प्रदीप सिंह

चुनौती हमेशा अवसर लेकर आती है। ऐसे अवसर का भरपूर लाभ उठाना ही समझदारी है। विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी की चुनौती से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को नकदीमुक्त अर्थात कैशलेस व्यवस्था की ओर ले जाने का आह्वान किया है। ऐसे संकट सबके लिए कुछ न कुछ करने का अवसर लेकर आते हैं। विमुद्रीकरण केवल सत्तारूढ़ दल के लिए ही नहीं, विपक्ष के लिए भी मौका है। यह मौका है सकारात्मक राजनीति का। यह मौका है सत्तारूढ़ दल का विरोध की बजाय उसका समर्थन करके श्रेय लेने का। जिनको परेशानी हो रही है उनकी मदद करके आम लोगों की सहानुभूति और समर्थन हासिल करने का। इस बात को एक विपक्षी नेता ने बखूबी समझा है। वह हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। जो विपक्षी पार्टी इसका सबसे ज्यादा फायदा उठा सकती थी वह है कांग्रेस, पर वह बिना सेनापति की सेना की तरह चारों तरफ दौड़ रही है, लेकिन पहुंच कहीं नहीं रही। विमुद्रीकरण का फैसला करके प्रधानमंत्री ने बहुत बड़ा आर्थिक और राजनीतिक जोखिम लिया था। उन्होंने अपनी पूरी राजनीतिक पूंजी दांव पर लगा दी। मामला किसी भी तरफ जा सकता था, लेकिन आम लोगों के धैर्य और समर्थन से एक बात साफ है कि लोगों का भरोसा मोदी से डिगा नहीं है। सबके मन में एक बात है कि यह देश के भले के लिए हुआ है। गुजरात और महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय के चुनाव नतीजों से भी साफ हो गया कि हवा किस ओर बह रही है, पर विपक्ष है कि इस संदेश को समझने के लिए तैयार नहीं है।नोटबंदी के जरिये प्रधानमंत्री ने एक तीर से कई शिकार किए हैं। कालेधन पर हमले के अलावा इससे बड़ी मात्र में नकदी बैंकिंग व्यवस्था में आ गई, महंगाई और ब्याज दरों के घटने का रास्ता खुल गया और अर्थव्यवस्था के असंगठित क्षेत्र के संगठित क्षेत्र में आने की जमीन तैयार हो गई है। इसका सबसे बड़ा और दीर्घकालिक असर यह होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था नकदी आधारित से कैशलेस की ओर बहुत तेजी से बढ़ सकेगी।

आधार के जनक और कांग्रेस नेता नंदन निलेकणी के मुताबिक जिस काम को करने में कम से कम तीन साल लगते वह विमुद्रीकरण के झटके से अब तीन से छह महीने में हो जाएगा। देश को कैशलेस व्यवस्था की ओर ले जाने का काम ऐसा है जिसकी नींव कांग्रेस के राज में रखी गई। नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया 2008 में बना और 2009 में इसने काम करना शुरू कर दिया। इसी ने नेशनल यूनीफाइड यूएसएसजी प्लेटफॉर्म बनाया है जिससे बैंक खाते के जरिये मजदूरी का भुगतान और सामान की खरीद-फरोख्त हो सकती है। आधार यूपीए सरकार के ही समय शुरू हुआ। कैशलेस व्यवस्था की ओर जाने के लिए देश का टेक्नोलॉजी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार है। इस समय जरूरत है लोगों को इसके इस्तेमाल का तरीका समझाने का। विपक्षी दल इसमें बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। इतना नहीं इस इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करने का श्रेय तो कांग्रेस ही ले सकती है, पर किसी ने सही कहा है-जाको विधि दारुण दुख दीन्हा, ताकी मत पहिले हर लीन्हा। परेशानी के समय लोगों की मदद करने की बजाय कांग्रेस को लग रहा है कि संसद ठप करने से वह सरकार को मुश्किल में डाल सकती है। यह ऐसी पार्टी है जो अपने किए काम का श्रेय लेने से भी भाग रही है। होना तो यह चाहिए था कि जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की घोषणा की तो वह आगे बढ़ कर कहती कि कैशलेस अर्थव्यवस्था की और बढ़िए। हमने उसके लिए सारा इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर दिया था। नेता वह होता है जो भविष्य के बदलाव का पहले से अंदाजा लगा ले। जो काम युवा होने के नाते राहुल गांधी को करना चाहिए था वह नीतीश ने किया है। विडंबना देखिए कि राहुल उन शरद यादव के साथ खड़े हैं जिन्हें दाएं-बाएं का कुछ पता ही नहीं है। वह जनता की क्या समझेंगे जब अपनी ही पार्टी की लाइन नहीं समझ पा रहे हैं।

देश में करीब तीस करोड़ लोगों के पास स्मार्ट फोन हैं। इनके लिए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने अप्रैल 2016 में यूपीआइ (यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस) लांच किया था। यूपीआइ को सबसे अच्छा और सुरक्षित प्लेटफॉर्म माना जा रहा है। करीब इतने ही ऐसे लोग हैं जिनके पास स्मार्ट फोन की बजाय फीचर फोन हैं। निलेकणी कहते हैं कि उनके लिए भी यूएसएसडी टेक्नोलॉजी आधारित व्यवस्था तैयार है। अब सवाल है कि जिन करीब तीस करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन भी नहीं है वे क्या करें? निलेकणी के मुताबिक उनके लिए आधार है। अपने आधार नंबर के जरिये माइक्रो एटीएम से वे लेन-देन कर सकते हैं। सरकार की इस कोशिश का विरोध करने वालों का कहना है कि एक सौ पच्चीस करोड़ के देश में केवल दो लाख बारह हजार एटीएम और एक लाख प्वाइंट ऑफ सेल कार्ड मशीन के बूते आप कैशलेस व्यवस्था की बात कैसे कर सकते हैं? इस पर नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि इन उपायों से 2024 तक भारत में डेबिट, क्रेडिट कार्ड और बैंक एटीएम की जरूरत ही नहीं रह जाएगी। इन सबका काम मोबाइल ही करेगा। असली बात यह है कि इस परिवर्तन की जो वाहक (प्रौद्योगिकी) है उसके बारे में स्पष्टता जल्दी से जल्दी होनी चाहिए। बाजार में बहुत से ऐप हैं। यह जानना कठिन है कि कौन सा ज्यादा सुरक्षित व ज्यादा सहूलियत वाला है? प्रौद्योगिकी का होना एक बात है और उसे अपनाने के लिए लोगों का तैयार होना अलग बात।

पिछले करीब तीन हफ्ते में एक बात देखने में आई है कि देश का गरीब आदमी इस नई तकनीक को अपनाने के लिए ज्यादा तैयार दिखता है। देश के अलग-अलग हिस्सों से खबरें आ रही हैं कि किस तरह चाय वाले, रिक्शे वाले, पान वाले और छोटे दुकानदारों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। उनकी पहल दूसरों के लिए प्रेरणा बनेगी। प्रतिरोध उस वर्ग की ओर से हो रहा है जिसे अपना ज्यादातर काम कैश में ही करने की आदत पड़ गई थी। दिल्ली के सदर बाजार में चले जाइए, वहां थोक व्यापारी किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मोड से भुगतान लेने को अब भी तैयार नहीं हैं। एक बात सबको समझ लेनी चाहिए कि नोटबंदी का फैसला अब वापस नहीं हो सकता। जितनी जल्दी वे इस वास्तविकता को स्वीकार कर लें, अच्छा है।1सरकार की जिम्मेदारी है कि जो लोग बैंकिंग व्यवस्था से बाहर हैं उन्हें जल्दी से इसमें लाया जाए। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट के तरीकों के इस्तेमाल के लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण की व्यवस्था करना चाहिए। प्रधानमंत्री ने देश के युवा वर्ग से अपील की है कि वे रोज दस परिवारों को इसका इस्तेमाल सिखाएं। सभी राजनीति दल यदि इस अभियान में जुट जाएं तो देश की पूरी व्यवस्था ही बदल सकती है। विमुद्रीकरण से उपजे तात्कालिक संकट ने देश के राजनीतिक दलों को एक मौका दिया है देश और आम लोगों के हित में काम करने का। देखना है कि कौन इस अवसर का लाभ उठाएगा और कौन इसे गंवा देगा?

-सौजन्य दैनिक जागरण