सुनील वर्मा
किसी भी इलाके में पुलिस की गश्त क्राइम कंट्रोल करने में अहम भूमिका होती है। पुलिस अगर ईमानदारी से गश्त करें तो क्राइम को काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। कुछ साल पहले तक एसएचओ भी रोज पैदल गश्त करते थे। अब तो बीट सिपाही भी गश्त के नाम पर हूटर बजाते हुए मोटर साइकिल पर फर्राटा भरते हुए गुजरते हैं। ऐसे में दिल्ली पुलिस का साइकिल पर गश्त दोबारा से शुरू करना अच्छी पहल है।
अगर ईमानदारी से गश्त की जाएं तो अपराधी वारदात करने की हिम्मत नहीं करेंगे और अगर वारदात कर भी दी तो गश्त पर आसपास पुलिस मौजूद होने से उसके पकड़े जाने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन अक्सर होता यह है कि जब भी वारदात होती है पुलिस का गश्ती दल इलाके से नदारद मिलता है। छेड़-छाड़, चेन/ पर्स/ मोबाइल की झपटमारी और सड़क पर होने वाली लूट जैसे संगीन अपराध को तो पुलिस गश्त से काफी हद तक काबू किया जा सकता है।
पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक के निर्देश पर अभी पूर्वी दिल्ली से इसकी फिर शुरुआत की गई है। पूर्वी दिल्ली के पूर्वी, उत्तर पूर्वी और शाहदरा जिले में साइकिल पर पुलिस गश्त शुरू की गई। बीट के सिपाही सड़कों पर अतिक्रमण कर कारोबार करने वालों के पास अक्सर देखें जातें हैं। पुलिस की मिलीभगत से ही सड़कों पर बिल्डिंग मैटेरियल,कार,बाइक की खरीद फरोख्त /मरम्मत और अवैध पार्किंग के धंधे चल रहें हैं। पुलिस की उगाही का यह बड़ा जरिया माना जाता है। पुलिस की गश्त के बावजूद सड़कों पर मौजूद यह धंधे पुलिस की भूमिका पर सवालिया निशान लगाते हैं। पुलिस वाकई गंभीरता से अपराध रोकने के मकसद से गश्त करेंगी तब ही अपराध पर काबू पाने में सफल हो सकती है। वरना साइकिल पर पुलिस गश्त भी पुलिस के प्रचार अभियान का एक हिस्सा बन कर रह जाएगा।
अब दो बातें है जो पुलिस गश्त की साइकिल प्रणाली की सफलता और असफलता तय करेंगे । पहला ये की बीट के सिपाही कितने वक़त अपनी बीट में गश्त करते है । दूसरा ये कि क्या तेज रफ़्तार और फटाफट जुर्म करने वाले अपराधियों की फर्राटा मोटर साइकिल से बीट के सिपाही साइकिल टक्कर ले पायेगी । फिलहाल पुलिस आयुक्त की इस नई योजना की पूर्वी दिल्ली में सफलता इसका भविष्य तय करेगी ।
हालाँकि हमने बीट में गश्त करने वाले सिपाहियों से बात की तो उन्होंने कहा की नई तकनीक के दौर में साइकिल पर गश्त से अपराध नियंत्रण होगा इसमें शक है ।