को हराया था। यह संभव हुआ था तमाम सेक्युलर फोर्सेस को एकजुट करके। मुझे पूरी उम्मीद है कि ऐसी ही रणनीति और राजनीति करके 2019 में कांग्रेस मोदी राज को खत्म कर पाएगी।

कांग्रेस के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव अब तक की सबसे बड़ी हार थी। साढ़े तीन साल हो गए, क्या पार्टी के अंदर कोई मंथन हुआ कि कहां चूक हुई और उसे सुधारने के लिए क्या प्रयास किए गए?
जिसको इतना बड़ा चोट पड़ता है वह सोचेगा नहीं क्या? वह विचार नहीं करेगा क्या? मेरे ख्याल से 2004 में गठबंधन था इसलिए कांग्रेस जीती और 2014 में गठबंधन नहीं रहा इसलिए पार्टी की हार हुई। 2019 के चुनाव में हम लोग महागठबंधन बनाएंगे और भाजपा को शिकस्त देंगे।

अगर आपको कांग्रेस की स्थिति में सुधार के लिए पांच सुझाव देने हों तो वे क्या होंगे?
एक सुझाव का जवाब दिया गया है, राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी कर। हमें पता होना चाहिए कि अगले चुनाव में किसके नेतृत्व में हम चुनाव लड़ेंगे। दूसरा, हमने देखा है कि राहुल जी पार्टी को नीचे के स्तर से मजबूत करना चाहते हैं। इस दिशा में कदम उठाए गए हैं। मिसाल के तौर पर मेरे संसदीय क्षेत्र में चालीस हजार लोगों ने अपना फोटो और हस्ताक्षर देकर कहा है कि वे कांग्रेस समर्थक हैं। ऐसा पहले कभी हुआ नहीं था। इसी से मुझे लगता है कि तमिलनाडु जैसे राज्य में जहां हार लाजिमी है, वहां चालीस हजार लोग अपनी फोटो और हस्ताक्षर देकर कहें कि हम कांग्रेस का समर्थन करेंगे यह बड़ी चीज है। बिल्कुल जमीनी स्तर पर कांग्रेस को मजबूत किया जा रहा है। इस काम को आगे बढ़ाने का काम राहुल जी कर रहे हैं। तीसरी चीज यह है कि देश बदल रहा है, दुनिया बदल रही है, आपको नए सवाल उठाने पड़ेंगे। हालांकि पार्टी के जो बुनियादी सिद्धांत हैं वो कायम रहेंगे। मिसाल के तौर पर जब हम स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन चला रहे थे तब हम एक लोकतंत्र बनेंगे या नहीं? वह अहम सवाल था। उस सवाल का जवाब तो सत्तर साल पहले दे चुके हैं लेकिन आज क्या कहेंगे? यह कहना कि हां लोकसभा और विधानसभाओं में जम्हूरियत तो आ चुकी है लेकिन पंचायतों में आई है क्या? एक हद तक राजीव जी के कारण तकरीबन बत्तीस लाख पंचायत प्रतिनिधि हैं। लेकिन उन्हें सशक्त करने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। आज का जवाब है कि कुछ राज्यों में हुआ है और कुछ राज्यों में होना है। पंचायती राज को और मजबूत करना लोकतंत्र के लिए चुनौती है। चौथा है सेक्युलरिज्म, उसकी एक परिस्थिति थी जब देश का विभाजन हुआ। आज जो व्यक्ति वोट डाल रहा है उसे पता ही नहीं है कि उस जमाने में क्या हुआ था। 1947 में जो हुआ उसका एक अलग जवाब देने की जरूरत है कि किसी का तुष्टिकरण नहीं हुआ है।

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पार्टी को कितना फायदा होगा? गांधी परिवार से बाहर नेतृत्व तलाश नहीं करना पार्टी की ताकत है या कमजोरी?
पार्टी में नया जोश आ गया है। इसका असर गुजरात में साफ देखा जा सकता है। कांग्रेस की चाहत का नतीजा है राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना। हमें उन पर पूरा विश्वास है। यदि यह विश्वास नहीं होता तो जैसा कि इंदिरा गांधी के जमाने में सिंडिकेट ने उन्हें पार्टी से निकाला और फिर इमरजेंसी के बाद दोबारा पार्टी से निकाला, तब भी वह जीतती रहीं। इसलिए हमने तय किया है कि राहुल जी को बनना चाहिए हमारा नेता। इस सिलसिले में किसी कांग्रेसी ने नहीं सोचा कि किसी और को अध्यक्ष बनना चाहिए। राहुल जी ने खुलेआम बताया कि कोई भी उनके खिलाफ लड़ना चाहता है तो उसका स्वागत है लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। यह पार्टी की एकता है।

राज्यों में संगठन और नेतृत्व को मजबूत किए बगैर केंद्रीय नेतृत्व कैसे मजबूत होगा?
आपका कहना बिल्कुल दुरुस्त है। मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूं। कुछ राज्य हैं जहां कांग्रेस मजबूत है इसलिए केंद्रीय संगठन को इससे काफी सहारा मिलता है। लेकिन कुछ ऐसे राज्य हैं, मिसाल के तौर पर तमिलनाडु, जहां पिछले कुछ वर्षों से पार्टी काफी बलहीन हो गई है। लिहाजा वहां की इकाई केंद्रीय नेतृत्व पर निर्भर है। लेकिन केंद्रीय नेतृत्व तमिलनाडु कांग्रेस की अपेक्षा पूरी करने में असमर्थ है। इसे बदलना होगा और इसका तरीका यह है कि कांग्रेस को जमीनी स्तर और बूथ लेबल पर काम करना होगा। साथ ही यह देखना होगा कि कौन कार्यकर्ता कांग्रेस का परचम लिए संगठन को मजबूत करने और आगे बढ़ने को तैयार है। ऐसे लोगों को तलाशना होगा और उन्हें प्रोत्साहित करना होगा। मेरे संसदीय क्षेत्र में जहां बमुश्किल चालीस कांग्रेसी कार्यकर्ता नहीं दिखते थे आज वहां हजारों की संख्या में कार्यकर्ता संगठन के लिए काम कर रहे हैं। इसका श्रेय मैं राहुल गांधी को देना चाहूंगा।

प्रधानमंत्री पर की गई विवादित टिप्पणी के बाद कांग्रेस ने आपको निलंबित कर दिया है। अब आगे की क्या रणनीति होगी?
कांग्रेस से निलंबित किए जाने की खबर मुझे मीडिया के जरिये ही मिली। मैं पार्टी के समक्ष अपना स्पष्टीकरण दूंगा। फिलहाल आगे की किसी प्रकार की रणनीति या योजनाओं के बारे में नहीं सोचा है।

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