रमेश कुमार ‘रिपु’

माओवादियों की हिंसा अब कई रूपों में देखने को मिल रही है। इस बात को स्पेशल डीजी (नक्सल आॅपरेशन) डीएम अवस्थी भी मानते हैं, लेकिन यह कहने से नहीं चूकते कि आॅपरेशन प्रहार से माओवादियों के खेमे हलचल है। मीडिया को बता रहे थे कि आॅपरेशन प्रहार-2 के नाम से शुरू इस आॅपरेशन में जिला पुलिस, आरक्षित पुलिस और विशेष पुलिस ने नारायणपुर जिले में माओवादियों के अलग अलग ठिकाने पर हमला कर एक महिला सहित छह माओवादियों को मार गिराया। अबूझमाड़ क्षेत्र में माओवादियों के बड़े लीडरों की मौजूदगी की सूचना मिलने पर इस आॅपरेशन को अंजाम दिया गया था। अभी तक नारायणपुर के बीहड़ों में माओवादियों के खिलाफ अभियान नहीं चलाया गया था। इसके पहले सुरक्षा बलों ने जून 2017 में प्रहार-1 चलाया था, जिसमें 20 से ज्यादा माओवादी मारे गए थे। जनवरी 2017 से लेकर अब तक 68 माओवादी मारे जा चुके हैं। बरसात का महीना खत्म हो जाने के बाद 6 नवंबर को सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर और नारायणपुर में आॅपरेशन प्रहार-2 लॉन्च किया गया। नारायणपुर और दंतेवाड़ा जिले में दो हजार से अधिक जवान मोर्चे पर हैं। नक्सल आॅपरेशन के डीजी डी.एम. अवस्थी जवानों के हौसले और उनकी बहादुरी से निश्चय ही बेहद खुश थे, लेकिन उनकी यह खुशी 24 घंटे भी नहीं रही।

तीन घायल, एक की मौत
दंतेवाड़ा जिले के वाल्टेयर रेलवे डिवीजन के तहत बचेली रेलवे स्टेशन से सौ मीटर दूर दोपहर साढ़े बारह बजे हथियार बंद नक्सलियों ने आर.पी.एफ. के दो जवानों का गला धारदार हथियार से रेत दिया। जवान पी.एस. शिवा की मौके पर मौत हो गई जबकि आर.के. सिन्हा गंभीर रूप से घायल हो गए। उन्होंने भागकर किसी तरह अपनी जान बचाई। 8 नवंबर को सुकमा जिले के भेज्जी थाना के तहत रेगरगट्टा के जंगल में सर्चिंग पर निकली पुलिस को सूचना मिली कि माओवादी छिपे हुए हैं। पुलिस ने फायरिंग की तो जवाबी हमला माओवादियों ने भी किया। मुठभेड़ के दौरान पैर में गोली लगने से एस.टी.एफ. का जवान चेतन साहू घायल हो गया जिसे उपचार के लिए रायपुर लाया गया। कांकेर जिले के आमाबेड़ा थाना के तहत तापेनुर के जंगल में माओवादियों की मुठभेड़ में आरक्षक प्रदीप सोरी को भी पैर में गोली लगी।

छोटी छोटी वारदात बढ़ीं
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह कहते हैं कि ‘राज्य में नक्सलवाद अब खात्मे के करीब है।’ लेकिन देखा जाए तो माओवादियों ने छोटी छोटी हिंसक वारदात कर अपनी दहशत को बढ़ाने का नया तरीका इजाद किया है। बुरकापाल की घटना के बाद से माओवादियों से निपटने के तरीके के लेकर राज्य सरकार पर उंगलियां उठीं। और इसे बड़ा आतंकी खतरा माना गया। आॅपरेशन प्रहार 1 और 2 से लालगलियारे में खलबली मची लेकिन ऐसा नहीं लगता कि नक्सलवाद जल्द खत्म हो जाएगा। 13 नंवबर को जिला मुख्यालय बीजापुर से सात किलोमीटर दूर कोतवाली थाना क्षेत्र गोरना-मनकेली, पुसनार इलाके में 30-40 माओवादियों के होने की इंटलीजेंस को खबर मिली। सूचना पर फोर्स पुसनार इलाके में दाखिल हुई। फोर्स सर्चिंग के बाद साढ़े ग्यारह बजे के करीब लौट रही थी तो माओवादियों ने घात लगाकर हमला कर दिया। आधे घंटे की मुठभेड़ में जवानों को भारी पड़ता देख नक्सली भाग गए। मारे गए माओवादी मिल्ट्री प्लाटून के सदस्य हैं। एस.पी. मोहित गर्ग के अनुसार घटनास्थल पर और भी खून के धब्बे मिले हैं। कुछ और माओवादियों के भी मारे जाने या घायल होने की संभावना है।

नक्सली बदला लेने में आगे
देखा जा रहा है कि राज्य में माओवादियों और पुलिस की मुठभेड़ में यदि नक्सली मारे जाते हैं तो दो चार दिन में पुन: कहीं न कहीं वारदात होती है। नक्सली अपने साथियों के मारे जाने का बदला लेने में देर नहीं करते। जैसे 13 नवंबर को तीन नक्सली मारे गए तो 16 नंवबर को बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में झारखंड और छत्तीसगढ़ के बार्डर पर बुढ़ापहाड़ से लगे सामरी थाना के पीपरढाबा के जंगल में माओवादियों ने आईडी ब्लास्ट करने के बाद अंधाधुंध फायरिंग कर आठ जवानों को घायल कर दिया। हमले के बाद माओवादी भाग गए। छत्तीसगढ़ और झारखंड सीमा पर स्थित बूढ़ापहाड़ का जंगल माओवादियों का गढ़ माना जाता है। झारखंड और छत्तीसगढ़ पुलिस संयुक्त रूप से माओवादी उन्मूलन आॅपरेशन चला रही है। यहां बीच जंगल में माओवादियों का बेस कैंप हैं। फोर्स इस बेस कैंप तक न पहुंच सके इसलिए माओवादियों ने घने जंगल में चारों तरफ बारूदी सुरंग बिछा रखी है। जिससे फोर्स को अंदर घुसने में दिक्कत हो रही है। बस्तर में नक्सलियों के लाल गलियारे में पुलिस को घुसना अब टेढ़ी खीर है। बुरकापाल की घटना के बाद कुछ स्थानों में पुलिस ने आॅपरेशन प्रहार के तहत नक्सलियों के ठिकाने पर हमले किए हैं लेकिन नारायणपुर के अबूझमाड़ इलाके के अदंर कभी पुलिस नहीं गई। माओवादियों की अघोषित राजधानी चिंतलनार पर भी पुलिस ने अभी दस्तक नहीं दी है। जाहिर है कि लाल आतंक से मुकाबला आसान नहीं है। संपूर्ण विकास की उपेक्षा की वजह से नक्सलियों को ताकत मिल रही है।

माओवादी नहीं चाहते
माकपा नेता मनीष कुंजाम कहते हैं, ‘पिछले 14 साल से राज्य में नक्सलवाद है। आदिवासियों को संविधान की छठी अनुसूची के अधिकार मिल जाएं तो माओवाद की समस्या नहीं रहेगी।’ सरकार कारपोरेट घराने के इशारे पर फोर्स के बल का इस्तेमाल कर रही है। माओवादी नहीं चाहते कि जंगल, जमीन, पानी पर कारपोरेट घराने का अधिकार हो। सरकार कहती है कि माओवाद का खात्मा करीब है, लेकिन सच्चाई यही है कि यहां का आदिवासी माओवादियों के आगे बेबस है। जन अदालत लगाकर जिस तरह माओवादी सजा मुकर्रर कर देते हैं, उस पर न तो सरकार और न ही पुलिस रोक लगा सकी।

मंत्री, पत्रकार निशाने पर
नक्सली अलग अलग जगह अलग तरह की वारदात कर दहशत फैला रहे हैं ताकि पुलिस परेशान रहे। बीजापुर में 16 नंवबर को गुदमा से अडावली जाने वाली प्रधानमंत्री सड़क निर्माण कार्य में लगी ठेकेदार की जेसीबी और ट्रैक्टर को आग लगा दी गई। मुंशी ने विरोध किया तो नक्सलियों ने उसके साथ मारपीट भी की। 17 नवंबर को सुकमा जिले के कन्हईगुड़ा जंगल में नक्सली और एसटीएफ के बीच मुठभेड़ होने से आठ-आठ लाख के दो इनामी नक्सली मारे गए। करीब 20 की संख्या में नक्सली थे। कुछ नक्सलियों के घायल होने की संभावना है। इसी बीच नक्सलियों ने उन पत्रकारों को धमकी दी है जो गलत खबर प्रकाशित करते हैं। मंत्री महेश गागड़ा को पहले ही मारने की चेतावनी नक्सली दे चुके हैं। नक्सलियों ने पर्चे भी फेके हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब नक्सलियों के निशाने पर पत्रकार आए हैं। इस बीच पुलिस ने एक लाख के इनामी नक्सली कमांडर रतन और उसके साथी पीलू बेको और लक्ष्मण राम कश्यप को दंतेवाड़ा जिला के तहत मुचनार नाव घाट के पास बैनर लगाते हुए गिरफ्तार किया। बारसुर पुलिस के अनुसार जनमिलिशिया कामांडर रतन ग्राम तोड़मा थाना बारसूर का रहने वाला है। वह 2005 में माओवादी संगठन में जनमिलिशिया सदस्य के रूप में सक्रिय था। 2006 में टेटम बोदली के पास पुलिस पार्टी पर हुए हमले में भी शामिल था। वर्तमान में इन्द्रावती एरिया कमेटी में प्लाटून नंबर 16 में कार्यरत था। उसके खिलाफ स्थायी वारंट जगदलपुर कोर्ट से जारी किया गया है। इस पर एक लाख का इनाम है।

सरकार की सोच गलत : सोनी
समाजसेवी एवं आम आदमी पार्टी की नेत्री सोनी सोरी कहती हैं, ‘बंदूक से नक्सलवाद का हल नहीं निकल सकता। सरकार गलत सोचती है कि नक्सलियों के ठिकाने पर हमला करने से माओवादी भाग जाएंगे या फिर सरेंडर कर देंगे। सरकार को सभी को एक मंच पर लाने की कोशिश करनी चाहिए। इसमें छोटे से लेकर बड़े जनप्रतिनिधियों को शामिल किया जाना चाहिए। पहले भी तो बातचीत की गई थी, अब क्यों नहीं।’

जन अदालत में मौत
बांदे थानांतर्गत महाराष्ट्र सीमा से लगे ग्राम पीव्ही 111 निवासी अजीत पोद्दार (40 वर्ष) के घर हथियार बंद 20-25 नक्सलियों ने धावा बोला और उसे उठा ले गए। घर में उसकी पत्नी ही थी। घर से बाहर ले जाकर उसे गोली मार दी। मौके पर पर्चे भी फेंक गए। नक्सलियों ने पर्चे में लिखा है- ‘जुलाई 2017 में भी बैनर पोस्टर के माध्यम से युवक को चेतावनी दी गई थी वह कान्हारगांव पुलिस की मुखबिरी न करे।’ नक्सलियों ने यह भी लिखा है कि‘मृतक को वर्ष 2010 में भी जन अदालत लगा ग्रामीणों के समक्ष पुलिस के लिए मुखबिरी नहीं करने चेतावनी दी थी’

दरअसल माओवादी चुनौती से निपटने के लिए राज्य सरकार और केन्द्र सरकार को त्वरित कार्रवाई करने की दिशा में सोचना होगा। सुरक्षा बलों को अभूतपूर्व आक्रामक अभियान को गति को देनी होगी। साथ ही स्थानीय आदिवासियों को विश्वास में लेना होगा। लाल आतंक से मुकाबले के लिए सुरक्षा बलों को बेहतर हथियार देने के साथ वायु सेना के हेलीकाप्टरों का इस्तेमाल भी जरूरी हो गया है। सरकार को सुरक्षा अभियानों के साथ विकास कार्य को तरजीह देनी होगी। विकास योजनाओं में सुरक्षा को भी अहमियत देनी होगी। अन्यथा नक्सली दहशत के आगे सांसे दहशतजदा रहेंगी। अब वक्त आ गया है कि नक्सलवाद से निपटने के लिए व्यापक रणनीति बनाई जाए और उसे अंजाम भी दिया जाए।