अभिषेक रंजन सिंह।

बात चुनावों की हो और मुस्लिम मतदाताओं का जिक्र न हो भला ऐसा कैसे हो सकता है। बदकिस्मती से देश की दूसरी सबसे बड़ी इस कौम को चुनावी राजनीति में वोटबैंक से ज्यादा कुछ नहीं समझा गया। अपनी सुरक्षा के प्रति संजीदगी कहें या राजनीतिक दलों की महिमा, देश के मुसलमान इस गिरफ्त में फंसते चले गए। नतीजतन दूसरे धर्मों के बरक्स मुसलमानों की स्थिति कमजोर होती गई। गुजरात में मुसलमानों की कुल आबादी नौ फीसदी है और सूबे की पच्चीस सीटों पर इनका अच्छा प्रभाव है। देश में जब भी मुसलमानों का जिक्र आता है तो उनकी गरीबी, अशिक्षा और बेरोजगारी अहम मुद्दा होता है। लेकिन कई मामलों में गुजरात के मुसलमानों के हालात अन्य राज्यों के मुसलमानों से बेहतर है। यहां नौ फीसदी मुसलमान सरकारी नौकरियों में हैं। जबकि मुसलमानों में साक्षरता की दर सत्तर फीसदी है। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष सूफी महबूब अली चिश्ती इन आंकड़ों को अपनी सरकार की उपलब्धि करार देते हैं। उनके मुताबिक, ‘सांप्रदायिकता के नाम पर अब तक मुसलमानों के मन में भाजपा के प्रति खौफ पैदा किया गया। लेकिन मुसलमानों खासकर नई पीढ़ी के लोग इस धोखेबाजी को समझ चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मिली भाजपा को बड़ी जीत से यह बात साबित हो गयी है कि धर्म और जाति के नाम पर वोट लेने के दिन अब लद गए हैं। गुजरात में भाजपा को मुसलमानों का पूरा साथ है। साल 2010 के स्थानीय निकाय के नतीजों से सूफी महबूब अली चिश्ती की दलीलों को बल मिलता है। भाजपा ने उस चुनाव में 350 मुसलमानों को उम्मीदवार बनाया था, जिसमें 240 उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। गौरतलब है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में गुजरात की पच्चीस मुस्लिम बहुल सीटों में से भाजपा ने सोलह सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं 2015 के स्थानीय निकाय के चुनाव में भाजपा ने 350 मुसलमानों को टिकट दिया जिसमें 200 जीते। इस चुनाव में भाजपा को चालीस सीटों का नुकसान हुआ। इस चुनाव में भाजपा के लिए अपने मुस्लिम वोटों को बचाना एक बड़ी चुनौती होगी।

उधर कांग्रेस को उम्मीद है कि इस बार मुसलमानों का पूरा वोट उन्हें मिलेगा। कांग्रेस अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष गुलाब खान राउमा कहते हैं, ‘पार्टी के लिए इस बार सत्ता में आने का अच्छा मौका है। भाजपा से गुजरात की जनता काफी नाराज है और उनके लिए कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है। सूबे में भाजपा की उल्टी गिनती पाटीदार आंदोलन के बाद हुए ग्राम पंचायत के चुनावों में शुरू हो गई थी। जिला पंचायतों की जिन सीटों पर भाजपा काबिज थी, उन पर कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। उसी साल स्थानीय निकायों के चुनाव में भी भाजपा के चालीस मुस्लिम निगम पार्षदों की हार हुई। इससे साफ है कि थोड़े बहुत जो मुसलमान भाजपा के साथ थे अब उनका भी मोहभंग हो चुका है। जीएसटी के बाद तो गुजरात में भाजपा के खिलाफ लोगों का गुस्सा चरम पर है। इसकी वजह से कारोबारियों का बिजनेस तबाह हो गया और नौजवानों से उनका रोजगार छिन गया।’

अहमदाबाद निवासी कलीम सिद्दीकी एक एनजीओ इंसाफ फाउंडेशन के महासचिव हैं। उनका कहना है, ‘इस बार गुजरात का चुनाव न सिर्फ रोचक बल्कि कई मायनों में अहम साबित होने वाला है। कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्व का सहारा ले रही है। इसे राहुल गांधी के गुजरात में चुनावी दौरों और उनके मंदिरों में जाने को लेकर समझा जा सकता है।’ कांग्रेस के इस एजेंडे की तसदीक पार्टी के माइनॉरिटी सेल के अध्यक्ष गुलाब खान राउमा ने अपने बयानों से कर दी। उन्होंने कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं और कार्यकर्ताओं से चुनाव प्रचार के दौरान और मतदान के दिन अपने परंपरागत लिबास मसलन बुर्का और टोपी न पहनने की अपील की। उनके इस बयान से मुसलमानों में खासी नाराजगी है। उनका मानना है कि कांग्रेस हिंदुओं को लुभाने के लिए ऐसी बातें कर रही है। बकौल सिद्दीकी, ‘गुजरात में आरएसएस का मुस्लिम विंग मुसलमानों के बीच सक्रियता से काम कर रहा है। तीन तलाक के मुद्दे पर वे मुसलमान औरतों से संवाद स्थापित कर रहे हैं। भाजपा को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश की तरह गुजरात में भी उन्हें मुस्लिम औरतों का साथ मिलेगा।’