गुजरात विधानसभा चुनाव में जहां पाटीदार, दलित और ओबीसी की चर्चा जोरों पर है, वहीं राज्य के आदिवासियों की चर्चा लगभग गौण है। जबकि गुजरात में आदिवासियों की संख्या पंद्रह प्रतिशत है। राज्य में अनुसूचित जनजातियों के लिए कुल सत्ताइस सीटें आरक्षित हैं जिनमें कांग्रेस के सोलह और भाजपा के ग्यारह विधायक हैं।

आदिवासी मतदाता कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते रहे हैं। लेकिन पिछले दो चुनावों से भाजपा यहां लगातार मजबूत हो रही है। इसकी दो वजहें हैं। पहला इन आदिवासी इलाकों में हुए विकास कार्य और दूसरा आदिवासियों के बीच आरएसएस की जबरदस्त पैठ। सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी के ने बताया, ‘गुजरात के आदिवासियों का जीवन स्तर बेहतर है। आदिवासी बहुल अन्य राज्यों के मुकाबले यहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क और यातायात पहले पहुंचा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कई बार यहां के गांवों का दौरा कर चुके हैं और इनके बीच सामूहिक भोजन भी।

माना जा रहा है कि पाटीदार आंदोलन से हुए नुकसान की भरपाई भाजपा दलित और आदिवासी क्षेत्रों में पूरा करेगी। इन इलाकों में आरएसएस की सक्रियता अधिक होने से धर्मांतरण लगभग समाप्त हो चुका है। भाजपा अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित इन सत्ताइस सीटों में कम से कम बीस सीटें जीतने का लक्ष्य रखी है। वहीं कांग्रेस को भरोसा है कि यहां उनकी सीटों में इजाफा होगा।’