उमेश सिंह
पच्चीस बरस पहले 6 दिसंबर,1992 को जननायक राम के आंगन में ज्वार आया था। भावनाओं का तूफान ऐसा कि विवादित इमारत कुछ ही घंटों में ध्वंसावशेष में तब्दील हो गई। मलबे में तब्दील अवशेष कहां गए पता भी नहीं चला। जिसके कंधों और बाजुओं में जैसी ताकत, वह उसी हिसाब से उसे उठा ले गया। हिंदू पक्ष ने कहा कि यह इमारत कलंक का टीका थी तो मुस्लिम पक्ष ने संविधान और कानून की अवज्ञा बताया। अयोध्या में तो तूफान के बाद शांति कायम हो गई लेकिन देश-विदेश में इस घटना की जबरदस्त हलचल रही। तभी से हर छह दिसंबर को दोनों पक्ष खुशी और गम का इजहार करते रहते हैं। वक्त बीतने के साथ मंदिर-मस्जिद मुद्दा आदमकद हो गया लेकिन अयोध्या कमोबेश जस की तस रही। वैसे तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने राग अलापे लेकिन अयोध्या तो सामान्य दिनों की तरह अपनी ही मस्ती में इस छह दिसंबर को भी रही। अपनी ही धूनी में रमी रही।

विवाद के ढाई दशक पर हम गौर करें तो इस दौरान अयोध्या सिसकी भी और चहकी भी। धर्मनगरी रुकी, ठहरी, बेबस और उदास सी भी दिखी। रामकोट उजड़ गया, रामघाट बस गया। चर्चा पूरी दुनिया में पर अयोध्या के पास अपना बस स्टेशन तक नहीं है। अस्पताल तो है लेकिन वह खुद बीमार है। रामकोट में ही रामलला का विवादित गर्भगृह है। रामकोट स्थित रंग जी का मंदिर, रामकृष्ण मंदिर, अमांवा मंदिर, श्रृंगार भवन, आनंद भवन, लवकुश मंदिर, कैकेयी कोपभवन, सीता रसोई, रामनिवास मंदिर, राम खजाना, मानस भवन और रंगमहल आदि अधिग्रहीत क्षेत्र में चले जाने के कारण रामलला लोहे के बाड़ में कैद हो गए हैं। कभी अयोध्या की ये पहचान थे लेकिन अब ये मंदिर सन्नाटा बुनने को बेबस हो गए हैं। ढाई दशक पहले रामघाट की जमीनें खाली थी। वहां घास-फूस ज्यादा था लेकिन अब यह क्षेत्र चहकने लगा है। यहीं पर रामजन्म भूमि न्यास की कार्यशाला है जहां मंदिर निर्माण के लिए पिछले 27 वर्ष से संगतराशी का कार्य चल रहा है।

अयोध्या मंदिरों का नगर है। दर्जनों मंदिर जर्जर स्थिति में हैं। वर्ष 2016 में सावन मेला के समय तुलसीनगर क्षेत्र में जर्जर यादव मंदिर की छत अचानक ढह गई। दो श्रद्धालु मार गए और चार घायल हो गए। इसके बाद प्रशासन हरकत में आया तो उसने जर्जर मंदिरों की सूची बनाई जिसमें 174 मंदिर/घर शामिल हैं। गोलाघाट में 10, विद्याकुंड में 17, कजियाना में 14 मकान और मंदिर जर्जर स्थिति में हैं। इन मंदिरों में ऊर्दू बाजार का जेतानाथ मंदिर व मठिया मंदिर, मनिकापुर हाउस, बाबू बाजार का अयोध्या राज मंदिर, वासुदेव घाट का पत्थर मंदिर, मीरपुर का बेतिया मंदिर आदि हैं। प्रदेश की नई सरकार हजारों करोड़ की सौगात देकर अयोध्या को विकास की रोशनी से जगर-मगर करने की कोशिश कर रही है लेकिन अभी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। हनुमानगढ़ी दर्शन को जा रहे हैदरगंज शुकलहिया के मणींद्र शुक्ल से ज्यों ही छह दिसंबर के बारे में पूछा तो कहने लगे, ‘पुलिस की गाडियां देख व सायरन की आवाज से पता चला कि आज ही छह दिसंबर है।’

विवादित ढांचा विध्वंस की 25वीं बरसी पर अयोध्या पर वही रंग एक बार फिर चढ़ाने की कोशिश हुई जो पिछले कई बरसों से हर छह दिसंबर को चढ़ाने का प्रयास होता रहा है। जहां एक ओर हिंदूवादी संगठनों ने शौर्य संकल्प सभा के जरिये अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संकल्प को दोहराया और रात को दीया जलाकर खुशी मनाई, वहीं मुस्लिम संगठनों ने यौमे गम और काला दिवस मनााया। एक मामले में इस साल छह दिसंबर थोड़ा अलग रहा। पहली बार बजरंग दल ने सड़क पर विजय जुलूस निकाला। विहिप ने कारसेवकपुरम में शौर्य संकल्प सभा का आयोजन किया जिसमें राम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास ने कहा, ‘केंद्र व प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है। अगर अब मंदिर निर्माण में ढिलाई बरती गई तो इसका परिणाम भाजपा को भुगतना होगा। 25 बरस पहले कारसेवा के जरिये लोगों ने हिंदुओं के माथे पर लगे कलंक को मिटा दिया था। यहां ढांचे का कोई भी अंश रह जाता तो सरकार फिर मस्जिद बना देती। इसलिए वे अपने साथ यहां की एक-एक र्इंट उठा ले गए। अब तो हमारी ही सरकारें हैं। ढिलाई नहीं होनी चाहिए क्योंकि ऐसा समय बार-बार नहीं आता है। कोर्ट का हम सम्मान करते हैं लेकिन कोर्ट को भी जनता की भावनाओं को समझना चाहिए।’
दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास ने मंदिर निर्माण के लिए वर्ष 2018 का समय भी तय कर दिया। उन्होंने कहा, ‘विश्व की कोई भी शक्ति राम मंदिर का निर्माण नहीं रोक सकती। हमारा इतिहास और वेद शास्त्र कहता है कि यह राम की जन्मभूमि है।’ दूसरी ओर बाबरी मस्जिद के पैरोकार हाजी महबूब अली के घर आयोजित यौमे गम में मुस्लिम उलेमाओं ने प्रधानमंत्री से मांग की कि वे सबका साथ-सबका विकास के नारे को सच साबित करें और मुसलमानों को इंसाफ दिलाएं। अयोध्या के बेनीगंज मोहल्ले में इंडियन मुस्लिम समाज ने बैठक कर गम का इजहार करते हुए बाबरी मस्जिद को फिर उसी जगह पर तामीर किए जाने की मांग की।

उर्वर जमीं पर हर कोई रीझा
प्राचीन अयोध्या विवाद से बर्बाद हुआ तो नवीन क्षेत्र आबाद हुआ। अयोध्या नगरी ऐसी है जिसमें विराट संभावनाएं हैं। विकास की, अध्यात्म की, धर्म की, ध्यान की, योग की, तप की, विरक्त की, गृहस्थ की, सभ्यता-संस्कृति परंपरा की, पर्यटन की और राजनीति की भी। यानी यहां की जमीं उर्वर है। यही कारण है कि इस जमीं से कौन नहीं रीझा। हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख, मुस्लिम सब इसके आंगन में पले-बढ़े। संस्कृति-सभ्यता-संस्कार-सरोकार से हर युग में बंधी रही और उसे तत्कालीन युगधर्म के अनुसार प्रकाशित भी करती रही। सांस्कृतिक शहर बनने की इसमें असीम संभावनाएं हैं। लेकिन उन संभावनाओं को संवेदनशीलता के साथ सतह पर लाने की ईमानदार कोशिश नहीं हुई। काशी, मथुरा, उज्जैन सब बढ़ चले लेकिन अयोध्या ठिठकी-ठहरी है, उदास-बेबस है। त्रेतायुग में राम पैदा हुए जिन्हें वनवास दे दिया गया। कलियुग के राम को सियासत ने दूसरा वनवास दे दिया। त्रेता के राम तो जंगल से अयोध्या लौट आए लेकिन आज के राम लोहे के बाड़ में कैद होकर रह गए हैं। तिरपाल के नीचे रह रहे हैं। एक किस्म से वे वनवासित ही हैं।

राम भारतीय संस्कृति की मानस की रचना करते हैं, जनमानस को मथते हैं। राम बहुरूपधारी हैं। सबके अपने-अपने राम हैं। तुलसीदास के अपने, वाल्मीकि के अपने। कबीर तो कहते हैं, ‘दशरथ सुत तिहुं लोक बखाना, राम नाम का मरम न जाना।’ शायर कैफी आजमी के राम को तो अयोध्या ने दूसरा वनवास दे दिया। कवि कुंवर नारायण के राम का साम्राज्य तो एक विवदित स्थल में सिमट कर रह गया है तथा विभीषण किसके साथ है राम को यह भी पता नहीं है। अयोध्या इस समय राम की अयोध्या नहीं है, यह योद्धाओं की लंका है। मानस राम का चरित नहीं, चुनाव का डंका है। फिलहाल जननायक राम तो असंभव में संभव है। वह विरोध का समन कर देते थे। राम जीवन भर अंधियारा पीते रहे और रोशनी उगलते रहे। वह विपरीत परिस्थितियों में संभावनाओं की तलाश कर लेते हैं। राम का जीवन साधनामय था, तपोमय था। राम ने आदिवासी समाज को उस युग में मुख्य धारा से जोड़ा। उन्होंने आदिवासी समाज से ही नए-नए नायकों को गढ़ा था। वर्तमान दौर में आखिर वे कौन से दल या व्यक्ति हैं जो गढ़ रहे हैं, जो रोशनी उगलने के लिए अंधियारा पीने का साहस कर रहे हैं।