ग्राउंड रिपोर्ट 3-बार्डर पर बाबा, जिनसे चीनी सैनिक भी डरते हैं

सिक्किम सीमा से मनोज कुमार।
बाबा मंदिर के नाम से मशहूर है यह जगह, सिल्क रूट पर तकरीबन 13 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर। इस मंदिर में इंडियन आर्मी की गहरी आस्था है। कहते हैं बाबा की आत्मा भारत चीन सीमा पर फौजियों का मार्गदर्शन करती है। तो चीन के फौजी भी बाबा की शक्ति से कहीं न कहीं डरते हैं। गंगटोक से नाथूला के मार्ग पर सरथंग से बाबा मंदिर के लिए रास्ता बदलता है। वहां से नाथूला चार किलोमीटर है, जबकि पुराना बाबा मंदिर तकरीबन नौ किलोमीटर आगे है। ऐसा कहा जाता है कि चीनी सैनिक बाबा से डरते हैं। यही वजह है कि वे यहां से आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकते। बाबा का खौफ चीनी सैनिकों में इतना है कि सामान्य दिनों में वे इस बारे में अक्सर चर्चा करते हैं। एक सैनिक ने बताया कि अभी भी बाबा की छाया बार्डर पर पेट्रोलिंग करती है। मंदिर में सैनिकों की भारी भीड़ है। एक फौजी बहुत सारा हलवा बनवा कर बाबा के मंदिर में आता है। वह पूजा करता है। वापसी में इस हलवे को बाबा के यहां बाकी प्रसाद में मिला देता है।
कौन हैं ये बाबा
ये बाबा हरभजन सिंह हैं। बाबाजी पंजाब के कपूरथला जिले के बारंदोल गांव पैदा हुए थे। वे 1966 में पंजाब रेजिमेट में बतौर सिपाही भर्ती हुए। चार अक्टूबर 1968 को सिक्किम में नाथूला इलाके में तैनाती के दौरान भयानक प्राकृतिक आपदा आई। भारी बारिश और चट्टान खिसकने से काफी लोगों की जान चली गई। इस समय सिपाही हरभजन सिंह अपने खच्चर कारवां को लेकर जा रहे थे। यह कारवां टुकला से डेंगचुला जा रहा था। इस दौरान हरभजन सिंह एक तेज बहती जलधारा में बह गए। पांच दिनों तक उनका पता नहीं चला। वे साथी प्रीतम सिंह के सपनों में आए। अपने बारे में बताया कि वे कहां दबे हैं। बाद में तलाशी पर उनका शव वहीं मिला। उन्होंने अपनी समाधि बनाने की इच्छा भी जताई थी। बाद में उनके साथियों ने उनकी इच्छा के मुताबिक चोकियाको में उनकी समाधि बनवाई। तब से बाबा सीमा पर खतरनाक गतिविधियों के बारे में फौजियों को सपने में आकर बताते हैं।
जब तक बाबा सर्विस में रहे उन्हें नियमों के मुताबिक छुट्‌टी मिलती थी। बाबा जी छुट्टी पर घर आते थे। उनके लिए ट्रेन में तीन बर्थ बुक हैं। वे दो महीने गांव में छुट्टी काटते हैं फिर वापस सिक्किम में नाथूला सीमा पर डट जाते हैं। बाबाजी तो इस दुनिया में रहे नहीं पर अनूठी आस्था है कि भारतीय थल सेना उन्हें वेतन भी देती थी और छुट्टी पर घर भी भेजती थी। साल 2008 में बाबा जी रिटायर हो गए तो अब उनकी पेंशन लग गई है। अब उनके छुट्टी पर घर जाने का सिलसिला रुक गया है।
बाबा मंदिर में बाबा जी की समाधि, बाबा जी का बंकर बना है। बंकर में उनका बिस्तर लगा है। उनके कपड़े, जूते आदि रखे हैं। देश भर से आने वाले लोग श्रद्धा से शीश नवाते हैं। चौदह हजार फीट पर जिंदगी कितनी मुश्किल होगी मैं इसका अनुमान लगाता हूं। दोपहर के बाद बफीर्ली हवाएं चलने लगती हैं।
वैसे का वैसा ही रखा है बाबा का सामान 
मंदिर में बाबा का आफिस है, सोने का कमरा है। एक स्टोर रूम है जिसमें उनका सामान रखा गया है। बाबा की आरती के पोस्टर वहां लगे हुए हैं। सैनिकों को इस बार भी उम्मीद है कि चीन की ओर से कोई भी ऐसी घटना नहीं हो सकती, जो उन्हें नुकसान पहुंचा सके। बार्डर जाने वाली टुकड़ी यहां रुक कर बाबा का आशीर्वाद लेना नहीं भूलती। वे यहां रुकते हैं, पूजा करते हैं। इसके बाद ही आगे बढ़ते हैं।

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