प्रो. अरुण कुमार
बड़े नोटों को बंद करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 8 नवंबर का फैसला हैरान करने वाला था। प्रधानमंत्री की यह दलील कि यह कालेधन पर हमला है, बतौर अर्थशास्त्री मैं इससे कतई इत्तेफाक नहीं रखता। इस फैसले से कितना कालाधन वापस आएगा यह तो दूर की कौड़ी है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि आने वाले कुछ महीनों में देश की सफेद अर्थव्यवस्था तबाह हो जाएगी। फिलहाल देश की आम जनता खासकर किसान और मजदूर जिन्हें इस वक्त अपने खेतों में होना चाहिए, वे बैंक के सामने कतार में खड़े हैं। आज जो 16 लाख करोड़ रुपये के करेंसी नोट चलन में हैं, उनमें करीब 80 फीसद हिस्सा बड़े नोटों का है। इन बड़े नोटों में से ज्यादातर हिस्सा कारोबारियों के पास है न कि आम लोगों के पास। अगर मान भी लिया जाए कि बड़े नोटों का ज्यादातर हिस्सा संपन्न लोगों, जो समूची आबादी के तीन फीसद हैं उनके पास भी यह तीन लाख रुपये प्रति व्यक्ति से अधिक नहीं होगा।
अगर इसका ज्यादातर हिस्सा कारोबार में है तो प्रति व्यक्ति एक लाख रुपये से ज्यादा राशि नहीं होगी। इसका मात्र एक हिस्सा कालाधन होगा, जिसे काली आमदनी के जरिए पैदा किया गया और जिसका पता नहीं लगाया जा सकता। भले ही ये औसत हों लेकिन कई लोगों के पास करोड़ों का कालाधन हो सकता है। लेकिन संभव है कि नकदी में रखी गई काली बचत कुछ लाख करोड़ से ज्यादा न हो।
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