सिक्किम सीमा से मनोज कुमार।
यहां किसी को किसी की चिंता नहीं है। चाहे वह आपकी बगल में ही क्यों न बैठा हो। फिर भारत चीन और भूटान बार्डर तो यहां से 55 किलोमीटर दूर है।
एमजी रोड यानी महात्मा गांधी रोड। वैसे तो देश के ज्यादातर शहरों में महात्मा गांधी के नाम पर सड़कें हैं। पर यह एमजी रोड कुछ अलग है। रोड पर बापू की दो प्रतिमाएं भी हैं। एक आवक्ष प्रतिमा है तो दूसरी आदमकद। दोनों में बापू मुस्कुराते नजर आते हैं। बापू के स्वच्छता अभियान को यहां भली प्रकार आत्मसात किया गया है। जगह-जगह डस्टबिन लगे हैं। हर कोई कूड़ा उसी में फेंकता है। सड़कों के बीचोबीच फूलों की क्यारियां बनी हैं। उनमें अनगिनत फूल खिले हैं। लोग अलग-अलग एंगिल से इन फूलों के साथ तो कोई इन फूलों की तस्वीरें उतारता नजर आता है। सड़क पर वाहन पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। इसलिए बेखौफ होकर सड़क पर घूमते रहिए। एमजी रोड बहुत पुरानी सड़क है राजधानी गंगटोक की। पर साल 2008 में इसे नया रूप दिया गया। एमजी रोड का आधा हिस्सा नया बाजार कहलाता है। सड़कों के किनारे सुंदर फुटपाथ। रोशनी के लिए नक्काशीदार लाइटिंग। खाली जगहों पर पेंटिंग और म्यूरल्स। हलकी बारिश हो रही है, इसके बावजूद यह रोड गुलजार है। यहां किसी को किसी की चिंता नहीं है। चाहे वह आपकी बगल में ही क्यों न बैठा हो। फिर भारत चीन और भूटान बार्डर तो यहां से 55 किलोमीटर दूर है, इसलिए वहां के तनाव का यहां असर नजर नहीं आ रहा है। गौरखालैंड आंदोलन की वजह से सैलानियों की संख्या यहां बहुत कम है। स्थानीय लोग ही रोड पर टहल रहे हैं। उनसे ही इस तनाव पर बातचीत की।
अभी सोचा नहीं है
चीन के साथ बार्डर पर तनाव के बारे में जब बातचीत की तो वहां लोगों ने बताया कि इस बारे में सोचा नहीं है। यहां लोगों को यकीन है कि जंग होगी ही नहीं। रोड पर मुझे लामा मिले, उन्होंने बताया कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। इस तरह का तनाव तो यहां आम बात है। उन्होंने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। दिन का वक्त था और रोड पर पूरी चहल-पहल थी। हर कोई अपने में मस्त। मैंने यहां घूम रही लड़की शर्मिला से बातचीत की। उसने बताया कि कुछ सुना जरूर है लेकिन ज्यादा पता नहीं है। यह लड़की अंग्रेजी आॅनर्स कर रही थी। उसने बताया वह बौद्ध है, उसके साथ ही उसकी एक दोस्त गरेका राइ ने बताया कि नहीं लगता जंग होगी। लेकिन उसने साथ ही कहा कि यदि ऐसा होता है तो यहां के लोगों का क्या होगा? उसने मुझसे सवाल किया कि क्या हमें तब गंगटोक छोड़ना होगा। वह यह भी जानना चाह रही थी कि दिल्ली में इसे लेकर क्या हो रहा है। मैंने उन्हें कहा कि जंग में सिविलियन को कुछ नहीं कहते। उसने कहा कि यदि बम गिरेंगे तो फिर सिविलियन कैसे बचेंगे।
दिल्ली दो दिन तो बीजिंग मात्र पांच घंटे दूर
गंगटोक के उस छोटे से हाल में दिल्ली के खिलाफ विद्रोह के सुर बुलंद हो रहे हैं। एसकेएस यानी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा के 32 सांगा के विधायक सोनम लामा जब कहते हैं कि ‘दिल्ली से ज्यादा उनके नजदीक बीजिंग है’ तो वह उनका गुस्सा है। गुस्से की वजह यहां के बुद्धिस्टों की मांग है कि 17वें  तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी को सिक्किम में आने की इजाजत दी जाए। उन्हें यहां आने की इजाजत नहीं है। डोरजे इन दिनों धर्मशाला में रह रहे हैं। बुद्धिस्ट के चार सेक्ट होते हैं, इसमें एक सेक्ट है कागी सेक्ट। दोरजे को इसका सबसे बड़ा धर्मगुरु माना जाता है। करमापा को सिक्किम में न आने देने की वजह वह रिपोर्ट है जिसमें उन्हें चीनी एजेंट बताया गया था। तभी से उन पर देश में इधर-उधर जाने पर पाबंदी लगी हुई है। बाद में यह पाबंदी तो हटा दी गई, लेकिन अब भी उन्हें सिक्किम आने की इजाजत नहीं है। विधायक सोनम लामा ने कहा कि उनकी यह छोटी सी मांग है, जिसे अभी तक पूरा नहीं किया गया है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनका धर्म खतरे में है, दिल्ली को उनके जज्बात की कद्र ही नहीं है। ऐसे में उनके सामने क्या चारा है। इससे तो बेहतर है कि वे बीजिंग के साथ हो लें, कम से कम उनकी यह छोटी सी इच्छा तो पूरी हो ही सकती है।
विधायक ने बताया कि उनके गुरु 2000 में तिब्बत से भारत आए हैं। उन्होंने बताया हम पैसा नहीं मांग रहे, अलग स्टेट नहीं मांग रहे, बस यही मांग कर रहे हैं कि एक बार उनके गुरु को यहां आने देना चाहिए। उन्होंने बताया कि 17 साल में सरकार यह पता नहीं लगा पाई कि उनके गुरु चीन के एजेंट है या नहीं। यह तो हैरानी की बात है। अपनी इसी मांग को लेकर गंगटोक में रिले भूख हड़ताल चल रही है। यह हड़ताल 23 जुलाई को 377वें दिन में प्रवेश कर गई है। ऐसे समय में जब चीन और भारत में तनाव है, सिक्किम के बौद्धों का यह गुस्सा क्या रंग ले सकता है, इस पर सिक्किम सरकार के प्रवक्ता ने बताया कि हम इसमें क्या कर सकते हैं। यह तो केंद्र को देखना है। बौद्ध यहां 37 फीसदी हैं। इतने बड़े समूह को नाराज करना शायद इस तनाव भरे माहौल में सही नहीं होगा। लेकिन फिर भी करमापा पर जो आरोप हैं, उन्हें देखते हुए इस वक्त सिक्किम में उन्हें आने की इजाजत देना भी खासा मुश्किल काम है।